बनारस बैंक चौक : निशानी मिटी, नाम जिंदा
मुजफ्फरपुर: शक्तिशाली भूकंप के झटके ने भले ही पड़ोसी देश नेपाल में बर्बादी की इबारत लिख दी. उसके प्रभाव से अपना शहर भी अछूता नहीं रहा. शनिवार के जोरदार झटके के करीब 25 घंटे बाद रविवार व सोमवार को फिर भूकंप आया. ऐसे में पुराने लोगों के मन में 1934 की भयावह तस्वीर सामने आने […]
मुजफ्फरपुर: शक्तिशाली भूकंप के झटके ने भले ही पड़ोसी देश नेपाल में बर्बादी की इबारत लिख दी. उसके प्रभाव से अपना शहर भी अछूता नहीं रहा. शनिवार के जोरदार झटके के करीब 25 घंटे बाद रविवार व सोमवार को फिर भूकंप आया. ऐसे में पुराने लोगों के मन में 1934 की भयावह तस्वीर सामने आने लगी, जिसने शहर को तबाह करके रख दिया था. आज जिस मोहल्ले को बनारस बैंक चौक के नाम से जाना जाता है, वहां वास्तव में बनारस बैंक था जिसे 1934 का भूकंप निगल गया. उसका निशान तो मिट गया, लेकिन 81 साल बाद भी नाम जिंदा है.
‘दि बनारस बैंक’ नगर का पहला बैंक था. इसकी स्थापना 1854 में हुई थी. उस वक्त यहां का शासन इस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में था. नगर की व्यापारिक पहचान भी बन चुकी थी. बैंक की स्थापना के बाद नगरवासी उसमें खाता खोलवा कर पैसा जमा करने लगे. बहुत जल्द ही बैंक का व्यवसाय चमक उठा. बाद में इस बैंक में दूर-दूर के लोग आकर खाता खोलवाने लगे और अपने पैसे जमा करने लगे. गोला रोड निवासी पूर्व विधायक केदारनाथ प्रसाद के मुताबिक तब यह शहर पुरानी बाजार, गुदरी बाजार, सोनारपट्टी, लक्षीराम धर्मशाला, दुर्गा स्थान, गरीब स्थान, छाता बाजार, सरैयागंज के एरिया तक ही सिमटा था. उनके पिता जी स्वर्गीय रामानुरागी राम भजन साह बताते थे कि महाजन टोली से बोरा में चांदी के सिक्के भर कर और गधे पर लाद कर बैंक में पैसा जमा होने जाता था.
जानकार बताते हैं कि 1934 में आये भूकंप ने इस शहर को तहस-नहस करके रख दिया. उसी भूकंप में यह बैंक भी ध्वस्त हो गया. इसके सभी अधिकारी भाग गये, जिन लोगों ने पैसा जमा कराया था, उनका पैसा वापस नहीं मिला. एक तो भूकंप की त्रसदी, दूसरा बैंक के जमा पैसा के नहीं मिलने से लोगों को निराशा हुई. वह बैंक जहां था वह स्थान आज भी बनारस बैंक चौक के नाम से ही जाना जाता है. बैंक के बगल में अंग्रेजों ने एक घोड़ा अस्पताल खोलवाया था. कहने के लिए था, तो वह घोड़ा अस्पताल. मगर उसमें सभी पशुओं का इलाज होता था. तत्कालीन बनारस बैंक चौक का इलाका कमरा मोहल्ला, भगवान लाल चौक, आजाद रोड, नयी बाजार मदरसा, एमएसकेबी कॉलेज व महादलित टोला तक फैला हुआ था.
शहर के बुजुर्ग नागरिक चित्तरंजन सिन्हा ‘कनक’ कहते हैं कि 1933 में उनका जन्म हुआ था. पचास के दशक में एक बार जब भूकंप आया तो पिता जी से 1934 के भूकंप की कहानी सुने. शहर का बनारस बैंक काफी प्रसिद्ध हो चुका था जिसे प्रलयंकारी भूकंप निगल गया.