15 साल में अपनी शाही लीची का वजन रह गया आधा!

मुजफ्फरपुर: अपनी शाही लीची का वजह पिछले पंद्रह साल में घट कर आधा रह गया है, जहां पहले लीची 30 से 40 ग्राम की होती थी. वहीं, अब इसका वजह 15 से 20 ग्राम के बीच रह गया है. इसकी मुख्य वजह मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को माना जा रहा है. साथ ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 13, 2016 8:11 AM
मुजफ्फरपुर: अपनी शाही लीची का वजह पिछले पंद्रह साल में घट कर आधा रह गया है, जहां पहले लीची 30 से 40 ग्राम की होती थी. वहीं, अब इसका वजह 15 से 20 ग्राम के बीच रह गया है. इसकी मुख्य वजह मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को माना जा रहा है. साथ ही क्षारीय तत्व बढ़ने से भी लीची के वजन व आकार पर असर पड़ा है. किसान कहते हैं कि पहले लीची रसगुल्ला के बराबर होती थी, लेकिन अब छोटी हो गयी है. वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं.
लीची उत्पादन के लिए अपने मुजफ्फरपुर का देश ही नहीं विदेशों तक में नाम है. कांटी, मुशहरी व मीनापुर को लीची का नैहर कहा जाता है, जहां इसकी पैदावार सबसे ज्यादा होती है. कांटी के सहबाजपुर के रहनेवाले किसानश्री से सम्मानित मुरलीधर शर्मा बड़े लीची उत्पादक हैं. वो कहते हैं कि 12-15 साल पहले हमारे बाग की लीची 40 ग्राम की हुआ करती थी.

अन्य जगहों पर कम से कम 30 ग्राम तो लीची का वजह था ही, लेकिन अब हालात बदल गये हैं. अब 20 ग्राम की लीची को एक्सपोर्ट क्वालिटी माना जाता है.

युवा लीची उत्पादक बबलू कुमार कहते हैं कि पहले लोग सामान्य तौर पर एक बार में दस लीची खा पाते थे, लेकिन अब पहले वाली स्थिति नहीं है. हाल में ही राष्ट्रीय स्तर सम्मानित युवा किसान अविनाश कुमार भी लीची का साइज छोटी होने की बात मानते हैं. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र को निदेशक डॉ विशालनाथ कहते हैं कि लीची की पैदावार व्यावसायिक तौर पर होती है. इस वजह से जमीन को वो सप्लीमेंट भी मिलने चाहिये, जो लीची उत्पादन के लिए जरूरी हैं. अभी केमिकल का प्रयोग बढ़ा है, जिससे नेचुरल प्रक्रिया बाधित होती है. जमीन की गुणवत्ता में कमी का असर फल पर पड़ता है. इसमें लीची का कोई दोष नहीं है. वो कहते हैं कि हर पेड़ में तीन तरह से फल होते हैं, ए, बी और सी ग्रेड के. इसमें अच्छे फलों यानी ए ग्रेड के फल चालीस फीसदी के आसपास होते हैं.
इस वजह से घटा वजन
लीची के आकार व गुणवत्ता में आयी कमी की मूल वजह मिट्टी में क्षारीय तत्व (पीएच) का मानक से अधिक होना व पोषक तत्व की लगातार हो रही कमी है. बेहतर फल के लिए पीएच की मात्र सामान्य तौर पर सात होनी चाहिए. लेकिन कांटी व इसके आसपास के इलाके के बाग की हुई जांच में पीएच की मात्र आठ या इससे अधिक है. वहीं मिट्टी में नाइट्रोजन, पोटाश, फॉस्फेट, कार्बन, सल्फर मैग्नेशियम जैसे पोषक तत्व कम हुए हैं. लीची अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ लीची वैज्ञानिक अमरेंद्र कुमार का मानना है कि फ्रूट स्वॉयल के लिए आवशय़क पोषक तत्व में कमी आयी है. इसकी वजह से फल छोटा होने के साथ पौधे भी सूख रहे हैं. मिट्टी में पोषक तत्व को मानक के अनुरूप रखने के लिए किसानों को ध्यान देना होगा.

प्राकृतिक प्रक्रिया को जारी रख कर लीची के बागों की जमीन की गुणवत्ता को बनाये रखा जा सकता है. हम लोग इस पर जोर भी दे रहे हैं. लीची के बाग में गोबर की खाद पड़नी चाहिये. उसकी पत्तियां भी बाग में सड़नी चाहिये. इससे पेड़ों को ताकत मिलेगी, लेकिन ऐसा कम हो रहा है. लोगों को लगता है कि पेड़ है, ये तो कुछ मांगता नहीं, लेकिन ये स्थिति बदलनी होगी. मुङो लगता है कि फल पर असर इसी वजह से है.
डॉ विशाल नाथ, निदेशक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र

Next Article

Exit mobile version