परिस्थितियों ने बनाया डाकू, जेल से छूटे तो पढ़ाने लगे अब खेती कर संवार रहे बच्चों की तकदीर

मुजफ्फरपुर: औराई में राजखंड के रहनेवाले अनिरुद्ध सिंह का मामला अंगुलीमाल के हृदय परिवर्तन जैसा है, लेकिन इन्हें समझाने के लिए किसी बुद्ध की जरूरत नहीं पड़ी. जेल गये, तो इन्हें खुद महसूस हुआ कि चोरी-डकैती का रास्ता अच्छा नहीं है. इसी के बाद पठन-पाठन में लग गये.प्रभात खबर डिजिटल प्रीमियम स्टोरीNepal Violence : क्या […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 23, 2016 8:45 AM

मुजफ्फरपुर: औराई में राजखंड के रहनेवाले अनिरुद्ध सिंह का मामला अंगुलीमाल के हृदय परिवर्तन जैसा है, लेकिन इन्हें समझाने के लिए किसी बुद्ध की जरूरत नहीं पड़ी. जेल गये, तो इन्हें खुद महसूस हुआ कि चोरी-डकैती का रास्ता अच्छा नहीं है. इसी के बाद पठन-पाठन में लग गये.

आंखों की रोशनी से साथ देना बंद किया, तो खेती पर ज्यादा ध्यान देने लगे. अब सफल किसान के तौर पर गांव में जाने जाते हैं. अनिरुद्ध के तीन बच्चों में एक नौकरी कर रहा है, जबकि दो उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. अनिरुद्ध अब 72 साल के हो चुके हैं, लेकिन 1963 में जब इन्हें रुन्नीसैदपुर के स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा फस्र्ट डिवीजन में पास की थी, तो घर के साथ आस पड़ोस के लोगों ने खुशी मनायी थी, लेकिन परिजनों में एक आशंका भी थी, क्योंकि उनकी माली हालत ऐसी नहीं थी, जो अनिरुद्ध को आगे की शिक्षा दिला पाते, तब किशोर से युवक बन रहे अनिरुद्ध आगे पढ़ना चाहते थे, लेकिन मन मार कर रह गये.

इस बीच उनकी संगति ऐसे लोगों से हुई, जिन्हें समाज में अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता, लेकिन अनिरुद्ध को इनका साथ अच्छा लगने लगा और कुछ ही दिनों में ये इलाके के चर्चित डकैतों में शुमार हो गये. पुलिस के लिए चुनौती बने अनिरुद्ध की गिरफ्तारी 1964 में हुई. इस दौरान उनके खिलाफ औराई, कटरा, नानपुर, रुन्नीसैदपुर थाने में कई प्राथमिकी दर्ज हो चुकी थी. किये की सजा भुगतने के बाद 1975 में अनिरुद्ध जेल से बाहर निकले, लेकिन अब तक इनका हृदय परिवर्तन हो चुका था. पटरी से उतर चुकी जीवन की गाड़ी को फिर से ट्रैक पर लाने का काम शुरू किया. इनमें एक दशक लग गये.

जीवन पटरी पर आया, तो 1987 में शादी की. परिवार बसा, तो अनिरुद्ध तीन बच्चों के पिता बने. इन्होंने सोच रखा था कि हम अपने बच्चों को उच्च शिक्षा से वंचित नहीं रखेंगे. चाहे जैसे होगा. हम उन्हें अच्छी शिक्षा देंगे. इसके लिए बच्चों को पढ़ाने के साथ अनिरुद्ध ने अच्छी खेती करनी शुरू की. हरी-सब्जियां आदि उगाना शुरू किया, जिससे घर में ज्यादा पैसे आने लगे. इनका बड़ा बेटा बैंगलुरू में नौकरी कर रहा है, जबकि छोटा बेटा और बेटी शहर में रह कर पढ़ाई कर रहे हैं. तीन साल पहले अनिरुद्ध की आखों की रोशनी कम होने लगी, तो मजबूरन इन्हें बच्चों को पढ़ाना छोड़ना पड़ा. अब खेती कर रहे हैं. आलू, गोभी की खेती करते है. इससे अच्छी खासी आमदनी होती है. अनिरुद्ध के पास डेढ़ एकड़ जमीन हैं. इसके साथ बंटाई की जमीन पर भी खेती करते हैं. खेती से होनेवाली आमदनी से घर का खर्चा चलता है. साथ ही बच्चों को पढ़ाई के लिए पैसे भी देते हैं.

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