रमजान के कायदों से ही रहमत व बरकत

मुजफ्फरपुर: रमजानुल मुबारक इंसानियत का पैगाम देता है. रोजा सिर्फ मजहब तक सीमित नहीं है, बल्कि मानव जाति के लिए सीख है. रोजा हमें जीने का सलीका सिखाता है. ईश्वर के बनाये गये कायदों के अनुसार हम कैसे जीवन बिताएं, इसकी सीख देता है. रोजा रखने का मतलब हम खुद भूखे-प्यासे रह कर दूसरों का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 28, 2016 9:11 AM
मुजफ्फरपुर: रमजानुल मुबारक इंसानियत का पैगाम देता है. रोजा सिर्फ मजहब तक सीमित नहीं है, बल्कि मानव जाति के लिए सीख है. रोजा हमें जीने का सलीका सिखाता है. ईश्वर के बनाये गये कायदों के अनुसार हम कैसे जीवन बिताएं, इसकी सीख देता है. रोजा रखने का मतलब हम खुद भूखे-प्यासे रह कर दूसरों का दर्द समझते हैं.
अल्लाह ने यह नियम इसीलिए बनाया है कि समाज में समरसता कायम हो सके. लोग जब एक दूसरे का दर्द जानेंगे, तो अच्छा सोचेंगे. उक्त बातें मौलाना मुसलिम समुदाय के शिक्षाविदों ने कही. वे प्रभात खबर कार्यालय में सोमवार को आयोजित रमजान व उसके संदेश पर अपनी बात रख रहे थे. परिचर्चा में मदरसा सलफिया के मौलाना वसी आलम रियाजी, मदरसा दारुल किताब व सुन्ना के मौलाना अफजल हुसैन सलफी, दारुल तकमील के प्राचार्य मो नसीम अख्तर, मदरसा मरकजुल फलाह के मौलाना ताहिर मुजाहिरी, शायर अली अहमद मंजल, शिक्षाविद् व शायर महफूज अहमद आरिफ व डॉ सिबगतुल्लाह हमीदी मौजूद थे.
मुसलमानों के लिए रोजा रखना फर्ज : अल्लाह के बनाये गये नियमों को मानने वालों ने कहा कि अल्लाह ने सभी मुसलमानों को रोजा रखना फर्ज बताया है. इसका कारण यह है कि लोग तमाम बुराइयों को छोड़ अच्छाई का मार्ग चुने. इबादत करें व दूसरों का भला करे. रमजान में जकात निकाल कर गरीबों को देने का भी प्रावधान रखा गया है. जिससे उनके अंदर भी खुशियां आये. अल्लाह की इबादत करने का मतलब हमें उनके नियमों के अनुसार चलना है. उनसे खुद के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए दुआ मांगनी है.

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