ठंड की तरह इस बार कमजोर रहेगा मानसून!
मुजफ्फरपुर: अलनीनो की मजबूती व पश्चिमी विक्षोभ की कमजोरी ने इस बार ठंड का रास्ता रोक दिया. न थरथराने वाली ठंडी हवा चल रही, न जरूरत के अनुसार दिसंबर व जनवरी में बारिश हुई. इस वर्ष गेहूं की फसल के उत्पादन के लायक ठंड में कमी रही. दिसंबर व जनवरी की ठंड वैसी नहीं रही, […]
मुजफ्फरपुर: अलनीनो की मजबूती व पश्चिमी विक्षोभ की कमजोरी ने इस बार ठंड का रास्ता रोक दिया. न थरथराने वाली ठंडी हवा चल रही, न जरूरत के अनुसार दिसंबर व जनवरी में बारिश हुई. इस वर्ष गेहूं की फसल के उत्पादन के लायक ठंड में कमी रही. दिसंबर व जनवरी की ठंड वैसी नहीं रही, जिसके लिए ये दोनों महीने जाने जाते हैं. अक्सर जनवरी में ठंड शबाब पर रहती है, लेकिन इस बार लोगों को गरमी से फसल बचाने की चिंता लगी है. दो दिनों के तापमान को छोड़ दिया जाये, तो लुढ़कने की बजाय तापमान 25.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा. इतना तापमान फरवरी के अंत में रहता था. दोपहर में तीखी धूप से पसीना भी निकला.
मजबूत है अलनीनो
कृषि विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि दिसंबर व जनवरी के मौसम में मॉनसून का भविष्य छिपा होता है. अलनीनो इतना मजबूत है कि जून से अक्तूबर तक का मौसम इसी पर निर्भर करेगा. मांझी कृषि विज्ञान केंद्र के डॉ आरके झा बताते हैं कि दिसंबर व जनवरी मॉनसून का गर्भ माना जाता है. अभी जैसा मौसम रहेगा, वैसा ही जून से लेकर अक्तूबर तक रहने की संभावना बनी रहती है. दिसंबर व जनवरी में बारिश नहीं हुई, तो मॉनसून की बारिश पर इसका असर पड़ सकता है. दिसंबर व जनवरी अलनीनो के प्रभाव से गर्म रहा. मई से अक्तूबर तक गर्मी रह सकती है.
तापमान बढ़ने से अलनीनो प्रभाव
इस भविष्यवाणी का बड़ा आधार प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान बढ़ने की वह घटना है, जिसे अलनीनो कहा जाता है. इसका नतीजा मॉनसून के कमजोर होने के रूप में सामने आता है. सहायक निदेशक पौधा संरक्षण देवनाथ प्रसाद बताते हैं कि पहले उम्मीद की जा रही थी कि पुरवा हवा चलने और बादल लगने से बारिश हो सकती है, लेकिन अब वह उम्मीद भी खत्म हो गयी. तापमान भी अधिक रहा.
जाड़े में गरमी का रिकॉर्ड
मौसम विभाग के डॉ ए सत्तार का कहना है कि कुछ दिनों पहले का मौसम अच्छा नहीं था. इस बार शीत ऋतु में गर्मी ने कई रिकॉर्ड तोड़े. अलनीनो के कारण लगातार तापमान में उतार-चढ़ाव हुआ. उत्तर से भी हवाएं अधिक नहीं आयीं. इससे तापमान नहीं गिरा. तापमान अधिक रहने का असर फसलों पर पड़ रहा है. गेहूं के पौधे लंबे हो रहे हैं.