व्यापमं घोटाला: आरोपित छात्र का खंगाला जा रहा प्रमाणपत्र
मुजफ्फरपुर: मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाला (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) के तार एसकेएमसीएच से जुड़े होने की बात से बुधवार को मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में काफी सरगर्मी रही. डॉक्टर सहित कर्मी भी व्यापमं से कॉलेज के जुड़ाव के बारे में अधिक जानने का उत्सुक थे. प्राचार्य डॉ उषा शर्मा ने कॉलेज के नामांकन प्रभारी विकास […]
मुजफ्फरपुर: मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाला (व्यावसायिक परीक्षा मंडल) के तार एसकेएमसीएच से जुड़े होने की बात से बुधवार को मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में काफी सरगर्मी रही. डॉक्टर सहित कर्मी भी व्यापमं से कॉलेज के जुड़ाव के बारे में अधिक जानने का उत्सुक थे.
प्राचार्य डॉ उषा शर्मा ने कॉलेज के नामांकन प्रभारी विकास कुमार को बुला कर काफी देर तक बातचीत की. प्राचार्य डॉ शर्मा ने बताया कि भोपाल से सीआइडी इंस्पेक्टर शंभु सिंह मेरे पास मंगलवार को सहायक पुलिस महानिरीक्षक का पत्र लेकर आये थे. इसमें लिखा था कि व्यापमं घोटाले से जुड़े तीन छात्र पीएमसीएच व एक छात्र एसकेएमसीएच में पढ़ाई कर रहा है. यहां पढ़ाई करने वाले छात्र ने किस वर्ष नामांकन लिया है, यह नहीं लिखा हुआ था. मुझसे उसके डॉक्यूमेंट की प्रतियां मांगी गयी है. मैं इस मामले की छानबीन कर रही हूं. मुङो नहीं पता कि कोई छात्र इससे जुड़ा है या नहीं. मैंने उनसे दो दिनों का समय लिया है. छानबीन के बाद जो रिपोर्ट बनेगी, मैं उसे पोस्ट से भेज दूंगी.
डॉ शर्मा ने कहा कि छात्र का नाम व उसके पिता का नाम गोपनीय रखा गया है. यदि आरोप गलत हुआ तो उसकी बदनामी हो जायेगी. दो दिनों के बाद ही वे इस मामले में कुछ कहेंगी.
कैसे हुआ व्यापमं घोटाला
मध्य प्रदेश में 1970 में प्रदेश के शासकीय मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिए मध्यप्रदेश चिकित्सा बोर्ड का गठन हुआ. बाद में इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश के लिए 1981 में एक बोर्ड बना. 1982 में इन दोनों को मिलाकर व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) का गठन किया गया. 2005 के आसपास व्यापमं के पास सरकारी नौकरियों में भर्ती का जिम्मा आ गया. 2006 के बाद यह उद्योग बन गया. जिसमें दर्जनों लोगों की संलिप्तता सामने आयी.
दो स्तर पर हुई थीं गड़बड़ियां
मेडिकल घोटाले के लिए गड़बड़ी दो स्तरों पर हुई. पहली, व्यापमं के स्तर पर और दूसरी पीएमटी की परीक्षा का नियम बनाने के लिए मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा विभाग के स्तर पर 2009-10 तक यहां निजी मेडिकल कॉलेज 6 हो गये. नियम था कि निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 प्रतिशत सीटें राज्य सरकार के कोटे से भरी जायेंगी. लेकिन निजी कॉलेजों को सारी सीटें चाहिए थीं, इसलिए इन्होंने बिचौलियों का सहारा लिया. मनचाहे छात्रों को पास करवाने के लिए उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान से स्कोरर को लाकर उनका उपयोग हुआ. ये स्कोरर जिनको नकल करवाते थे, वे तो सरकारी कॉलेजों में प्रवेश ले लेते थे और स्कोरर अच्छे नंबर आने के बावजूद सिर्फनिजी कॉलेजों में सीटें ब्लॉक कर देते थे. प्रवेश की अंतिम तारीख 30 सितंबर को अपना नाम वापस ले लेते थे. खाली हुई सीटों पर निजी मेडिकल कॉलेज संचालक पैसे देने वाले छात्रों को मनमाने ढंग से प्रवेश देते थे.