यह तय नहीं हो पा रहा था कि इसे मेजोरिटी ऑफ लैंड ऑनर माना जाये या फिर मेजोरिटी ऑफ लैंड एरिया. मामले में एनएचएआइ ने भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (महान्यायवादी) से लीगल ओपिनियन मांगी थी. एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने मेजोरिटी ऑफ लैंड होल्डर का प्रयाय मेजोरिटी ऑफ लैंड एरिया बताया. अब एनएचएआइ ने इसी आधार पर जिला भू-अर्जन पदाधिकारी को चिह्नित गांवों के संबंध में प्रमाण पत्र देने को कहा है.
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मालिक नहीं, जमीन का एरिया बनेगा मुआवजे का आधार
मुजफ्फरपुर: एनएच-77 के चौड़ीकरण व बाइपास निर्माण के लिए नयी अर्जन नीति से जमीन लेने के संबंध में एनएचएआइ ने एक अहम फैसला लिया है. इसके तहत नयी नीति उन्हीं गांवों पर लागू होगी, जहां चिह्नित अधिकांश जमीन का भुगतान अब तक बकाया है. बकाया के संबंध में जिला भू-अर्जन पदाधिकारी को अलग से प्रमाण […]
मुजफ्फरपुर: एनएच-77 के चौड़ीकरण व बाइपास निर्माण के लिए नयी अर्जन नीति से जमीन लेने के संबंध में एनएचएआइ ने एक अहम फैसला लिया है. इसके तहत नयी नीति उन्हीं गांवों पर लागू होगी, जहां चिह्नित अधिकांश जमीन का भुगतान अब तक बकाया है. बकाया के संबंध में जिला भू-अर्जन पदाधिकारी को अलग से प्रमाण पत्र भी देना होगा.
हाजीपुर-मुजफ्फरपुर को जोड़ने वाली एनएच-77 के लिए दस गांवों, सकरी सरैया, चंद्रहट्टी, तुर्की, बलिया, बथना राम, ढोढ़ी लाल, रजला, मादापुर चौबे, मधौल व दरियापुर कफेन में भी जमीन का अर्जन होना है. लेकिन यहां जमीन के किस्म को लेकर विवाद है. कई मामले कोर्ट में भी लंबित है. विवाद सुलझाने के लिए फैसला लिया गया कि यदि किसान कोर्ट में लंबित मामले वापस ले लें, तो उन्हें नयी अर्जन नीति (ग्रामीण क्षेत्र में एमवीआर की चार गुना व शहरी क्षेत्र में एमवीआर की दो गुना राशि) के तहत राशि का भुगतान किया जायेगा.
इसके लिए एनएच एक्ट 1956 की धारा 3 जी को आधार बनाया गया है. इसमें कहा गया है कि यदि 31 दिसंबर 2014 से पूर्व जमीन की 3A अधिसूचना जारी कर दी गयी है व उक्त तिथि तक ‘मेजोरिटी ऑफ लैंड होल्डर’ को मुआवजा की राशि का भुगतान नहीं हुआ है, तो वहां ‘भूमि अर्जन पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013’ लागू होगा. हालांकि इस धारा में ‘मेजोरिटी ऑफ लैंड होल्डर’ को लेकर विवाद था.
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