पंचतत्व में विलीन हुए कवि पंकज सिंह
पंचतत्व में विलीन हुए कवि पंकज सिंहदिल्ली के निगमबोध घाट पर दी गयी मुखाग्निवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर . सातवें दशक के महत्वपूर्ण कवि पंकज सिंह सोमवार की दोपहर पंचतत्व में विलीन हो गये. दिल्ली के निगमबोध घाट पर उनकी छोटी पुत्री दिव्या ने मुखाग्नि दी. इस मौके पर उनकी पत्नी सविता सिंह, बड़े भाई मनोज सिंह, […]
पंचतत्व में विलीन हुए कवि पंकज सिंहदिल्ली के निगमबोध घाट पर दी गयी मुखाग्निवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर . सातवें दशक के महत्वपूर्ण कवि पंकज सिंह सोमवार की दोपहर पंचतत्व में विलीन हो गये. दिल्ली के निगमबोध घाट पर उनकी छोटी पुत्री दिव्या ने मुखाग्नि दी. इस मौके पर उनकी पत्नी सविता सिंह, बड़े भाई मनोज सिंह, भतीजा अमिताभ गौतम, कमल वाजिद नकवी, वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन, पुष्पेश पंत, निधिश त्यागी, पूर्व सहयोगी मधुकर उपाध्याय, सतीश जैकब, वरिष्ठ कवि अशोक बाजपेयी, मंगलेश डबराल, डॉ अनामिका, कांग्रेसी नेता तारिक अनवर, पूर्व विधायक नसीब सिंह सहित सैकड़ों कलमकार व पत्रकार मौजूद थे. …………………………………………………… असहिष्ष्णुता के खिलाफ पंकज ने लड़ी लंबी लड़ाई – सुलोचना वर्मामुजफ्फरपुर . हिंदी साहित्य के मशहूर कवि व पत्रकार पंकज सिंह 26 दिसंबर को हमें अलविदा कह गये. उनके जाने के साथ ही साहित्य व पत्रकारिता जगत का एक सूरज अस्त हो गया. बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मे कवि पंकज सिंह की स्कूली शिक्षा उनके पैतृक गांव चैता (पूर्वी चम्पारण) में हुई थी. श्री सिंह ने बिहार विश्वविद्यालय से इतिहास ऑनर्स व एम ए करने के बाद जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में फ्रेंच विषय की पढ़ाई की थी. विलक्षण प्रतिभा के धनी होने के साथ ही बेहद संवेदनशील और साहसी इंसान थे. जिससे भी मिलते, उन्हें आत्मीय बना लेते. एक मृदुभाषी, जिसमे जन प्रतिरोधों की तरफदारी करने का अदम्य साहस था.| हिंदी साहित्य जगत में, जहां नवागंतुकों के भाषागत त्रुटियों की कड़ी आलोचना होती रही है और कई बार उपहास तक उड़ाया गया है, श्री सिंह अच्छा लिखने पर युवा साहित्यकारों का हौसला बुलंद करते और भूल होने पर एक शिक्षक की भांति अधिकारपूर्वक त्रुटियों को सुधारते. उनका बड़प्पन ही था कि इतनी बड़ी हस्ती होने के बावजूद भी युवाओं से मित्रवत पेश आते. कभी किसी को अपने बड़े होने का अहसास ही नहीं होने देते. वसुधैव कुटुंबकम को जीवन का फलसफा बनाने वाले कवि पंकज सिंह इतने ही उदार थे कि उनसे मिलना, किसी अपने से मिलने जैसा होता था. समाज में बढ़ती हिंसक असहिष्णुता के खिलाफ लेखकों के प्रतिरोध-आंदोलन में उनकी लगातार भागीदारी रही. उनका झुकाव वामपंथी विचारधारा की ओर था. आपातकाल के दौरान वे भूमिगत रहे, लेकिन सृजनरत रहे. अपने ब्लॉग पर बतौर आत्मकथ्य उन्होंने लिखा \\\\ आज भी हम आत्म-विश्लेषण, आत्म-संशय और प्रश्नों से बचते हैं. आज भी हम एक हास्यास्पद संकीर्णतावाद में कैद हैं और असहमति या कि प्रश्नों को लेकर बिल्कुल असहिष्णु हैं. क्या यह अवश्यकरणीय नहीं हो चला है कि भारतीय समाज के संकटों और सामूहिक अस्मिता और अभिमान के बिखराव से विचलित सामाजिक-सांस्कृतिक सक्रियतावादी एक-दूसरे को समझने की कोशिशों में ज्यादा से ज्यादा साथ आएं.समकालीन हिंदी कविता के सातवें दशक के महत्वपूर्ण कवि पंकज सिंह की कविताएं हिंदी जगत में अपनी पहचान रखती हैं. उन्होंने कम, पर बेहद महत्वपूर्ण लिखा. सन 1972 में युवकधारा पत्रिका का सम्पादन किया. कई पत्र-पत्रिकाओं से जुड़ने के बाद उन्होंने रूसी और फ्रांसीसी भाषाओं में कविताऒं का अनुवाद भी किया. उन्हें मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, शमशेर सम्मान, नई धारा सम्मान और रामजीवन शर्मा \\\\जीवन\\\\ सम्मान से नवाजा जा चुका है. उन्होंने साल 2008-09 में साहित्य अकादमी सम्मान लेने से इनकार कर दिया था. उनकी कविताओं से उनके सरोकार और संवेदनायें स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं-\\\\गेरू से बनाओगी तुम फिरइस साल भीघर की किसी दीवार पर ढेर-ढेर फूलऔर लिखोगी मेरा नामचिंता करोगीकि कहां तक जाएंगी शुभकामनाएँहजारों वर्गमीलों के जंगल मेंकहां-कहां भटक रहा होऊंगा मैंएक खानाबदोश शब्द-सा गूंजता हुआशब्द-सा गूंजता हुआसारी पृथ्वी जिसका घर है