वह मुजफ्फरपुर में पदेन सहायक निदेशक (पशु विकास) वृहत पशु विकास परियोजना (क्षेत्रीय स्तर) के पद पर कार्यरत थे. उनके गांव के ही त्रिवेणी मंडल व डॉ महेंद्र मंडल ने परिवाद पत्र दायर कर झारखंड सरकार को प्रेषित किया था. इसमें बताया गया था कि डॉ नरेश मंडल धानुक जाति के हैं. उनकी नियुक्ति अनुसूचित जनजाति के खरवार जाति का प्रमाण पत्र देकर हुई है. इस मामले में 14 जून 2006 को उनसे जाति प्रमाण पत्र की अभिप्रमाणित प्रति मांगी गयी. उन्होंने कहलगांव के बीडीओ कार्यालय से निर्गत प्रमाण पत्र उपलब्ध कराया, जिसमें खरवार जाति अंकित था.
प्रमाण पत्र की सत्यता की जांच बीडीओ से करायी गयी. दो अप्रैल 2008 को खतियान व स्थानीय जनप्रतिनिधियों के बयान पर उन्हें कुर्मी जाति का होना बताया गया. अपर समाहर्ता भागलपुर ने 11 सितंबर 2009 को जारी पत्र में उन्हें खरवार बताया था. दोनों प्रतिवेदन के विरोधाभाषी होने पर डीएम भागलपुर को जांच की जिम्मेवारी दी गयी. डीएम ने 21 दिसंबर 2011 व तीन मई 2013 के एसडीओ कहलगांव की रिपोर्ट के आधार पर उनकी जाति कुर्मी बतायी. डीएम के जांच प्रतिवेदन के आधार पर विभाग की ओर से डॉ नरेश पर विभागीय कार्रवाई की गयी. डॉ मंडल के कुर्मी जाति के होते हुए अनुसूचित जनजाति के खरवार जाति का प्रमाण पत्र बनवाने व नियुक्ति प्राप्त करने के आलोक में बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण व अपील नियमावली 2005) व संशोधित 2007 के नियम 14(11) के तहत उन्हें सरकारी सेवा से 18 सितंबर 2014 को बरखास्त कर दिया गया.