सरकारी अस्पतालों में एक साल से दवाएं नहीं

सरकारी अस्पतालों में एक साल से दवाएं नहींएक महीने में ही एक लाख की दवा समाप्तअधिकारियों के टेबुल पर घूम रही दवा खरीद की फाइलदवाओं की किल्लत से मरीजों को हो रही परेशानीवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल में मरीजों को दवाएं नहीं मिल रही हैं. पिछले एक साल से यहां दवाओं की किल्लत बरकरार है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 14, 2016 8:49 PM

सरकारी अस्पतालों में एक साल से दवाएं नहींएक महीने में ही एक लाख की दवा समाप्तअधिकारियों के टेबुल पर घूम रही दवा खरीद की फाइलदवाओं की किल्लत से मरीजों को हो रही परेशानीवरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर सदर अस्पताल में मरीजों को दवाएं नहीं मिल रही हैं. पिछले एक साल से यहां दवाओं की किल्लत बरकरार है. इस दौरान स्वास्थ्य विभाग की ओर से जिले सहित प्रत्येक पीएचसी में दवाओं की खरीद के लिए एक-एक लाख रुपये दिया गया था. कुछ दवाएं एसकेएमसीएच से ली गयी थीं. लेकिन वे दवाएं भी एक महीने में समाप्त हो गयी. नतीजा यहां आने वाले मरीजों को बाहर से दवा खरीदनी पड़ रही है. भरती होने वाले मरीज जो सक्षम है, वही दवा खरीद पा रहे हैं. रोगी कल्याण समिति की ओर से भी दवा खरीद कर मरीज को नहीं दी जा रही है, जबकि दवा खरीद की फाइल अभी अधिकारियों के टेबुल पर ही घूम रही है.दवाओं के लिए रोज उलझते हैं मरीजसदर अस्पताल के चर्म रोग विभाग के डॉक्टर आरएन शर्मा कहते हैं कि दवाओं के लिए रोज मरीजों से उलझना पड़ता है. मरीज जब दवा लिखे पुरजे को लेकर दवा काउंटर पर जाते हैं तो दवा नहीं मिलती. मरीज फिर वापस आकर दवा की मांग पर उलझ जाते हैं. यह हालत रोज की है. जब तक मरीजों के लिए दवाएं नहीं आती, इलाज होना मुश्किल है. हमलोगों के पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है.कर्ज लेकर खरीद रहे दवाअस्पताल के मेडिकल वार्ड में भरती रवींंद्र मंडल कर्ज लेकर दवाएं मंगा रहे हैं. अस्पताल से कहा गया कि दवाएं नहीं हैं. इलाज कराना है तो दवा खरीदना होगा. रवींद्र कहते हैं कि वे राजस्थान में मजदूरी करते हैं. बुधवार की सुबह मुजफ्फरपुर स्टेशन पर ही गिर गये. इससे उनके पैर में बुरी तरह चोट आयी. यहां उन्हें भरती तो कर लिया गया, लेकिन दवाएं नहीं दी गयीं. डॉक्टर से जब उन्होंने कहा तो बाहर की दवा लिख दी. उनका भाई डेढ़ हजार कर्ज लेकर आया. इसमें 1046 रुपये की दवा आयी है. हम तो यह सोचकर यहां आये थे कि यहां इलाज हो जायेगा. लेकिन यहां तो बिना रुपये का कुछ नहीं होता.भरती के साथ ही खरीदी 170 की दवआइसीयू में भरती फकुली की रामपरी देवी सांस रोग से पीड़ित है. भरती होने के साथ ही उनके परजिन 170 की दवा नहीं खरीदते तो उनकी जान नहीं बचती. रामपरी देवी कहती हैं कि भरती होने के बाद उनके पुरजे पर दवा लिख कर कहा गया कि बाहर से मंगवा लीजिये, यहां दवा नहीं है. उनके बेटे ने दवा लाकर दी. अब वह दवा भी समाप्त हो गयी है.रामपरी ने कहा कि पास में रुपये नहीं हो तो यहां जान बचना मुश्किल है.सुबह से शाम हो गयी, नहीं मिली दवाआइसीयू में भरती पुरानी गुदड़ी के राम मोहन बॉडी पेन से ग्रसित हैं. वे गुरुवार की सुबह भरती हुए थे, लेकिन शाम तक उन्हें दवा नहीं मिली. राम मोहन ने कहा कि पुरजा लेकर बेटा गया है, उन्हें पता नहीं है कि पुरजे पर कौन सी दवा लिखी है. लेकिन उनके पूरे शरीर में दर्द हो रहा है, भरती होने के बाद से वे ऐसे ही हैं. उन्हें यहां से कोई दवा नहीं मिली है.वर्जन-दवा खरीद की फाइल डीएम के पास गयी है. वहां से स्वीकृति मिलने के बाद आगे की कार्रवाई होगी.डॉ ललिता सिंह, सिविल सर्जन

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