जल्द स्वस्थ्य होंगे मानसिक पक्षाघात के पीड़ित व्यक्ति

मुजफ्फरपुर: ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित लोगों राहत देने के लिए नया शोध हुआ है. मस्तिक इलाज के क्षेत्र में इंजीनियरिंग के जरीय काफी बदलाव हुआ है. रेगुलेटरी आरएनए द्वारा सेल के गुणों में परिवर्तन होगा. ब्रेन स्ट्रोक के इलाज के बाद मस्तिष्क कोशिका के गुणों में बदलाव होगा. मस्तिष्क के इलाज के वक्त पुराने सेल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 11, 2014 10:28 AM

मुजफ्फरपुर: ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित लोगों राहत देने के लिए नया शोध हुआ है. मस्तिक इलाज के क्षेत्र में इंजीनियरिंग के जरीय काफी बदलाव हुआ है. रेगुलेटरी आरएनए द्वारा सेल के गुणों में परिवर्तन होगा. ब्रेन स्ट्रोक के इलाज के बाद मस्तिष्क कोशिका के गुणों में बदलाव होगा. मस्तिष्क के इलाज के वक्त पुराने सेल नहीं मरेंगे, वहीं इलाज के बाद नये न्यूरॉन्स (ब्रेन का सेल) जन्म लेंगे. व्यक्ति को मानसिक पक्षाघात से जल्द राहत मिलेगा. चिकित्सा के क्षेत्र में पहला शोध है. इसे शहर के डॉ पल्लव भट्टाचार्य किया हैं. डॉ भट्टाचार्य अमेरिका के मिलर स्कूल ऑफ मेडिसिन में न्यूरो साइंटिस्ट हैं.

इन्होंने स्टेम सेल (मस्तिष्क कोशिका) के क्षेत्र में काम किया है. इनका दावा है, स्टेम सेल के क्षेत्र में इंजीनियरिंग बिल्कुल नया शोध है. स्टेम सेल के गुणों में परिवर्तन होगा. इलाज के बाद नये न्यरॉन्स बनेंगे. पीड़ित व्यक्ति इलाज के बाद सामान्य व्यक्ति की तरह गतिविधि करेगा. यह शोध चिकित्सा जगत के लिए खास बात है. ब्रेन स्ट्रोक इलाज के समय बड़े पैमाने पर मस्तिष्क की कोशिका मर जाते थे. कोशिका मृत होने के बाद मस्तिष्क काम करना बंद कर देता था.

ब्रेन स्ट्रोक के समय बनता खून का थक्का : डॉ भट्टाचार्य ने कहा, ब्रेन स्ट्रोक के समय सामान्य तौर पर दिमाग में खून का थक्का बन जाता है. वहां की कोशिकाएं मर जाती है. मस्तिष्क की कार्य क्षमता पर कुप्रभाव पड़ता है. याददाश्त चली जाती है. ब्रेन स्टोक के बाद नये सेल नहीं बनते हैं. अभी तक थ्रम्बोलिक दवाओं से इस घातक बीमारी का उपचार होता रहा है. इलाज में रक्त के थक्के को गलाकर ब्लड सकरुलेशन चालू कराया जाता है. जटिल प्रक्रिया थी.

इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए एम्स में कई शोध हुए हैं, लेकिन सकारात्मक परिणाम नहीं आया. लेकिन स्टेम सेल इंजीनियरिंग से ब्रेन स्ट्रोक चिकित्सा में नया रास्ता खुला है. रेगुलेटरी आरएनए द्वारा सेल के गुणों में परिवर्तन होगा. भारत में पहली बार यह काम हो रहा है.

यंग साइंटिस्ट बने डॉ पल्लव
साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड ने डॉ पल्लव भट्टाचार्य को ‘रेगुलेटरी नॉन कोडिंग आरएनए मेडिएटेड मेसेनकीमल स्टेम सेल इंजीनियरिंग अ सेफ्टी एंड इफीकेसी स्टडी इंड रोडेंट मॉडल ऑफ इसकेमिक स्ट्रोक’ प्रोजेक्ट के लिए फास्ट ट्रैक यंग साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया गया है. यह पुरस्कार एक जनवरी 2014 को मिला है.

डॉ भारत सरकार के कोलकाता स्थित जगदीश चंद्र बोस इंस्टीटय़ूट में बतौर वैज्ञानिक शोध कार्य करेंगे. डॉ पल्लव भट्टाचार्य को 10 दिन पूर्व विवि अनुदान आयोग ने कोठारी फेलो (चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में) पुरस्कार देने की घोषणा की है. जगदीश चंद्र बोस इंस्टीटय़ूट में शोध कार्य के लिए 30 लाख रुपये दिये जायेंगे.

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