बीआरए बिहार विवि के स्ट्रांग रूम तक फर्जी डिग्री दिलानेवालों की पहुंच

मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि में फर्जी डिग्री जारी करने में बड़ा रैकेट काम कर रहा है. इसकी पहुंच अधिकारियों के स्ट्रांग रूम तक है. इसका खुलासा 2006 में रणजीत सिंह को लॉ की फर्जी डिग्री जारी करने के मामले की जांच के दौरान हुआ है. जांच के क्रम में पता चला है कि फर्जी औपबंधिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 26, 2015 8:04 AM
मुजफ्फरपुर: बीआरए बिहार विवि में फर्जी डिग्री जारी करने में बड़ा रैकेट काम कर रहा है. इसकी पहुंच अधिकारियों के स्ट्रांग रूम तक है. इसका खुलासा 2006 में रणजीत सिंह को लॉ की फर्जी डिग्री जारी करने के मामले की जांच के दौरान हुआ है.

जांच के क्रम में पता चला है कि फर्जी औपबंधिक प्रमाण पत्र व अंकपत्र जारी करने से पूर्व परीक्षा नियंत्रक के स्ट्रांग रू म में रखे टीआर के साथ भी छेड़छाड़ की गयी थी. प्रेस में छपे टीआर में रणजीत सिंह का नाम अलग से जोड़ा गया था. कुछ ऐसा ही डिग्री सेक्शन में रखे टीआर में भी पाया गया है. दोनों टीआर में अलग से नाम जोड़े जाने के बावूजद किसी टेबुलेटर का हस्ताक्षर नहीं है.

आशंका जतायी जा रही है कि छेड़छाड़ के बाद ही टीआर स्ट्रांग रू म या डिग्री सेक्शन में रखा गया हो! अब इसकी पड़ताल शुरू हो गयी है. इसके लिए विवि प्रशासन 2009 में तीन सदस्यीय जांच कमेटी की रिपोर्ट तलाश करने में जुटा है. इसी रिपोर्ट आधार पर परीक्षा विभाग के सेवानिवृत्त कर्मी ब्रजभूषण शर्मा के खिलाफ विवि थाना में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी, जबकि परीक्षा विभाग के ही एक चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी को क्लीन चिट दी गयी थी.
यह रिपोर्ट कुलपति कार्यालय को सौंपी गयी थी, लेकिन बाद में वह गायब हो गयी. जांच के क्रम में पता चला है कि उस रिपोर्ट को दुबारा परीक्षा विभाग भेज दिया गया था. आशंका जतायी जा रही है कि वह रिपोर्ट परीक्षा नियंत्रक कार्यालय में रखे दो गोदरेज में से किसी एक में हो सकती है, जिसकी चाभी अभी भी पूर्व परीक्षा नियंत्रक के पास है. ऐसे में कुलपति की मंजूरी के बाद इसे खोलने की पहल शुरू की जायेगी. जांच ब्रजभूषण शर्मा के आवेदन के आधार पर शुरू हुई है, जिसमें उन्होंने मामले में खुद को जानबूझ कर फंसाने व विवि अधिकारियों व कुछ कर्मचारियों को बचाने का आरोप लगाया है.
ये है मामला. 2006 में रणजीत सिंह नाम के एक व्यक्ति को विवि की ओर से लॉ का औपबंधिक प्रमाण पत्र जारी किया गया. इसमें उसका रौल नंबर 239 व पंजीयन संख्या 16480 बताया गया है. इसके आधार पर उसने पंजाब बार कौंसिल में लॉ की प्रैक्टिस के लिए आवेदन दिया. प्रमाण पत्र के सत्यापन के दौरान पता चला कि उसकी डिग्री फर्जी है. मामले में पंजाब पुलिस की एक टीम वर्ष 2013 में विवि पहुंची. मामले का खुलासा होने के पर विवि की ओर से चार अप्रैल, 2013 को एक जांच कमेटी का गठन किया गया. इसमें 31 जनवरी, 2012 को सेवानिवृत्त हो चुके कर्मी ब्रजभूषण शर्मा को आरोपित बताया गया. इसी मामले में परीक्षा विभाग के एक और कर्मी पर भी शक था. उसका हस्ताक्षर प्रमाण पत्र पर पाया गया. इस आधार पर उसे परीक्षा विभाग से हटा दिया गया था. लेकिन बाद में बताया गया कि जांच रिपोर्ट में उसे बेकसूर पाया गया है.
फर्जी लॉ की डिग्री बनाने के मामले में परीक्षा नियंत्रक के स्ट्रांग रू म व डिग्री सेक्शन में रखे टीआर की जांच की गयी है. दोनों टीआर में अलग से रणजीत सिंह का नाम जोड़ा गया है. उस पर किसी का हस्ताक्षर भी नहीं है. ऐसे में अब 2009 में गठित तीन सदस्यी कमेटी की जांच रिपोर्ट देखी जायेगी. उसके बाद ही कोई फैसला लिया जायेगा.
डॉ सतीश कुमार राय, कुलानुशासक

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