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बीआरए बिहार विवि: पीएचडी की डिग्री या मिलेगा धोखा!

मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि वर्ष 2012 से पंजीकृत सभी शोधकर्ताओं की पीएचडी डिग्री में यूजीसी रेगुलेशन-2009 का जिक्र करने का फैसला लिया है. इसके लिए पहल शुरू हो चुकी है. एकेडमिक कौंसिल व सिंडिकेट की बैठक में यह प्रस्ताव पास भी हो चुका है. डिग्री में यह प्रावधान एक बार फिर ‘छूट’ के आधार पर […]

मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि वर्ष 2012 से पंजीकृत सभी शोधकर्ताओं की पीएचडी डिग्री में यूजीसी रेगुलेशन-2009 का जिक्र करने का फैसला लिया है. इसके लिए पहल शुरू हो चुकी है. एकेडमिक कौंसिल व सिंडिकेट की बैठक में यह प्रस्ताव पास भी हो चुका है. डिग्री में यह प्रावधान एक बार फिर ‘छूट’ के आधार पर होगा.
कारण विवि का पीएचडी कोर्स में रेगुलेशन का पूरी तरह पालन नहीं हो रहा है. विवि पहले ही ‘छूट’ प्रमाणपत्र जारी कर विवादों में है. हाइकोर्ट में इसको चुनौती भी दी गयी है. दरअसल, यूजीसी रेगुलेशन में किसी प्रकार के छूट का प्रावधान है ही नहीं. खुद यूजीसी ने इस संबंध में पब्लिक नोटिस भी जारी की हुई है. ऐसे में सवाल है, क्या विवि का नया फैसला मान्य होगा?
यूजीसी रेगुलेशन के तहत पीआरटी टेस्ट से पूर्व विवि को विषयवार सीटों की संख्या की घोषणा करनी थी. इसका निर्धारण गाइड की उपलब्धता के आधार पर होना था.
सीटों की कुल संख्या में आरक्षण रोस्टर भी लागू हो
ना था. वर्ष 2012 व 2013 के पीआरटी टेस्ट में इसका पालन नहीं हुआ. आरक्षण रोस्टर लागू नहीं करने को लेकर विवि के पीआरटी टेस्ट में शामिल एक छात्र ने अलग से हाइकोर्ट में याचिका दायर करायी है. इस पर सुनवायी होनी बांकी है.
444 का हुआ था पंजीयन
2012 में पीआरटी टेस्ट पास करने के बाद 444 अभ्यर्थियों ने शोध के लिए पंजीयन कराया था. सबसे अधिक शोधार्थियों की संख्या कॉमर्स (99) में थी. इसके बाद हिंदी (83), गृह विज्ञान (57) व अर्थशास्त्र (53) का था. इसमें से काफी संख्या में शोधार्थी शोध पूरा कर पीएचडी की उपाधि भी हासिल कर चुके हैं. वहीं 2013 में पीआरटी टेस्ट पास करने वाले अभ्यर्थियों के लिए जल्द ही छह माह का विशेष कोर्स शुरू होगा. जिन लोगों ने उपाधि हासिल कर ली है, उन्हें विवि ने अलग से 2009 रेगुलेशन वाली डिग्री देने का फैसला लिया है.
फिलहाल डिग्री में रेगुलेशन जिक्र का प्रस्ताव एकेडमिक कौंसिल व सिंडिकेट से पास हुआ है. अभी सीनेट व राजभवन की मंजूरी बांकी है. इस मामले में जो भी फैसला होगा, विधि सम्मत होगा. ऐसा कोई निर्णय नहीं होगा, जिससे छात्रों को भविष्य में नुकसान हो.
डॉ सतीश कुमार राय, कुलानुशासक

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