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एइएस के लिए वार्ड बना, डॉक्टर नहीं

मुजफ्फरपुर: एइएस के लक्षणों से पीड़ित बच्चों का आना शुरू हो गया है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से बचाव की तैयारी पूरी नही हो पायी. गांवों में लोगों को बीमारी से बचाने के लिए दो दिन पूर्व से आशा को जागरूकता कार्यक्रम से जोड़ा गया है. बीमारी की शुरुआत का टाइम लाइन 15 अप्रैल […]

मुजफ्फरपुर: एइएस के लक्षणों से पीड़ित बच्चों का आना शुरू हो गया है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की ओर से बचाव की तैयारी पूरी नही हो पायी. गांवों में लोगों को बीमारी से बचाने के लिए दो दिन पूर्व से आशा को जागरूकता कार्यक्रम से जोड़ा गया है. बीमारी की शुरुआत का टाइम लाइन 15 अप्रैल माना जाये तो भी स्वास्थ्य विभाग के पास महज एक सप्ताह का समय है. इस बीच प्रत्येक गांवों में जागरूकता कार्यक्रम चलाना मुश्किल होगा.

बीमारी से बचाव के लिए भी पीएचसी स्तर पर ठोस योजना नहीं बन पायी है.

पीएचसी में नहीं इलाज की व्यवस्था. एइएस के इलाज के लिए पीएचसी स्तर पर इलाज की व्यवस्था अब तक नहीं की जा सकी है. प्रत्येक पीएचसी में इसके लिए बेड तो लगा दिये गये हैं, लेकिन आने वाले बीमार बच्चों को एसकेएमसीएच या केजरीवाल रेफर कर दिया जाता है. मोतीपुर बाजार के रहनेवाले अनिल राम की बेटी तन्नू को पीएचसी से केजरीवाल रेफर किया जाना, इसका उदाहरण है. प्रधान सचिव के स्पष्ट निर्देश के बाद भी पीएचसी स्तर पर इलाज की व्यवस्था नहीं हो पायी.
सदर अस्पताल में लगाये बेड, डॉक्टर नहीं
सदर अस्पताल में एइएस के इलाज के लिए वार्ड को दुरुस्त कर दिया गया है. लेकिन इसके लिए डॉक्टर प्रतिनियुक्त नहीं हैं. यदि कोई मरीज आता है तो इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर ही उसका इलाज करेंगे. बीमारी की संभावना को देखते हुए प्रभारी सीएस डॉ शिवचंद्र झा ने राज्य स्वास्थ्य समिति से डॉक्टरों की मांग की है. जिले से 70 डॉक्टरों की प्रतिनियुक्ति के लिए प्रस्ताव भेजे गये हैं. पिछले वर्ष एइएस के इलाज के लिए 60 डॉक्टर जिले में प्रतिनियुक्त किये गये थे.

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