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इबादत में बीत रहा दिन व रात

मुजफ्फरपुर:रमजान के महीना का सातवां दिन भी इबादत के नाम रहा. रोजेदारों ने रोज की तरह सुबह से रात तक इबादत की. तय वक्त पर सेहरी खत्म किया व इफ्तार कर तरावीह पढ़ी. शहर के मसजिदों में नमाज पढ़ने के लिए काफी लोग उमड़े़. तरावीह के बाद चौक-चौराहे रोशन रहे. सेहरी के लिए सजाए गए […]

मुजफ्फरपुर:रमजान के महीना का सातवां दिन भी इबादत के नाम रहा. रोजेदारों ने रोज की तरह सुबह से रात तक इबादत की. तय वक्त पर सेहरी खत्म किया व इफ्तार कर तरावीह पढ़ी. शहर के मसजिदों में नमाज पढ़ने के लिए काफी लोग उमड़े़. तरावीह के बाद चौक-चौराहे रोशन रहे. सेहरी के लिए सजाए गए स्टॉल पर भी लोगों की काफी भीड़ रही. मौलाना एहतेशाम ने कहा कि रोजे की हालत में सिर्फ भूखा रहकर रमजान की बरकत को नहीं पाया जा सकता है. लिहाजा, भूख और प्यास के साथ ही खुद को बुराइयों से दूर रखना व अपने को इबादत में मशगूल रखना भी बेहद ज़रूरी है.

इसके बिना जाहिरी तौर पर रोजा तो पूरा हो जाएगा, लेकिन उसके बरकत से आप महरूम रह जायेंगे. इसके लिए हर रोजेदार को समझना ज़रूरी है कि, रोज़ा हमसे क्या चाहता है.

रमजान में सदका-जकात जरूरी. रमजान से जुड़ी दो और बातें समझने की ज़रूरत है. एक है सदका-फितरा व दूसरा है जकात. सदका के मायने हैं अपने जान के बदले कुछ पैसे गरीबों के बीच तक्सीम करना व जकात का मतलब है कि अपने माल पर कुछ पैसे निकाल कर जरूरतमंदों के बीच बांटना. रमज़ान के दौरान इन दोनों हुक्मों की अदायगी निहायत ज़रूरी है. इसके बिना रोजे के मकसद को हम पूरा नहीं कर सकते.
मौलाना ने बताए रमजान के नियम
इंसान रमजान की हर रात उससे अगले दिन के रोजे की नियत कर सकता है. बेहतर यही है कि रमजान के महीने की पहली रात को ही पूरे महीने के रोजे की नियत कर लें.
अगर कोई रमजान के महीने में जानबूझ कर रमजान के रोजे के अलावा किसी और रोजे की नियत करे तो वो रोजा कुबूल नहीं होगा व न ही वो रमजान के रोजे में शुमार होगा.
इफ्तार की शुरुआत हल्‍के खाने से करें. खजूर से इफ्तार करना बेहतर माना गया है. इफ्तार में पानी, सलाद, फल, जूस व सूप ज्‍यादा खाएं व पीएं. इससे शरीर में पानी की कमी पूरी होगी.
सहरी में ज्‍यादा तला, मसालेदार, मीठा खाना न खाएं, क्योंकि ऐसे खाने से ‍प्यास ज्यादा लगती है. सहरी में दूध, ब्रेड व फल का सेवन करे.
रमजान के महीने में ज्‍यादा से ज्‍यादा इबादत करें, अल्‍लाह को राजी करना चाहिए क्योंकि इस महीने में कर नेक काम का सवाब बढ़ा दिया जाता है.
रमजान में ज्‍यादा से ज्‍यादा कुरान की तिलावत, नमाज की पाबंदी, जकात, सदाक व अल्‍लाह का जिक्र करके इबादत करें. रोजेदारों को इफ्तार कराना बहुत ही सवाब का काम माना गया है.
रमजान के महीने को तीन अशरों में बांटा गया है. पहले 10 दिन को पहला अशरा कहते हैं जो रहमत का है. दूसरा अशरा अगले 10 दिन को कहते हैं जो मगफिरत का है और तीसरा अशरा आखिरी 10 दिन को कहा जाता है जो कि जहन्‍नम से आजाती का है.
अगर कोई बीमार शख्‍स रमजान के महीने में जोहर से पहले ठीक हो जाता है और तब तक उसने कोई ऐसा काम नहीं किया हो जिससे रोजा टूटता हो, तो नियत करके उसका उस दिन का रोजा रखना जरूरी है.
रमजान के महीने में इंसान बुरी लतों से दूर रहता है, सिगरेट की लत छोड़ने के लिए रमजान का महीना बहुत अच्‍छा है. रोजा रखकर सिगरेट या तंबाकू खाने से रोजा टूट जाता है.
– अगर किसी रोजेदार को जान और माल के नुकसान की धमकी देकर कोई खाना खाने को मजबूर करता है व रोजेदार उस नुकसान से बचने के लिए खाना खा लेता है तो रोजा नहीं टूटता है.
– रमजान के महीने में अल्‍लाह अपने बंदों पर खास करम फरमाता है व उसकी हर जायज दुआ को कबूल करता है. रमजान में जन्‍नत के दरवाजे खोल दिये जाते हैं व जहन्‍नुम के दरवाजे बंद कर दिये जाते हैं.

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