मुजफ्फरपुर: अस्पतालों में हंगामे, तोड़फोड़ व लापरवाही की घटनाओं से डॉक्टरों व आमलोगों के बीच विश्वास कम हुआ है. कई मौके पर नर्सिग होम या अस्पताल प्रबंधन की खामियां कारण रही है तो कई मामलों में मरीज के परिजनों की दबंगई. ऐसा नहीं कहा जा सकता कि सारी घटनाओं का जवाबदेह डॉक्टर ही होते हैं, लेकिन मरीज का इलाज ठीक तरह से नहीं किया जाना प्रमुख कारण रहा है.
लापरवाही डॉक्टर से हो या पारामेडिकल स्टाफ से भुगतना मरीज के परिजनों को ही पड़ता है. कई डॉक्टर स्वीकारते हैं कि काम के दबाव के कारण मरीजों पर जितना ध्यान देना चाहिए, उतना वे नहीं दे पाते. शहर के एक नर्सिग होम में बुधवार को 235 मरीज भरती थे. जबकि उनके इलाज के लिए मात्र चार डॉक्टर मौजूद थे. इस लिहाज से देखा जाए तो 60 मरीजों के लिए एक डॉक्टर. यदि एक साथ चार मरीजों की स्थिति बिगड़ जाये तो स्थिति का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है. मरीज के साथ अनहोनी होने पर डॉक्टर अपनी गलती नहीं स्वीकारते. जिले में मरीजों के साथ हुए हादसे में आज तक किसी डॉक्टर ने अपनी चूक नहीं स्वीकारी. नर्सिग होम प्रबंधन भी खुद को पाक साफ कह सारा इलजाम मरीज के परिजनों पर थोप देता है.
संवादहीनता एक बड़ा कारण : मरीज के परिजनों व डॉक्टरों के बीच संवादहीनता इस तरह की घटनाओं को जन्म देने में एक बड़ा कारण रहा है. अधिकतर मरीजों की शिकायत होती है कि डॉक्टर ठीक से बात नहीं सुनते. ऐसे में इलाज कैसे ठीक होगा. जबकि डॉक्टर कहते हैं कि मरीज व उनके परिजन अनावश्यक बात करते हैं, जिससे मर्ज का कोई संबंध नहीं होता. दोनों के बीच आपसी मतभेद से अविश्वास उत्पन्न होता है. ऐसे में मरीजों के साथ कोई घटना घटित होती है तो परिजन अपना आपा खो देते हैं.
उन्हें लगता है कि डॉक्टर ने ठीक से इलाज नहीं किया है. हालांकि कई डॉक्टर मरीजों को पूरा समय देते हैं. हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ विजय कुमार कहते हैं कि मरीज व उनके परिजनों को संतुष्ट करना जरूरी होता है. मर्ज से संबंधित बातें नहीं भी हो तो सुननी पड़ती है. इससे मरीजों को विश्वास होता है कि डॉक्टर उनका इलाज ठीक से कर रहे हैं.
व्यावसायिक होती चिकित्सा से बढ़ी मुश्किलें : मरीजों के परिजनों व डॉक्टर के बीच बढ़ती खाई का बड़ा कारण चिकित्सा का व्यवसायीकरण है. मरीज के परिजन इलाज के लिए रुपये खर्च करते हैं. वे डॉक्टर के परामर्श पर हर तरह की जांच कराते हैं. इसके बाद भी मरीज की जान चली जाये, यह ङोलना मुश्किल होता है. उन्हें लगता है जब डॉक्टर ने इतने रुपये लिये तो फिर इलाज क्यों नहीं किया. कई बार इलाज से पहले मरीज के परिजनों को मरीज की वास्तविक स्थिति के बारे में नहीं बताये जाने से भी स्थिति विस्फोटक हो जाती है. कई नर्सिग होम सीरियस मरीजों की भी भरती ले लेते हैं.
इलाज के नाम पर परिजनों से रुपये वसूला जाता है. जब स्थिति अधिक खराब हो जाती है तो डॉक्टर उसे रेफर कर देते हैं. उस वक्त तो परिजन मरीज को ले कर दूसरी जगह चले जाते हैं. लेकिन बाद में आकर उक्त नर्सिग होम में तोड़-फोड़ करते हैं. कई डॉक्टर इसे गलत मानते हैं. फिजिशियन डॉ एके दास कहते हैं कि मरीज की स्थिति अधिक सीरियस हो तो इसकी सूचना परिजनों को दी जानी चाहिए. जरूरी हो तो मरीज को ऐसी जगह रेफर करना चाहिए,जहां उसका इलाज हो सके.
कमीशन के खेल में भी जाती है जान : शहर के कई नर्सिग होम ऐसे हैं, जो मरीज को भेजने के एवज में भेजने वाले को 25 फीसदी कमीशन देते हैं. मरीज चाहे कितना भी सीरियस हो, यहां मरीजों को भरती ली जाती है. डॉक्टर के इलाज से बच जाए तो मरीज की किस्मत. लेकिन इसके एवज में भेजने वाले को 25 फीसदी कमीशन मिल जाता है. यह धंधा एंबुलेंस चालकों, कपाउंडर व नर्सिग होम में काम करने वाले लोगों से चलता है. दुर्गा स्थान रोड स्थित नर्सिग होम के कंपाउंडर ने मरीज भेजने वाले को 25 फीसदी कमीशन की बकायदा घोषणा कर रखी है. उसका कहना है कि इलाज के लिए जितने रुपये मरीज से लिये जाएंगे, उसका 25 फीसदी मरीज भेजने वाले को दिया जायेगा.