मुजफ्फरपुर में तैयार हुई थी चंपारण सत्याग्रह की जमीन

मुजफ्फरपुर : महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह की कहानी मुजफ्फरपुर आने के बाद ही शुरू हुई. इससे पहले वह चंपारण सत्याग्रह से बिल्कुन अंजान थे. लेकिन रामचंद्र शुक्ल की हठधर्मिता के कारण उन्होंने मुजफ्फरपुर की धरती पर अपना कदम रखा. इस बीच उन्होंने जीबीबी कॉलेज (वर्तमान में एलसएस कॉलेज) में रूके और यहां के शिक्षकों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 10, 2016 9:54 AM
मुजफ्फरपुर : महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह की कहानी मुजफ्फरपुर आने के बाद ही शुरू हुई. इससे पहले वह चंपारण सत्याग्रह से बिल्कुन अंजान थे. लेकिन रामचंद्र शुक्ल की हठधर्मिता के कारण उन्होंने मुजफ्फरपुर की धरती पर अपना कदम रखा.
इस बीच उन्होंने जीबीबी कॉलेज (वर्तमान में एलसएस कॉलेज) में रूके और यहां के शिक्षकों सहित कई वकीलों से बातचीत के क्रम में उन्हें नीलहों के आंतक का पताचला. इसके बाद से चंपारणसत्याग्रह की रूप रेखा जीबीबी कॉलेज में जेबी कृपलानी सहित अन्य महान हस्तियों के आगे आने के बाद बनी. यही से शुरू हुई चंपारण सत्याग्रह की दास्तां.
महात्मा गांधी चंपारण की बारीकियों से प्रभावित होकर नहीं आए थे, न ही उन्हें नीलहों के अत्याचार की जानकारी थी. रामचंद्र शुक्ल की हठ धर्मिता के कारण वह चंपारण जाने को तैयार हुए. इसके लिए रामचंद्र शुक्ल लखनऊ में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन में उनसे मुलाकात की. लेकिन वहां बात न बनी. तो महात्मा गांधी ने उन्हें कलकत्ता बुलाया.
रामचंद्र शुक्ल कलकत्ता पहुंचे. जहां से वह किसी तरह चंपारण आने को राजी हुए. इस बीच पटना से मुजफ्फरपुर आए, तो वह शहर के गया प्रसाद, रामनवमी बाबू, आचार्य कृपलानी, राम दयालु सिंह व राजेंद्र प्रसाद के साथ मीटिंग की. इन लोगों से वार्ता करने के बाद यह पता चला कि चंपारण की समस्या बहुत बड़ी है. नीलहों का आतंक किसानों पर हावी है. इस पर उन्होंने मुजफ्फरपुर के कमिश्नर मोर्शिद व नील उत्पादकों से बात-चीत करना चाहा. लेकिन इस पर कमिश्नर ने उनसे पूछ की आप यहां क्यों है?
कैसे आए है? किस लिए आए है? कौन बुलाया है आपको? कमिश्नर उन्हें शहर से निकलने के लिए दबाव बनाने लगा. इस पर गया प्रसाद, रामनवमी, आचार्य कृपलानी ने कमिश्नर को लिखित तौर पर दिया कि हमारे बुलावें पर वह आए है. तब जाकर बात आगे बढ़ी. महात्मा गांधी नीलहों व कमिश्नर से बात-चीत कर हल निकलना चाहता था. लेकिन संवाद से कोई हल नहीं निकला. इसके बाद वह जीबीबी (ग्रियर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज) वर्तमान में एलएस कॉलेज में करीब चार दिनों तक रुके और यही से चंपारण सत्याग्रह की रूप रेखा तैयार की.
डॉ अशोक अंशुमन, इतिहास विभाग, एलएस कॉलेज
चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधी जी जब मुजफ्फरपुर की धरती पर कदम रखा, तो उस वक्त जीबीबी कॉलेज के छात्रों का उत्साह सातवें आसमान पर था. यहां आने के बाद कॉलेज के शिक्षक जेबी कृपलानी, एनआर मलकानी सहित अन्य शिक्षक उनके साथ हो गए. इस बात की जानकारी जब उस वक्त के अंग्रेज प्रिंसिपल को हुआ, तो वह सभी शिक्षकों को बर्खास्त कर दिया. इसके बाद गांधी जी के साथ शिक्षक व उस वक्त के वकील अरिक्षण सिंहा उनके साथ चंपारण की ओर कूच कर गए. शुरुआती दौर में इन लोगों ने किसानों का इंटरव्यू लिया. जहां किसानों ने अपनी पीड़ा उन्हें सुनाई. तब गांधी जी को यह महसूस हुआ कि उन्हें सत्याग्रह करना चाहिए.
डॉ प्रमोद कुमार, शिक्षक एलएस कॉलेज
बग्घी में घाेड़े की जगह लग गये थे छात्र
महात्मा गांधी पटना से मुजफ्फरपुर आएं तो आचार्य जेबी कृपलानी ने अपने प्रभाव के बल पर बग्घी का इंतजाम किया. जीबीबी कॉलेज के छात्र उनकी अगुवानी करने स्टेशन पर गये. तो बग्घी में घोड़े की जगह खुद छात्र लग गए. इसका गांधी जी ने विराेध किया, लेकिन छात्रों में उत्साह इतना ज्यादा था कि वह मान नहीं रहे थे. इस बीच छात्र हट गए, लेकिन फिर से वह घोड़े को हटा दिए. इस बीच उन्हें यह भी पता चला कि जिस बग्घी से वह आए है, वह बग्घी एक जमींदार की है. वह जमींदार भी उसी ट्रेन से आ रहा था.
जिस ट्रेन से वह आ रहे थे. इस पर वह काफी नाराज भी हुए. इस बीच जेबी कृपलानी ने उनके स्वागत के लिए नरियल के पेड़ पर चढ़कर खुद नरियल तोड़ा. इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक माई टाईम में किया है. इसके बाद वह कॉलेज में एक रात रुके और चंपारण सत्याग्रह की भूमिका बनाई.
अरविंद वरुण, एलएस कॉलेज पूर्वी छात्र संगठन के सचिव

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