इसकी शुरुआत परीक्षा में सम्मिलित होने अथवा नहीं होने के विवाद को खत्म करने के लिए किया गया था. इसके तहत परीक्षार्थी को ओरल परीक्षा के लिए जो कॉपी दी जाती है, उसके ऊपर ‘ओ’ अथवा ‘ओरल’ अंकित किया जाता है. कॉपी सादी ही रहती है, लेकिन ओरल परीक्षा में प्राप्त अंक उस पर चढ़ाये जाते हैं. अंक चढ़ाने के बाद दोनों परीक्षक कॉपी के ऊपर हस्ताक्षर करते हैं. फिलहाल जो मामला सामने आ रहा है, उसमें कॉपी के ऊपर ‘ओ+पी (ओरल व प्रैक्टिकल)’ दोनों लिखा है. ऐसे में कमेटी सबसे पहले यह जांच करेगी कि कॉपी पर अंकित अंक सिर्फ ओरल के हैं अथवा ओरल व प्रैक्टिकल दोनों के. यदि बिना प्रैक्टिकल के प्रश्न हल किये उसके अंक कॉपी पर दिये गये हैं तो संबंधित परीक्षक का फंसना तय माना जा रहा है. कुलानुशासक डॉ अजय कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि कमेटी की पहली आधिकारिक बैठक मंगलवार को होगी. इसमें जांच की रू परेखा तैयार की जायेगी. कमेटी में विवि रसायन विभागाध्यक्ष डॉ बीएन झा व डॉ मोती प्रसाद सिंह शामिल हैं.
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ओरल या प्रैक्टिकल परीक्षा को लेकर फंसा है पेच
मुजफ्फरपुर: बीएचएमएस (बैचलर ऑफ होमियोपैथिक मेडिसीन एंड सजर्री) कोर्स में सादी कॉपी पर अंक दिये जाने के मामले का खुलासा होने के साथ ही विवि की परीक्षा प्रणाली सवालों में है. कुलपति डॉ पलांडे ने मामले की जांच के लिए कुलानुशासक डॉ अजय कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया […]
मुजफ्फरपुर: बीएचएमएस (बैचलर ऑफ होमियोपैथिक मेडिसीन एंड सजर्री) कोर्स में सादी कॉपी पर अंक दिये जाने के मामले का खुलासा होने के साथ ही विवि की परीक्षा प्रणाली सवालों में है. कुलपति डॉ पलांडे ने मामले की जांच के लिए कुलानुशासक डॉ अजय कुमार श्रीवास्तव की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया है. सूत्रों की मानें तो कमेटी पहले होमियोपैथी कोर्स के विशेषज्ञों से मामले में राय ले सकती है.
मामला ओरल व प्रैक्टिकल परीक्षा को लेकर फंसा है. बीएचएमस कोर्स साढ़े चार साल का होता है. इसमें प्रत्येक साल ओरल व प्रैक्टिकल परीक्षा दोनों होती है. जानकारों के अनुसार, प्रैक्टिकल परीक्षा में बिना लिखे अंक देने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं ओरल परीक्षा में विवि में वर्षो से ऐसा होता रहा है. दरअसल ओरल परीक्षा में लिखित परीक्षा नहीं होती. बावजूद कई वर्ष पूर्व विवि में ऐसी परंपरा बना दी गयी थी कि ओरल परीक्षा में भी परीक्षार्थियों को कॉपी दी जाती है.
विवाद के बाद शुरू हुई थी परंपरा : आरबीटीएस कॉलेज के प्राचार्य डॉ बीएनएस भारती, पूर्व में ओरल परीक्षा में शामिल होने पर परीक्षार्थी का हस्ताक्षर एक उपस्थिति पंजी पर कराया जाता था. कई बार रिजल्ट पेंडिंग होने पर परीक्षार्थी उपस्थिति पंजी पर हस्ताक्षर नहीं होने के बावजूद परीक्षा में शामिल होने का दावा करते थे. इसको लेकर कई बार विवाद भी हुआ था. इसके बाद ओरल परीक्षा में भी कॉपी देने का प्रावधान शुरू किया गया था, ताकि ऐसे विवादों से बचा जा सके.
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