मीनापुर: नक्सल प्रभावित तुरकी गांव मुहर्रम के अवसर पर सांप्रदायिक सौहार्द का मिसाल बना हुआ है. औलाद के लिए यहां के हिंदू परिवार वर्षो से ताजिया बनाते आ रहे हैं. तुरकी पुरानी बाजार पर ताजिया मिलान भी करते हैं.
खास बात तो यह है कि मुहर्रम के दौरान यहां नवाहख्वानी व फतेहाख्वानी भी होती है. तुरकी माली टोला के देवनंदन चौधरी संतान सुख से वंचित थे. बच्चे का जन्म भी होता था तो जिंदा नहीं रहता था. उन्होंने मन्नत मांगी की अगर उनका बच्च सलामत रहेगा तो ताजिया बनायेंगे. आज भी उनका पुत्र योगेंद्र चौधरी ताजिया बना कर अपने पिता के परंपरा को बरकरार रखे हुए है. गांव के ही प्रयाग चौधरी का कोई वंश नहीं था. उन्होंने औलाद मांगी तो उनकी मनोकामना पूरा हुई.
प्रयाग चौधरी ने ताजिया बनाया. इनका पुत्र मेथुर चौधरी लंबे समय तक ताजिया बनाये. अब उनका पोता रामकुमार चौधरी सद्भावना के इस परंपरा को बरकरार रखे हुए है. गांव के भरत श्रीवास्तव 50 वर्षो से ताजिया बनाते हैं. बात 1962 की है. भरत को नाक में गंभीर घाव हो गया. उस साल इस बीमारी से कई लोगों की मौत हो गयी थी. भरत के पिता बैद्यनाथ प्रसाद व माता चिंतित रहने लगे.
उन्होंने मन्नत मांगी की पुत्र उनका स्वस्थ हो जायेगा तो उनका परिवार ताजिया बनायेगा. पुत्र के चंगा होने पर उन्होंने विशाल ताजिया बनाया गया. आज भी भरत इस परंपरा को बरकरार रखे हुए है. सरपंच नंदकिशोर चौधरी बताते हैं कि तुरकी का ताजिया मिलान आज भी मिसाल है. उन्होंने लोगों से शांति सद्भावना की अपील की.