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हमारे पास हजारों अज्ञात वायरस, नहीं हो सकी खोज

विनय मुजफ्फरपुर : यदि आप वायरस को हलके में ले रहे हैं, तो सावधान हो जाये. सामान्य रूप से वायरल फ्लू व डायरिया को ही लोग वायरस की बीमारी समझते हैं, लेकिन कई ऐसे वायरस हैं, जो गंभीर बीमारी पैदा करते हैं. खास बात यह है कि इनसे बचाव का कोई साधन नहीं है. हम […]

विनय
मुजफ्फरपुर : यदि आप वायरस को हलके में ले रहे हैं, तो सावधान हो जाये. सामान्य रूप से वायरल फ्लू व डायरिया को ही लोग वायरस की बीमारी समझते हैं, लेकिन कई ऐसे वायरस हैं, जो गंभीर बीमारी पैदा करते हैं. खास बात यह है कि इनसे बचाव का कोई साधन नहीं है. हम वायरस जनित बीमारियों से पीडि़त व्यक्ति के संपर्क में आते उससे प्रभावित हो जाते हैं.
मेडिकल सांइस में इसे संचारी रोग कहा गया है. वायरस का कीटाणु जितना मजबूत होता है, वह उतना ही मर्ज बढ़ाता है. हमारे आसपास ऐसे हजारों वायरस वायुमंडल में घूम रहे हैं, जिनकी पहचान तक नहीं हो पायी है. दवा की बात तो दूर.
एचआइवी व सर्वाइकल कैंसर. विशेषज्ञ कहते हैं कि एचआइवी व सर्वाइकल कैंसर का कारण भी वायरस ही है. मनुष्य के शरीर में एक बार प्रवेश कर गया, तो उससे बचना मुश्किल. सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए तो वैक्सीन उपलब्ब्ध है, लेकिन एचआइवी के लिए अब तक इजाद नहीं हो पाया है.
कुछ दवाओं के जरिये एचआइवी पर काबू पाने की कोशिश की जाती है. ऐसा वरिष्ठ चिकित्सक डॉ निशींद्र किंजल्क कहते हैं. उन्होंने कहा कि देश-विदेश में रिसर्च हो रहे हैं, लेकिन कई सारी बीमारियों का इलाज अब तक नहीं निकल पाया.
वैक्सीन भी नहीं हो रहा प्रभावी
वायरस के खात्म के लिए वैक्सीन भी प्रभावी नहीं हो रहा है. स्वाइन फ्लू के वायरस एच-वन, एन वन की खोज के बाद उसके लिए वैक्सीन का इजाद किया गया, लेकिन इसके वायरस ने अपनी जेनेटिक संरचना बदल ली. यह एच-टू, एच-थ्री या एच-टू. एच-फाइव भी हो सकता है. वायरस की पहचान चिकित्सकों के लिए दूर की कौड़ी है. एक वायरस की पहचान के लिए दुनिया भर के स्वास्थ्य वैज्ञानिक सालों शोध करते हैं, लेकिन जब तक पता चलता है, तब वायरस का स्वरूप बदल गया होता है. उसका डॉक्सीरिबो न्यूकेलिक एिसड (डीएनए) व रिबो न्यूकेलिक एसिड (आरएनए) बदल जाता है.
असंतुलन से बढ़ रहा वायरस. विशेषज्ञों का मानना है कि प्राकृतिक असंतुलन से वायरस में बढ़ोतरी हो रही है. परमाणु विकिरण, प्रदूषण, ओजोन में छेद व अंधाधुंध पेड़ों की कटाई इसका मुख्य कारण है. कीटनाशक का इस्तेमाल व प्रदूषण से रोज नये वायरस उत्पन्न हो रहे हैं. इसमें से कौन मानव शरीर के लिए हानिकारक है, यह कहना मुश्किल है. कई तरह के वायरस अपने माध्यम को नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन उसके संपर्क में आने वाले लोगों को बीमार कर देतेा है.
बीमारियों का इलाज मुश्किल. सामान्य रूप से एंटीबायोटिक दवा से वायरस को नहीं मारा जा सकता. डॉक्टर भी वायरस जनित बीमारियों के लिए दवा नहीं देते, लेकिन वायरस की कई बीमारियों के बाद दूसरी बीमारियां नहीं हो जाये. इस डर से डॉक्टर एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करते हैं. यह मरीजों के लिए हानिकारक होता है. एंटीबायोटिक्स प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा देती है. इससे वायरस तो नहीं मरता, लेकिन आंतों में रहने वाले अच्छे बैक्टीरिया मर जाते हैं. इससे भी कई तरह की बीमारियां होती हैं.
मेडिकल साइंस ने पिछले कुछ वर्षों में प्रगति की है. अब हम वायरस के छोटे कीटाणु पहचानने में सक्षम हो रहे हैं, लेकिन रेडियेशन के कारण इसकी जेनेटिक संरचना में लगातार बदलाव हो रहा है. इसे मारने के लिए दवा बनती है, तो वायरस भी खुद को मजबूत कर अपना स्वरूप बदल लेता है. फिर वह दवा कारगर नहीं होती. इससे बचाव का एकमात्र तरीका इसके संक्रमण से बचना है.
डॉ निशींद्र किंजल्क, वरीय फिजिशियन
वायरस जनित बीमारियों में दवा देना मुश्किल होता है. जितनी बीमारियों पर रिसर्च हो चुका है, उसके लिए तो डोज निर्धारित है, लेकिन साधारण वायरस जनित बीमारियों में एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल नहीं होता. कई ऐसे मरीज आते हैं जो पहले वायरस फ्लू से पीड़ति थे, लेकिन एक सप्ताह के बाद फंगल व बैक्टीरियल इंफेक्शन के शिकार हो गये.
डॉ विजय कुमार, श्वांस रोग विशेषज्ञ

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