त्योहार: चौघरिया मुहूर्त को लेकर एकमत नहीं पंडित, चल रहा मंथन, 23 को होलिका दहन, 24 को होली

मुजफ्फरपुर: होलिका दहन पर पिछले कई दिनों से चल रहा संशय शुक्रवार को समाप्त हो गया. पंडितों ने शास्त्रों के अध्ययन के बाद एकमत से 23 को होलिका दहन की तिथि निश्चित कर दी है. हालांकि होलिका दहन के समय को लेकर संशय बरकरार है. कुछ पंडित 23 मार्च की सुबह 3.18 बजे भद्रा समाप्त […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 19, 2016 8:27 AM
मुजफ्फरपुर: होलिका दहन पर पिछले कई दिनों से चल रहा संशय शुक्रवार को समाप्त हो गया. पंडितों ने शास्त्रों के अध्ययन के बाद एकमत से 23 को होलिका दहन की तिथि निश्चित कर दी है. हालांकि होलिका दहन के समय को लेकर संशय बरकरार है. कुछ पंडित 23 मार्च की सुबह 3.18 बजे भद्रा समाप्त होने के बाद होलिका दहन की बात कह रहे हैं तो कुछ का कहना है कि 23 की सुबह चौघरिया मुहूर्त होने के कारण सुबह में में होलिका दहन धर्म सम्मत नहीं है. इस लिहाज से होलिका दहन शाम में किया जाना चाहिए. विभिन्न पंचागों व सिंधु निर्णय पुस्तक में समय के अंतर होने से पंडित अभी एक निर्णय पर नहीं पहुंच सके हैं.
भद्रा मुक्त पूर्ण चंद्रकाल में होलिका दहन. हाेलिका दहन के लिए शास्त्र सम्मत मुहूर्त पूर्ण चंद्रकाल जो भद्रा मुक्त हो में होना चाहिए. इसके लिए पूर्णिमा में सूर्योदय हो यह जरूरी नहीं, बल्कि दहन के समय पूर्ण चंद्रमा हो, यह जरूरी है. 22 व 23 दोनों दिन पूर्णिमा है. 22 को पूर्णिमा दोपहर 3.13 बजे से प्रारंभ होकर 23 की सुबह 3.19 बजे तक है. इस प्रकार 22 को भद्रा के कारण पूर्ण चंद्र रहते हुए भी होलिका दहन नहीं हो सकता. 23 को 2.52 बजे से चौघरिया मुहूर्त शुरू हो जाता है. यह रोग व काल मुहूर्त है. यह 23 की सुबह सूर्योदय तक रहेगा. जबकि हालिका दहन सूर्योदय से पहले किया जाता है.

23 को तीसरे प्रहर के बाद प्रथमा तिथि प्रारंभ हो जाती है. यह काल प्रधान उत्सव है व दहन के समय पूर्ण चंद्र होना चाहिए. कृष्ण पक्ष में पाश्चात्य समय आकलन के अनुसार चंद्रोदय कृष्ण पक्ष में रोज सवा घंटे घटता है. 23 को तीन प्रहर के बाद प्रथमा तिथि होने के बावजूद 23 को संध्या 7.57 बजे से पूर्ण चंद्र होगा. पूर्ण मुहूर्त के अनुसार यह रात्रि 8.20 तक है. इस लिहाज से 23 मिनट का समय होलिका दहन के लिए उपयुक्त है.

प्रस्तुति : पं. कमल पाठक
23 की रात्रि 7.57 बजे के बाद होलिका दहन का मुहूर्त
हिंदू पर्व दो तरह के होते हैं. काल प्रधान व तिथि प्रधान. काल प्रधान में जन्माष्टमी व रामनवमी जैसे पर्व आते हैं. यानी काल व तिथि एक साथ हो तो पर्व मनाया जाता है. भले ही उस दिन का सूर्योदय उस तिथि में नहीं हुआ हो. तिथि प्रधान पर्व में तिथि प्रधान होता है. इसका सामान्य नियम यह है कि सूर्योदय जिस तिथि में होगा, पूरा दिन उसी तिथि को ही माना जायेगा. इस लिहाज से देखा जाये तो होलिका दहन मुहूर्त प्रधान उत्सव है, लेिकन होली तिथि प्रधान पर्व. होलिका दहन पर हाेलिका की पूजा नहीं होती. बल्कि होलिका नामक राक्षसी की पीड़ा से मुक्ति के लिए शिव, विष्णु व नरसिंह की पूजा का संकल्प दहन के पूर्व लिया जाता है. दहन के बाद शिव, ब्रह्मा व इंद्र की स्तुति के साथ भष्म स्वयं धारण करते हैं व इष्ट तिथि को यही भष्म लगाते हैं. यह भष्म दुराग्रह को त्याग सत्य को स्वीकार करने का प्रतीक माना जाता है.

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