सातवें-आठवें माह में जन्म लेनेवाले 60% बच्चे तोड़ देते हैं दम

मुजफ्फरपुर:समय से पहले जन्म लेने वाले औसतन 36 शिशु मौत के शिकार होते हैं. स्वास्थ्य विभाग की मानें, तो प्रत्येक महीने जिले में करीब तीन हजार शिशुओं का जन्म होता है, जिसमें दो फीसदी शिशुओं का जन्म सातवें-आठवें महीने में होता है. इनमें से 60 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है. जिन बच्चों को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 23, 2016 9:07 AM
मुजफ्फरपुर:समय से पहले जन्म लेने वाले औसतन 36 शिशु मौत के शिकार होते हैं. स्वास्थ्य विभाग की मानें, तो प्रत्येक महीने जिले में करीब तीन हजार शिशुओं का जन्म होता है, जिसमें दो फीसदी शिशुओं का जन्म सातवें-आठवें महीने में होता है. इनमें से 60 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है. जिन बच्चों को बचाया जाता है, उनमें से भी अधिकतर ब्रेन डेवलप नहीं होने की बीमारी से जूझते हैं. हालांकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से अब तक ऐसे शिशुओं का आंकड़ा नहीं जुटाया गया है.

लेबर रूम के रजिस्टर पर बच्चों के जन्म का सप्ताह लिख कर छोड़ दिया जाता है. निजी निर्संग हेाम भी ऐसे शिशुओं का आंकड़ा देने से परहेज करते हैं. शहर के स्त्री रोग विशेषज्ञ स्वीकार करते हैं कि उन्हें अक्सर ऐसी समस्याओं से जूझना पड़ता है. कई महिलाएं समय से पहले दर्द की शिकायत लेकर पहुंचती है व उनका नॉर्मल डिलेवरी भी हो जाता है.

हाइपोथर्मिया है वजह . समय से पहले जन्म लेने वाले शिशु हाइपोथर्मिया के कारण मरते हैं. प्रसव के बाद उनके बदन पर फैट की मात्र कम होती है. इस कारण नये माहौल में उनका बदन तापमान को एक्सेप्ट नहीं कर पाता व शिशुओं का बदन ठंडा पड़ जाता है. दूसरी वजह शिशुओं का फेफड़ा ठीक से काम नहीं करता. समय से पहले जन्म लेने वाले शिशु बहुत कम रोते हैं. जिससे उनके अंदर सांस नहीं जा पाती. इससे उनकी मौत हो जाती है.
डॉक्टर के संपर्कजरूरी. स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ शोभा रानी मिश्र कहती हैं कि समय से पहले प्रसव को कम किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए गर्भवती महिलाओं को डॉक्टर के संपर्क में रहना जरूरी है. डॉक्टर महिला का इतिहास जान कर समय से पहले प्रसव के खतरे को कम कर सकते हैं.
सरकार है गंभीर . समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं की मौत पर अब सरकार ने संज्ञान लेना शुरू किया है. मुख्यालय की ओर से सभी पीएचसी प्रभारियों को निर्देश दिया गया है कि अपने क्षेत्र में गर्भवती महिलाओं की डिलेवरी डेट की सूचना रखे. उसके लिए अलग से रजिस्टर बनाया जाये. प्रत्येक सप्ताह आशा को भेजकर उसके स्वास्थ्य की जानकारी लेनी है व एएनएम को प्रत्येक पखवारा गर्भवती के स्वास्थ्य की जांच करनी है. पीएचसी प्रभारियों को पूरी सूची बना कर स्वास्थ्य विभाग को सौंपना है.

Next Article

Exit mobile version