जन्म लेते ही लावारिस हो गयी बिटिया
जन्म लेते ही लावारिस हो गयी बिटिया फोटो : माधव – माली घाट के नाका मंदिर के पास चबूतरे पर लावारिस हालत में मिली मासूम बच्ची- खुदीराम बोस स्मारक समिति चिता भूमि बचाओ अभियान समिति ने बढ़ाया बिटिया के लिए हाथ नीरज मिश्र, मुजफ्फरपुर जिस कोख ने उसे ठुकराया था, उसका तो पता नहीं, लेकिन […]
जन्म लेते ही लावारिस हो गयी बिटिया फोटो : माधव – माली घाट के नाका मंदिर के पास चबूतरे पर लावारिस हालत में मिली मासूम बच्ची- खुदीराम बोस स्मारक समिति चिता भूमि बचाओ अभियान समिति ने बढ़ाया बिटिया के लिए हाथ नीरज मिश्र, मुजफ्फरपुर जिस कोख ने उसे ठुकराया था, उसका तो पता नहीं, लेकिन जिन्होंने उसे जिंदा रखने की कोशिश की, वे बेहद खुश हैं. महज चंद घंटों में न जाने तीन दिन की मासूम ने कौन से जादू कर दिया कि उसे बचाने के लिए शहीद खुदीराम बोस स्मारक चिता भूमि बचाओ अभियान समिति के साकेत ने हर वो कोशिश की, जो उनके बस में थी. मासूम की जान तो बच गयी, लेकिन इस घटना ने समाज के समक्ष कई सवाल छोड़ दिये. बेहद शर्मनाक घटना है मुजफ्फरपुर के लिए. सवाल है पुरुष प्रधान समाज पर, और कटघरे में है वह पारिवारिक व्यवस्था जिस हम अक्सर इतराते हैं. माली घाट नाका के पास स्थित मंदिर के चबूतरे पर मंगलवार की शाम तीन दिन की मासूम बच्ची मिली. साकेत के मोबाइल फोन पर करीब पांच बजे फोन आता है. रीसिव करने पर उधर से आवाज आयी कि एक मासूम मंदिर के फर्श पर लेटी हुई रो रही है. फोन पर इतना सुनते ही साकेत उसे लाने के लिए चल पड़े. पुलिस की देखरेख में उसकी नाजुक स्थिति को देखते हुए जिला अस्पताल ले गये. डाक्टर प्राथमिक उपचार के बाद उसे एसकेएमसीएच रेफर कर देते हैं. इस बीच मेडिकल में डॉक्टरों ने उसका इलाज किया और बताया कि बच्ची को अब ममता के छांव की जरूरत है. सीमा ने दिखाई दरियादिली एक कोख जन्म देकर उसे लावारिस छोड़ गयी, तो दूसरी कोख ने बिटिया की ममता का कद्र जाना और अपना ममत्व देने के लिए पल भर तैयार हो गयी. मालीघाट की ही रहने वाली ममता ने पांच दिन पहले ही एक बिटिया को जन्म दिया है. घर में बेटी की किलकारी गूंजी, तो घर वाले खुशी से झूम उठे. लेकिन कहीं से ममता को पता चला कि एक और बेटी जिदंगी और मौत से जद्दोजहद कर रही है, उसे जरूरत है उस दूध की, जो सिर्फ वह दे सकती है. उन्होंने उस मासूम बिटिया को दूध देकर मानवता व ममता की अद्भुत मिसाल दी. समाज के कथित पहरुओं पर है प्रश्नचिह्न ये कहना आसान है जिस कोख से उसका जन्म हुआ, दोषी सिर्फ वही है. सवाल तो यह है कि मां कभी भी, किसी भी दशा में कुमाता नहीं हो सकती, यह सर्वविदित है. आखिर किस मजबूरी ने उस मां को अपनी संतान फेंकने पर विवश कर दिया. दुर्भाग्य तो इस बात का है कि समाज का वो वर्ग जिन्हें जागरूक माना जाता है, लावारिस नवजात के मिलने की खबर पर भी चुप्पी नहीं तोड़ पाया. सोशल एक्टिविस्ट साकेत इस घटना से बेहद आहत हैं. बाेले, काश बेटियों की सुरक्षा पर लोग इतराते, तो आज इस तरह की घटनाएं नहीं होतीं.