मुजफ्फरपुर: नेपाल का तराई पिछले 55 दिनों से धधक रहा है. मेची से महाकाली के बीच देश की आधी आबादी (मधेशी मूल के 1.40 करोड़) निवास करती है. तराई में हर रोज धरना-प्रदर्शन, जुलूस व 15 दिनों से आर्थिक नाकेबंदी से पूरा जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है. इस पर भारत सरकार का ध्यान नहीं जा रहा है.
चुनाव बाद विकास व भारत-नेपाल के रिश्ते की मिठास के लिए भारत-नेपाल सीमा पर शांतिपूर्ण आंदोलन होगा. ये बातें पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने गुरुवार को प्रेस वार्ता के दौरान कहीं. उन्होंने कहा कि भारत सरकार की कूटनीति विफल हुई है. इसकी वजह से मधेशियों को उनका हक नेपाल में बने नये संविधान में नहीं मिला है. इसके लिए अबतक चले आंदोलन में कम से कम 50 लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं. साथ ही सैकड़ों आंदोलनकारी हिरासत में रखे गये हैं. कहा, 30 सितंबर को मेची से महाकाली तक 1155 किलोमीटर लंबी मानव शृंखला बनाकर आंदोलनकारियों ने रिकार्ड कायम किया है. मधेश विद्रोह के दौरान नेपाल सरकार व मधेशी दलों के बीच 2006-07 में 22 सूत्री मांग-पत्र पर समझौता हुआ था.
अंतरिम संविधान में समझौता के प्रावधानों को शामिल किया गया था, लेकिन नये संविधान में उन प्रावधानों को हटा दिया. इन मुद्दों में केवल एक प्रदेश का सवाल नहीं है. जनसंख्या के आधार पर संसद में सीट का निर्धारण, समानुपातिक समावेशी प्रतिनिधित्व, निर्वाचन क्षेत्र का पुनरावलोकन दस वर्षों में करने, हिंदी को मान्यता, समान नागरिकता जैसी मांगें प्रमुख हैं. नेपाल सरकार ने जो संविधान पारित किया है, उसमें प्रमुख पदों के केवल वे ही हकदार होंगे, जिनको वंशज के आधार पर नागरिकता मिली हुई है.
भारत की ब्याही बेटियां व उनकी संतान दूसरे दर्जें के नागरिक होंगेे. ऐसी परिस्थिति में भारत सरकार को पूरे मामले में बिना देर किये हस्तक्षेप करना चाहिए, जिससे मधेशियों को उनका पूरा अधिकार मिल सके. इस दौरान सीतामढ़ी के जदयू नेता नागेंद्र प्रसाद सिंह भी मौजूद थे.