बाढ़ वाले इलाकों में भी अब लहलहायेंगे लीची के बाग

मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर की शाही लीची देश- विदेश में प्रसिद्ध है. इससे इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है. ऐसे में लीची के बागों के विस्तार में अहम कामयाबी मिली है. ये सफलता राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र को मिली है, उन इलाकों में लीची के बाग लहलहायेंगे, जहां पर जल-जमाव व बाढ़ आती है. यही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 29, 2016 6:02 AM

मुजफ्फरपुर : मुजफ्फरपुर की शाही लीची देश- विदेश में प्रसिद्ध है. इससे इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है. ऐसे में लीची के बागों के विस्तार में अहम कामयाबी मिली है. ये सफलता राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र को मिली है, उन इलाकों में लीची के बाग लहलहायेंगे, जहां पर जल-जमाव व बाढ़ आती है. यही नहीं निचले इलाके में इंटीग्रेटेड खेती योजना के तहत लीची के साथ पपीता, केला व मछली व मखाना के उत्पादन पर किया गया रिसर्च भी सफल हुआ है. वैज्ञानिकों के अनुसार समेकित कृषि की यह पद्धति बाढ़ व जल-जमाव

बाढ़ वाले इलाकों
वाले इलाके के किसानों के लिए वरदान साबित होगी. इससे उत्तर बिहार के सीतामढ़ी, शिवहर, दरभंगा व मधुबनी जिले के हजारों एकड़ जमीन का कायाकल्प होगा.
2014 से हो रहा शोध
विश्व स्तर पर लीची की तेजी से बढ़ती मांग को देखते हुए लीची उत्पादन क्षेत्र के विस्तार पर बात हुई, तो लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने सितंबर 2014 में बाढ़ व जलजमाव वाले इलाके में लीची के बाग लगाने के संभावना की तलाश शुरू की. प्रधान वैज्ञानिक डॉ एस के पूर्वे ने इसके लिए पहल की. इसके लिए अनुसंधान केंद्र के मनिका मन के तरफ के निचले इलाके में लीची का पौधे लगा कर शोध शुरू किया गया.
करीब तीन साल बीतने के बाद जलजमाव क्षेत्र में लगे लीची का विकास भीठ जमीन वाले लीची जैसा ही है. निचले इलाके की लीची के बाग पर शोध में शामिल वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आर के पटेल ने बताया कि अब तक लीची का विकास बेहतर है. अगले दो साल में लीची में फल लगना शुरू हो जायेगा. पोखर किनारे मेड़ पर लीची के साथ केला व सीजनल सब्जी का उत्पादन भी अच्छे तरीके से हो रहा है.
ऐसे लगेगा लीची का बाग
बाढ़ व जलजमाव वाले इलाके में लीची के बाग लगाने के तीन तरीके पर अनुसंधान केंद्र में प्रयोग चल रहा है. जलजमाव वाले क्षेत्र में पांच से छह मीटर चौड़ा बांध बना कर, दूसरा मेंड़ व तीसरा भींडा बना कर लीची के पौधे लगाये जायेंगे. लीची के पौधे के बीच में केला व पपीता व सीजनल सब्जी जैसे कैश क्रॉप भी लगा सकते हैं. बांध व मेड़ के मिट्टी का क्षरण रोकने के लिए किनारे से अरहर लगायी गयी है. जलजमाव क्षेत्र में लीची के उत्पादन के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि लीची पेड़ की जड़ें मिट्टी में 10 – 12 इंच नीचे जाता है. इसके वजह से जलजमाव से इस पर असर नही होता है. बल्कि लीची के फलन के मौसम में िनचले क्षेत्र का तापमान नियंत्रित रहता है. गर्म हवा के थपेड़े से नुकसान की कम संभावना होती है.
कोट-
लीची की दिन प्रति दिन बढ़ती मांग को देखते हुए लीची बाग का क्षेत्रफल बढ़ाना आवश्यक है. इसके लिए बाढ़ व जलजमाव वाले क्षेत्र में लीची के उत्पादन की संभावना तलाश की जा रही है. अनुसंधान केंद्र के जलजमाव क्षेत्र में लीची लगा कर रिसर्च चल रहा है. अब तक का परिणाम संतोषप्रद है. हम उम्मीद कर सकते हैं कि बाढ़ वाले इलाके में भी समतल क्षेत्र की तरह लीची का उत्पादन होगा.
विशाल नाथ, निदेशक, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी
सफल रहा लीची अनुसंधान केंद्र का शोध
बाढ़ व जल जमाव वाले क्षेत्र में मेड़ बना कर लगाये जायेंगे लीची के पेड़
लीची के साथ निचले इलाके की जमीन पर मछली व मखाना की बेहतर संभावना
2014 में शुरू हुआ शोध, अभी तक पौधों का विकास अन्य पौधों जैसा ही
अगले दो साल में जल-जमाव वाले क्षेत्र में फलने लगेगी लीची
लीची के साथ पपीता, केला व सीजनल सब्जी की हो सकती है खेती
– पास में पानी होने से गर्मी से कम होगी लीची के नुकसान की संभावनाa

Next Article

Exit mobile version