घर से बाजार तक उत्सवी माहौल

घर से बाजार तक उत्सवी माहौलरिश्तेदारों के आने से घरों में रौनक, पूजा की व्यवस्था में जुटे लोगवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुरछठ को लेकर घरों से बाजार तक उत्सवी माहौल है. रिश्तेदारों के एक साथ जमा होने से घरों में रौनक दिख रही है. चाची, चाचा, भाई-भतीजा से मिलने के बाद घरों में खुशियां बरस रही है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 16, 2015 10:36 PM

घर से बाजार तक उत्सवी माहौलरिश्तेदारों के आने से घरों में रौनक, पूजा की व्यवस्था में जुटे लोगवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुरछठ को लेकर घरों से बाजार तक उत्सवी माहौल है. रिश्तेदारों के एक साथ जमा होने से घरों में रौनक दिख रही है. चाची, चाचा, भाई-भतीजा से मिलने के बाद घरों में खुशियां बरस रही है. सारे लोग छठ का काम निबटाने में लगे हैं. घाट तक दउरा ले जाने की व्यवस्था हो या पूजन सामग्री लाने का, कोई पीछे नहीं है. घर के छोटे बड़े सभी काम में व्यस्त हैं. छठ पूजा के गीत हर तरफ गुंजायमान हैं. हर तरफ उत्सव का माहौल. व्रतियों से पूछ कर तैयार हुई पूजन सामग्री मुजफ्फरपुर. केला का घउर धो कर रखना है या ऐसे ही. प्रसाद का आटा पीसा जा चुका है, उसे कहां रखा जाये. दउरा पर गंगा जल अभी छिड़के या अर्घ तैयार करते समय. छठ करने वाले प्रत्येक परिवारों में खरना के दिन ऐसे सवाल कॉमन थे. आस्था इतनी कि खुद से कुछ नहीं करना है, जब तक कि व्रती न बताये. एक डर यह भी कि कहीं गलती ना हो जाये. ऐसा होगा तो छठी मइया माफ नहीं करेंगी. आस्था, डर व श्रद्धा के पावन पर्व छठ में लोग हर चूक से बचना चाह रहे थे. पूजा का सारा विधान व्रती के कहने के अनुसार किया जा रहा था. समाज के निम्न वर्ग से लेकर उच्च वर्गों तक नियम के पालन में कोई कोताही नहीं. छठी मइया के प्रति ऐसी श्रद्धा कि बिना सवारी के दो कदम भी नहीं चलने वाला व्यक्ति, माथे पर दउरा लेकर घाट पर पहुंचेंगे. फिजिशियन डॉ आमोद कुमार कहते हैं कि छठ के मौके पर वे सारा दिन पूजा कार्य में जुटे रहते हैं. बिना पूछे कोई काम नहीं. जैसे कहा जाता है, वैसे ही करते हैं. हमेशा डर लगा रहता है कि हमसे चूक ना हो जाये. साहित्यकार डॉ पंकज कर्ण कहते हैं कि छठ की महिमा निराली है. छठ हमलोगों को एक सूत्र में जोड़ता है. बड़े-छोटे का कोई भेद नहीं रहता.

Next Article

Exit mobile version