..चाहे कुछ भी सोचियेगा आसाराम नहीं हूं

मुजफ्फरपुर: ‘बेदाग करेक्टर हूं मैं बदनाम नहीं हूं, बस्ती का खंडहर हूं तीर्थ धाम नहीं हूं, इस उम्र में भी अच्छे बुरे का ख्याल है, चाहे कुछ भी सोचियेगा आसाराम नहीं हूं’. हाथरस से आये पद्म अलबेला ने जब ये पंक्तियां सुनायी तो गायत्री होटल का कान्फ्रेंस हॉल हंसी के पटाखों से गूंज उठा. मौका […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 26, 2013 9:58 AM

मुजफ्फरपुर: ‘बेदाग करेक्टर हूं मैं बदनाम नहीं हूं, बस्ती का खंडहर हूं तीर्थ धाम नहीं हूं, इस उम्र में भी अच्छे बुरे का ख्याल है, चाहे कुछ भी सोचियेगा आसाराम नहीं हूं’. हाथरस से आये पद्म अलबेला ने जब ये पंक्तियां सुनायी तो गायत्री होटल का कान्फ्रेंस हॉल हंसी के पटाखों से गूंज उठा. मौका था बेसिकॉन की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन का.

अमेठी से आयी संदल अफरोज ने प्रेम गीत ‘तेरी आंखों में समा जाऊंगी मैं काजल बन कर, तेरे कदमों से लिपट जाऊंगी मैं पायल बन कर तरन्नुम में सुना कर महफिल लूट ली. गजलों के दौर में बुलंद शहर से आये सुमन बहार ने ‘किसी की चाह को दिल में बसा के हमने रक्खा है, नजर लग जाये न उसको बचा के हमने रक्खा है’ सुना कर प्रेम को ऊंचाई दी.

कानपुर से आये हेमंत पांडेय ने नेताओं पर कटाक्ष करते कविता सुनाई, जिसे श्रोताओं ने काफी सराहा. पंक्तियां देखें, ‘एक नेता जी जिंदगी से ऊब गये, बिन बताये गंगा जी में डूब गये, जहां होती थी पूजा रैली हो गयी तभी से राम तेरी गंगा मैली हो गयी.

हरदोई के प्रख्यात मिश्र ने ‘शिथिल शिराओं का शोणित कण सिंधु ज्वार सा उबलेगा, भारत माता नपुंसकों का शासन एक दिन बदलेगा’ सुना कर लोगों का दिल जीत लिया. देश प्रेम की भावना को सुलतानपुर के आलम सुलतानपुरी ने कुछ यूं दर्शाया, ‘यही धरती है सबसे महान यहीं पे हमें रहना है, बड़ा प्यारा है हिंदुस्तान यहीं पे हमें रहना है’. लखनऊ के अमित अनपढ़ ने भी लोगों की तालियां बटोरी. इसके अलावा मेरठ के जगदीप शुक्ल अंचल ने वीर रस की कविता सुना कर श्रोताओं को आंदोलित किया.

इस मौके पर करीब एक सौ डॉक्टर मौजूद थे.

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