धनंजय पांडेय
मुजफ्फरपुर : शिक्षा विकास की कड़ी होती है, लेकिन जिले में शिक्षा विभाग का एक और साल झटकों से उबरने की कोशिश में ही बीत गया. वर्ष 2015 में कुछ अच्छी चीजें जरूर हुईं जिसने उम्मीदें बढ़ायीं, लेकिन उनके ऊपर ऐसी तमाम घटनाएं भारी पड़ीं जिसने बेहतरी की उम्मीदों पर ही पानी फेर दिया. खासकर शिक्षकों के नियोजन की निगरानी जांच और विभागीय अधिकारियों की खटपट ने साल के अंत तक पीछा नहीं छोड़ा. हां, इन सबके बीच आने वाले साल के लिए कुछ अधूरी ख्वाहिशें भी छूट रही हैं, जिनके पूरे होने पर ही जिले में खुशहाली की पटकथा लिखी जा सकती है.
निगरानी जांच के नाम रहा साल
शिक्षा विभाग के लिए सबसे बड़ा झटका इस साल के लिए निगरानी जांच ही है. वर्ष 2006 से 2014 तक हुए नियोजन की जांच हाइकोर्ट के निर्देश पर निगरानी टीम कर रही है, जिससे जिले में खलबली की स्थिति है. वैसे छह महीने गुजर जाने के बाद भी जांच अधूरी है. जांच के डर से 17 पुस्तकालयाध्यक्षों ने खुद ही नौकरी छोड़ दी है. फरजी नियोजन की आंच ने अधिकारियों को भी लपेटे में लेना शुरू कर दिया है. नवंबर में मीनापुर बीआरसी कार्यालय में कागजात जला दिये गये. इसमें बीइओ सहित अन्य के खिलाफ विभाग ने ही मुकदमा दर्ज कराया है. वहीं लापरवाही बरतने के मामले में कई प्रखंड व पंचायत नियोजन इकाइयों को नोटिस भेजी गयी है. हां, साल भर से चल रही नियोजन की प्रक्रिया पूरी कर जिला परिषद ने विभाग को 243 शिक्षक जरूर दे दिये.
आरडीडीइ व डीइओ विवाद
बेहतरी की उम्मीदों को अधिकारियों की खटपट ने भी झटका दिया. वैसे तो शिक्षा विभाग में बाबुओं की मनमानी के चलते कई अधिकारी आपस में ही जूझते रहे, लेकिन चलते-चलते आरडीडीइ व डीइओ के विवाद ने गंभीर रूप ले लिया. मामला डीपीओ स्थापना के कार्यभार का था, जिसे डीएम के निर्देश पर डीइओ ने बदला था. इसमें आरडीडीइ के हस्तक्षेप और डीइओ के पक्ष में डीएम के खड़े होने से मामला हाई प्रोफाइल हो गया. फिर एक डीपीआे को विभाग छीनकर खाली बैठाने व नगर अवर शिक्षा अधिकारी का निलंबन भी विभाग के लिए झटका ही साबित हुआ.
शिक्षकों की बनी रही कमी
अब बात करें स्कूलों की, तो वहां भी कुछ नहीं बदल सका. शिक्षकों व संसाधनों की कमी के चलते पढ़ाई बाधित हुई. माध्यमिक विद्यालयों में अंग्रेजी, गणित, विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों के शिक्षकों की कमी बनी रही. वर्ग कक्षा भी नियमित नहीं चल सके. सत्र के शुरूआत में प्राकृतिक कहर से पढ़ाई बाधित हुई, तो उसके बाद राशि वितरण व चुनाव के चलते क्लास नहीं चल सके. विभाग के लिए मुश्किल की बात यह रही कि स्कूलों में बुनियादी बदलाव के लिए कराेड़ों रुपये अलग-अलग मद में दिए थे, लेकिन स्कूलों से उसका हिसाब लेने में पसीना छूट गया.
सिवाय कैलेंडर के कुछ नहीं बदला
शिक्षा विभाग में बदला कुछ नहीं, सिवाय कैलेंडर के. साल के शुरूआत में भी शिक्षक समस्याओं से जूझते रहे, और समापन पर भी उनकी झोली में केवल समस्याएं ही है. वेतन भुगतान, प्रवरण वेतनमान और प्रमोशन को लेकर अनवरत आंदोलन और चेतावनी का क्रम चला. विभागीय अधिकारियों ने समय-समय पर आश्वासन भी दिया, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. स्नातक शिक्षकों की प्रोन्नति के लिए एक साल पहले ही वरीयता सूची का प्रकाशन हो चुका है. अनुपालन नहीं हुआ. शिक्षक नेताओं का कहना है कि उनके लिए तो समस्याओं से भरा एक और साल गुजर रहा है.