..तो धान की खेती नहीं होगी

मुजफ्फरपुर: मुसहरी प्रखंड का चांद विशुनपुर गांव. प्रभाकर प्रसाद सिंह यहां के जाने-माने किसान हैं. खेतों से पटवन करा लौटे हैं. छह बिगहा में धान की खेती की है. सभी खेतों में 6444 प्रभेद धान लगाया है. पैसे की बदौलत फसल तो बची है. फसल अच्छी है. प्रभाकर कहते हैं, अगर खेती का खर्च जोड़ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 21, 2013 8:37 AM

मुजफ्फरपुर: मुसहरी प्रखंड का चांद विशुनपुर गांव. प्रभाकर प्रसाद सिंह यहां के जाने-माने किसान हैं. खेतों से पटवन करा लौटे हैं. छह बिगहा में धान की खेती की है. सभी खेतों में 6444 प्रभेद धान लगाया है. पैसे की बदौलत फसल तो बची है. फसल अच्छी है. प्रभाकर कहते हैं, अगर खेती का खर्च जोड़ दें तो फसल नहीं लगा पायेंगे. रूपेश कुमार व संतोष कुमार भी प्रभाकर के पास बैठे हैं. कहते हैं, इस बार सूखा से त्रस्त हैं.

धान का बिचड़ा गिराने से आज तक से प्याज के छिलके की तरह पैसा उड़ा रहे हैं. आगे भी कोई उम्मीद नहीं दिखती. खेती में सक्षम नहीं हुए तो ढैंचा ही खेतों में छोड़ दिये. बारिश होती तो और जमीन में रोपनी करते. जितना भी रोपे हैं उसमें चार-बार पटवन कर चुके हैं, लेकिन फसल अच्छी नहीं है.

कामेश्वर प्रसाद सिंह कहते हैं, बारिश की तुलना पंप सेट का पानी क्या करेगा? पटवन कर धान बचा लेना काफी नहीं है. सूखा से फसल बीमारियों से ग्रस्त हो चुकी है. धान की जड़ में दीमक व गराड़ नाम के पिल्लू लगे हैं. आज जिस पौधे को हरा देखते हैं कल मुरझाया रहता है. उखाड़ कर देखते हैं तो जड़ ही खत्म रहते हैं. रूपेश कुमार ने भी इनकी बातों का समर्थन करते हैं. बोले, यहां सिंचाई साधन भी तो बीमार है. प्रभाकर बाबू के खेत में करीब 15 लाख रुपये खर्च कर नलकूप विभाग ने पंप लगाया. चार वर्ष बीत गये, लेकिन पंप से पानी तक नहीं निकला. पंप लगाने से प्रभाकर बाबू की जमीन भी बेकार चली गयी. सस्ती पटवन होती, लेकिन पटवन के लिए पानी नहीं निकल रहा है. 400 फीट गहरी बोरिंग हुई थी.

सुखाड़ की स्थिति का जायजा लेने के लिए जिला कृषि पदाधिकारी यहां पहुंचे थे. किसानों के साथ खेतों का निरीक्षण किया. उन्हें स्टेट टय़ूबबेल दिखाया गया. डीएओ बोले, यहां मनरेगा का पेड़ लगा है. केंद्रीय मामला है हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं. आज कोई अफसर थोड़े ही सुनता है. बताइए न हम कितना पटवन करें. मौसम को देख तो रोपनी की हिम्मत नहीं हुई. तीन बिगहा से अधिक जमीन में ढैंचा छोड़ दिये. यह तो धान से अच्छा है. कम से कम वह 70 से 80 रुपये बंडल तो हो जायेगा. बटाइदार एक क ट्ठे में कम से कम आठ बंडल लकड़ी यहां रख जायेंगे. यहां काफी किसानों के खेतों में ढैंचा देखने को मिल जायेगा.

डुमरी गांव के संजय कुमार धान की खेत में फसल को देख परेशान हैं. काफी दूरी पर पौधे हैं. इनकी फसल को दीमक चाट गयाष क्योंकि खेतों में नमी नहीं है. संजय बताते हैं कि आज तक धान लगाने के बाद खेत में पानी लगा. बताइए धान कैसे होगा. जितने पौधे लगे थे उतने ही पौधे आज भी हैं. पौधे में टिलरिंग नहीं हुआष जबकि रोपनी में डीएपी, यूरिया, खल्ली व गोबर डाले थे. नरौली के भोला राय बताते हैं कि यह मौसम रोपनी लायक नहीं है. कुल मिलाकर खेती के लिए प्रतिकूल हालात बन गये हैं. 100 रुपये घंटे पटवन कर धान कौन बचायेगा ? मजदूर सौ रुपये लेते हैं और चार से पांच धूर जमीन निकौनी करते हैं. मौसम को देख धान की खेती महंगी लगी तो मक्का व ओल ही लगा दिये.

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