कहीं तांत्रिक विधि से तो कहीं अघोरी पूजा कर मां को करते हैं खुश
कहीं तांत्रिक विधि से तो कहीं अघोरी पूजा कर मां को करते हैं खुश फोटो : दीपक – काली माता मंदिर में चढ़ायी जाती है पशुओं की बलि- राजेश्वरी मंदिर में तात्रिक विधि से होता है पूजन – बाग्लामुखी में अघोरी व कौलाचार्य करते हैं नौ दिनों तक पूजन संवाददाता, मुजफ्फरपुर नवरात्र शुरू होने में […]
कहीं तांत्रिक विधि से तो कहीं अघोरी पूजा कर मां को करते हैं खुश फोटो : दीपक – काली माता मंदिर में चढ़ायी जाती है पशुओं की बलि- राजेश्वरी मंदिर में तात्रिक विधि से होता है पूजन – बाग्लामुखी में अघोरी व कौलाचार्य करते हैं नौ दिनों तक पूजन संवाददाता, मुजफ्फरपुर नवरात्र शुरू होने में अब केवल छह दिन शेष बचे हैं. ऐसे में मंदिरों में साज-सज्जा का काम जो पखवारे भर पूर्व शुरू हो गया था, अब अंतिम रूप लेने लगा है. शहर के प्रमुख मंदिर बाग्लामुखी, राज राजेश्वरी व काली मंदिर के बारे में जब जानने की कोशिश हुई तो पता चला कि ये तीनों मंदिर अपने आप में विशेष स्थान रखते हैं. किसी भी भक्त की झोली यहां से खाली नहीं जाती है. हरेक मुरादें माता रानी पूरी करती हैं. यही वजह है कि नवरात्र में इन मंदिरों पर भक्तों का रेला लग जाता है. राज राजेश्वरी मंदिर में तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना की जाती है तो बाग्लामुखी मंदिर में अघोराचार्य व कौलाचार्य जैसे भक्त नौ दिनों तक माता के चरणों में ध्यान लगाते हैं. जबकि काली माता के मंदिर में बलि चढ़ाकर मां को खुश करने की परंपरा चली आ रही है. बाग्लामुखी मंदिर बाग्लामुखी मंदिर भारत वर्ष का अद्वितीय सिद्धपीठ है. अष्टधातु में दस भुजाओं वाली स्वरूपा का मूर्ति पूरे भारत में इकलौती है. मंदिर के महंथ अजीत कुमार प्रसाद ने बताया कि मंदिर में दस महाविद्यापीठ या 18 महाविद्यापीठ के साधक यहां साधना करते हैं. दक्षिण मार्ग साधना, वाम वार्गी, अघोराचार्य, कौलाचार्य ये लोग नवरात्र में आकर विधि-विधान से पूजा-अर्जना करते हैं. ये लोग हर नवरात्र में कामाख्या, कोलकाता, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश से आते हैं. इसके अलावा मां का सहस्त्र दल यंत्र नवरात्र में स्थापित होता है. यह भारत वर्ष में कहीं नहीं है. मंगलवार कल्याणकारी, बृहस्पतिवार सुख संपदा, शनिवार को विशेष कष्ट हेतु दही, हल्दी, दूब व नारियल चढ़ाने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. मां शीतला का विशेष स्थान है. नवरात्र में 24 घंटे हवन यज्ञ, महाकाल का हवन यज्ञ एवं नौ दिन महालंगर का आयोजन किया जाता है. प्रतिदिन महायंत्र महाभिषेक एवं माता का प्रतिदिन शृंगार एवं त्रिकाल महारआरती की जाती है. नवरात्र में भक्तों की भीड़ जबरदस्त होती है. राज राजेश्वरी देवी मंदिर राज राजेश्वरी देवी मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं. मंदिर के पुजारी डॉ. धर्मेंद्र तिवारी ने बताया कि यह मंदिर 28 जून 1941 को स्थापित किया गया था. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां पर तांत्रिक पद्धति से पूजा की जाती है. पूरे नवरात्र में माता भगवती के 108 नामों से विशेष पूजा होती है. माता के अलग-अलग रूपों को दसों दिन तक शृंगार किया जाता है. इसके अलावा सबसे विशेष बात यह भी है कि नौ दिनों तक मध्य रात्रि महानिशा पूजा की जाती है, जो वर्षों पूर्व शुरू हुई थी. हर नवरात्र में यह पूजन किया जाता है. राज राजेश्वरी (त्रिपुर सुंदरी) माता वैष्णवी के तीसरे रूप को कहा जाता है. साथ ही पुजारी दस विद्या करते हैं. हर नवरात्र में भक्तों का रेला यहां पर आता है. नवरात्र में भक्तों के लिए मंदिर की तरफ से विशेष प्रसाद दिया जाता है. यहां पर भक्तों की मांगी गयी मुरादें जरूर पूरी होती हैं. इसलिए नवरात्र के अलावा यहां पर सुबह शाम भक्तों की भीड़ लगी रहती है. नवदुर्गा काली मंदिर नवदुर्गा काली मंदिर नवरात्र में प्रतिदिन दुर्गा सप्तमी का पाठ किया जाता है. मंदिर के पुजारी कमलेश कुमार द्विवेदी ने बताया कि सप्तमी पाठ के साथ नौ दिनों तक रामायण भी होता है. यह पूरी तरह से वैष्णव संप्रदाय का मंदिर है. इसकी वजह से पूरे विधि विधान से माता के सभी नौ रूपों की प्रतिदिन पूजा की जाती है. सबसे खास बात यह है कि 5100 दीप जलाकर माता रानी की महाआरती की जाती है. यह बड़ा भव्य होता है. इस दिन भक्तों की भीड़ खूब आती है. महाआरती में शामिल होने के लिए दूरदराज से भक्तों की भीड़ आती है. साथ ही माता रानी के त्रिशूल का बड़ा विशेष महत्व है. त्रिशूल में भक्त धागा या फिर कोई छोटा सा कपड़ा बांध कर अपनी मन्नत मांगते हैं. यह परंपरा शादियोंं से चली आ रही है. काली माता का मंदिर सन 1932 में स्थापित हुआ था. इसी कैंपस में माता रानी का भी नौ रूपों की प्रतिमा वाला मंदिर भी है. काली मंदिर में सप्तमी से पशुओं की बलि भी चढ़ाई जाती है, जो नवमी तक चलती है. भक्तों के मुरादें पूरी होने पर वह पशुओं की बलि देते है.