मुजफ्फरपुर: हर साल गायब होती है 10 करोड़ की बाइक

मुजफ्फरपुर: बाइक लिफ्टर गैंग से पुलिस परेशान हैं. एक ओर जहां घटनाएं बढ़ रही है वही, दूसरी ओर नॉन ट्रेडिशनल टेकनीक ने पुलिस को सकते में डाल दिया है. आलम यह है कि शहर से प्रतिदिन पांच बाइक की चोरी हो रही है. इस अनुपात में सालाना 18 सौ बाइक की चोरी हो रही है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 8, 2016 2:15 AM
मुजफ्फरपुर: बाइक लिफ्टर गैंग से पुलिस परेशान हैं. एक ओर जहां घटनाएं बढ़ रही है वही, दूसरी ओर नॉन ट्रेडिशनल टेकनीक ने पुलिस को सकते में डाल दिया है. आलम यह है कि शहर से प्रतिदिन पांच बाइक की चोरी हो रही है. इस अनुपात में सालाना 18 सौ बाइक की चोरी हो रही है. जिसकी कीमत लगभग 10 करोड़ बतायी जा रही है. हालांकि पुलिस का दावा है कि इन मामलों में कमी आई है, लेकिन चोरी के नये तरीकों ने पुलिस को हैरान कर रखा है.
दूसरों राज्यों में होती है बिक्री. चोरी की बाइक को दूसरों जिलों में बेची जाती है. एक गैंग से जुड़े 5 लोगों को काजी मोहम्मदपुर पुलिस ने दूसरे जिलों के अलग-अलग ठिकानों से पकड़ा था. इतना ही नहीं रेलवे स्टेशन स्थित पार्किंग व गैरेज से करीब 5 से अधिक बाइक की रिकवरी भी की गयी. बताया जाता है कि इस तरह के गैंग अभी भी सक्रिय हैं.
कैसे काम करता है यह रैकेट . उक्त गैंग प्रोफेशनल तरीके से घटना को अंजाम देते हैं. पहले यह शहर के किसी इलाके से बाइक चुराते हैं. उसके बाद रेलवे स्टेशन या फिर ऐसी पार्किंग में लगा देते हैं, जहां पर पुलिस की तलाशी ही नहीं होती है. इसके लिये जिलों के सीमाओं पर रिसीवर मौजूद रहते हैं.
शातिर चोर हैं गिरोह के सदस्य.
गैंग में करीब 24 से 30 साल के शातिर चोर शामिल हैं. इनके पास लॉक तोड़ने से लेकर साक्ष्य छुपाने में महारत हासिल हैं. बताया जाता है कि बाइक महज पांच से दस हजार रुपये में बिचौलियों के हाथों बेच दिया जाता है.
थानों में चोरी की प्राथमिकी. पुलिस के आंकड़ों पर यकीन करे तो हर महीने सौ से अधिक बाइक चोरी के मामले शहर के विभिन्न थानों में दर्ज होते हैं. केवल मई महीने ने 146 ऐसे मामले दर्ज हुये हैं. एसएसपी विवेक कुमार के अनुसार पुलिस ने करीब चोरी की बाइक बरामद की गयी है. हालांकि उनके मूल नक्शे में परिवर्तन किया गया है, लेकिन उनकी पहचान चेसिस नंबर से की जा सकती है. उन्होंने बताया कि दिक्कत यह आ रही है कि उन गाड़ियों को उनके ऑनर तक किस तरह पहुंचाया जाये. इसके लिए उन गाड़ियों के चेसिस नंबर को पहले हर जिलों में भेज कर उसकी पहचान करायी जायेगी.

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