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तीन आइपीएस लपेटे में

मुजफ्फरपुरः तीन साल पूर्व पुलिस ऑफिस कार्यालय में फर्जी बिल के आधार पर हुए करोड़ों के घोटाले में तीन आइपीएस समेत 12 अधिकारी भी लपेटे में आ सकते हैं. घोटाले के मुख्य आरोपित सुशील चौधरी ने अपने अधिवक्ता प्रशांत सिन्हा के माध्यम से इन अफसरों पर प्राथमिकी दर्ज करने के लिए हाइकोर्ट में क्रिमिनल रिट […]

मुजफ्फरपुरः तीन साल पूर्व पुलिस ऑफिस कार्यालय में फर्जी बिल के आधार पर हुए करोड़ों के घोटाले में तीन आइपीएस समेत 12 अधिकारी भी लपेटे में आ सकते हैं. घोटाले के मुख्य आरोपित सुशील चौधरी ने अपने अधिवक्ता प्रशांत सिन्हा के माध्यम से इन अफसरों पर प्राथमिकी दर्ज करने के लिए हाइकोर्ट में क्रिमिनल रिट दायर की है.

रिट में बताया गया है कि ये अधिकारी राशि निकासी के लिए सीधे जिम्मेवार थे, लेकिन अनुसंधानक ने विशेष न्यायालय के आदेश के बाद भी ठीक से मामले की जांच नहीं की. यहीं नहीं, अनुसंधानक निगरानी एसपी अश्विनी कुमार पर भी इन अधिकारियों को बचाने का आरोप लगाया है. साथ ही मामले की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराने की मांग की गयी है.

इनकी भूमिका की हो जांच

तत्कालीन एसपी रत्न संजय वर्तमान में सीबीआइ में डीआइजी ,तत्कालीन एसपी सुधांशु कुमार वर्तमान में डीआइजी मुंगेर,तत्कालीन एसएसपी सुनील कुमार वर्तमान में डीआइजी पटना सेंट्रल रेंज, तत्कालीन डीएसपी सुरेंद्र लाल दास वर्तमान में नवादा से एसपी पद से रिटायर्ड, तत्कालीन डीएसपी अरविंद गुप्ता वर्तमान में एएसपी वैशाली, तत्कालीन डीएसपी शंकर झा वर्तमान में बीएमपी तीन के समादेष्टा, तत्कालीन डीएसपी धीरज कुमार वर्तमान में एसपी निगरानी पटना, तत्कालीन डीएसपी मनीष कुमार वर्तमान में एसडीपीओ दलसिंहसराय, तत्कालीन शाखा प्रबंधक एसबीआइ एमआइटी शाखा वर्तमान में आरसीओ में चीफ मैनेजर, तत्कालीन हेड क्लर्क राम सेवक राम वर्तमान में रिटायर्ड, ट्रेजरी कार्यालय का क्लर्क शरद भारती.

निगरानी रिपोर्ट पर सवाल

करोड़ों के घोटाला मामले में निगरानी की जांच पर अंगुली उठायी गयी है. मामले में सुशील चौधरी व अन्य के विरुद्ध नगर थाने में एक अक्तूबर 2010 को कांड संख्या 401/10 दर्ज की गयी थी. रिट में बताया गया है कि बिल को तैयार व पास करने में ये अधिकारी शामिल हैं. 2006 से 2008 तक तत्कालीन एसपी रत्न संजय, सुधांशु कुमार, सुनील कुमार व सुरेंद्र लाल दास निकासी व व्यय पदाधिकारी थे. इन्हीं अधिकारियों के हस्ताक्षर से बिल पास होता था. वहीं, तत्कालीन डीएसपी शंकर झा, धीरज कुमार, अरविंद गुप्ता, मनीष कुमार कैश बुक का प्रत्येक माह निरीक्षण कर रिपोर्ट देते थे. साथ ही बिल पर हस्ताक्षर करते थे.

ट्रेजरी में बिल भेजने से लेकर एकाउंट में पैसे भेजने तक इनका हस्ताक्षर होता था. उसके बाद भी निगरानी के अनुसंधानक अश्विनी कुमार ने इनकी भूमिका की जांच नहीं की. इसी कड़ी में रामसेवक राम को हेड क्लर्क होने के नाते बिल को चेक करना था, जबकि ट्रेजरी के क्लर्क शरद भारती बिल को चेक कर भुगतान के लिए पास करते थे. वही बैंक मैनेजर सहित इन सभी अधिकारियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए थी.

यह था मामला

तत्कालीन डीएसपी मुख्यालय मनीष कुमार ने नगर थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी थी, जिसमें बताया गया था कि सुशील चौधरी ने सैलरी एकाउंट 30041237008 के साथ दो अन्य एकाउंट 11203636783 व 20041280693 एसबीआइ के एमआइटी में खोल रखा था. तीनों एकाउंट में करोड़ों की रकम जमा थी. वही सुशील चौधरी के समस्तीपुर आवास पर छापेमारी के दौरान बोरे में करीब 60 लाख नकद बरामद किया गया था. वहीं सिपाही शकुंतला देवी के घर से 55 लाख नगद बरामद किया था.

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