ब्लड बैंक का लाइसेंस नहीं, उपकरण पर 56 लाख खर्च

मुजफ्फरपुर : एसकेएमसीएच में इलाज के नाम पर जबर्दस्त खेल हो रहा है. ब्लड बैंक का लाइसेंस मिला नहीं था, लेकिन इससे पहले ही लाखाें रुपये के सामान खरीद लिये गये थे. खरीदी गयी मशीन व उपकरण काम नहीं आये. एसकेएमसीएच प्रशासन ने सामान की खरीदारी पर 56 लाख रुपये बहा दिये. हद तो राज्य […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 25, 2015 9:29 AM
मुजफ्फरपुर : एसकेएमसीएच में इलाज के नाम पर जबर्दस्त खेल हो रहा है. ब्लड बैंक का लाइसेंस मिला नहीं था, लेकिन इससे पहले ही लाखाें रुपये के सामान खरीद लिये गये थे. खरीदी गयी मशीन व उपकरण काम नहीं आये. एसकेएमसीएच प्रशासन ने सामान की खरीदारी पर 56 लाख रुपये बहा दिये. हद तो राज्य औषधि नियंत्रक कार्यालय, पटना ने की. पटना से एक पत्र दिल्ली पहुंचाने में तीन वर्ष लगा दिया. यहां तक कि स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (एसबीटीसी) ने ब्लड बैंक को एनओसी देने में एक वर्ष लगा दिया. इस कारण खरीदे गये उपकरण बरबाद होते रहे. राज्य औषधि नियंत्रक व ब्लड बैंक के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ने मनमानी की है. अधिकारियों की इस मनमानी का खुलासा महालेखाकार की ऑडिट रिपोर्ट 2014-15 से हुआ है.

ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि एसकेएमसीएच, मुजफ्फरपुर के ब्लड बैंक को नाको, बीएसएसीएस, यूएनओपी द्वारा मशीनों व उपकरणों की आपूर्ति हुई थी. इसकी उपयोगिता वाले अभिलेखों की जांच की गयी तो चौंकाने वाले तथ्य निकले. सामान खरीद लिया गया था, लेकिन ब्लड बैंक का लाइसेंस प्राप्त नहीं था. इस कारण 16 प्रकार की मशीन व उपकरण निष्क्रिय हो गये और मरीजों के इलाज में काम नहीं आये. चार मशीनों के मूल्य का कोई रिकॉर्ड रिकॉर्ड नहीं था. बाकी 12 तरह के जो सामान खरीदे गये थे, उनका मूल्य 55.98 लाख रुपये था.

नौ तरह की मशीन व उपकरण के स्थापन और वारंटी अवधि से संबंधित कोई कागजात नहीं था. कई मशीन व उपकरणों स्थापन की तिथि और स्टॉक में इंट्री की तिथि में अंतर था. दो तरह की मशीन और उपकरण की शुरुआती वारंटी और एएमसी मार्च 2018 तक वैध मिला.

एक डीप फ्रीजर (-80 सी) को 25 मई 2010 को प्राप्त दिखाया गया, लेकिन इसमें राइट्स लिमिटेड के 5 सितंबर 2011 के आपूर्ति आदेश के विपरीत प्राप्त डीप फ्रीजर (-80 सी) के क्रम संख्या को दिखाया गया है. यानी दोनों कागजातों में यहां भी अंतर मिला.

सिलसिला आगे भी बढ़ता रहा. ब्लड बैंक के लाइसेंस के लिए राज्य औषधि नियंत्रक ने औपचारिकता पूर्ण होने के बाद अप्रैल 2013 में जानकारी दी कि लाइसेंस के लिए चीफ लाइसेंसिंग ऑथोरिटी, नयी दिल्ली को फॉर्म 28 सी भेजा जा चुका है. इसके बाद 18 सितंबर 2013 को राज्य औषधि नियंत्रक ने सीडीएस सीओ, पूर्वी खंड कोलकाता व विशेषज्ञ के साथ संयुक्त निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान कई कमी मिली़. इन कमियों का निराकरण प्रतिवेदन अधीक्षक ने जून 2014 में भेजा. सितंबर 2014 में स्मारित किया.

इस बीच ऑडिट और एसकेएमसीएच प्रशासन के बीच कई बिंदुओं पर जिच कायम रहा. फिर ऑडिट ने अधीक्षक के जवाब के साथ अन्य बिंदुओं का अध्ययन किया. इसके बाद ऑडिट की टिप्पणी आयी. राज्य औषधि नियंत्रक कार्यालय ने निरीक्षण के बाद एसकेएमसीएच को निरीक्षण प्रतिवेदन उपलब्ध नहीं कराया. राज्य औषधि नियंत्रक ने एसकेएमसीएच के फॉर्म सी में आवेदन (4 मई 2010) करने के करीब तीन वर्ष बाद अप्रैल 2013 में चीफ लाइसेंसिंग ऑथोरिटी, नयी दिल्ली को फॉर्म सी भेजा.

वर्तमान में अस्पताल के पत्र (19 जून 2014) को लंबित रखा. यह राज्य औषधि नियंत्रक कार्यालय की मनमानी व शिथिलता है. यहां तक कि स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (एसबीटीसी) ने भी एनओसी निर्गत करने में एक वर्ष लगाया. प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी ब्लड बैंक ने अस्पताल अधीक्षक को कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने मशीन व उपकरण के मूल्य, स्थापन और वारंटी से संबंधित कागजात व स्टॉक का संधारण सही से नहीं. राज्य औषधि नियंत्रक, एसबीटीसी, ब्लड बैंक के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी पर अनुशासनिक कार्रवाई करने व मशीन को क्रियाशील बनाने के लिए विभागीय सचिव को अवगत कराना जरूरी है.

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