रजिस्ट्री के पैसे से शहर चकाचक, पर कैंपस बना है नरक

मुजफ्फरपुर: रजिस्ट्री ऑफिस से तीन माह पर मिलने वाली स्टांप शुल्क की राशि शहर के विकास पर खर्च किये जा रहे हैं. गली-मुहल्ले की सड़कें व नालियां बनवायी जा रही है. आवश्यकता पड़ने पर नगर निगम अपने कर्मचारियों को वेतन से लेकर बकाया राशि तक का भुगतान भी करता है, लेकिन हर तीन माह पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 10, 2016 9:30 AM

मुजफ्फरपुर: रजिस्ट्री ऑफिस से तीन माह पर मिलने वाली स्टांप शुल्क की राशि शहर के विकास पर खर्च किये जा रहे हैं. गली-मुहल्ले की सड़कें व नालियां बनवायी जा रही है. आवश्यकता पड़ने पर नगर निगम अपने कर्मचारियों को वेतन से लेकर बकाया राशि तक का भुगतान भी करता है, लेकिन हर तीन माह पर आमदनी कर निगम को जो विभाग खर्च करने के लिए करोड़ों रुपये उपलब्ध कराता है.

उस रजिस्ट्री ऑफिस कैंपस की दशा व दुर्दशा को आप देखेंगे, तो लगेगा कि यह रजिस्ट्री ऑफिस नहीं गाय-भैंस के रहने के लिए बना तबेला है. हालांकि, गांव-देहात से जो लोग जमीन की रजिस्ट्री कराने पहुंचते है. वे कहते हैं कि ग्रामीण इलाके में गाय-भैंस भी इससे बढ़िया जगह पर रहते हैं. यहां तो पैदल चलना भी मुश्किल है. बता दें कि कोर्ट के बाद जिले का दूसरा ऐसा ऑफिस है. जहां प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में लोग आते-जाते हैं.

बिना बारिश ही कैंपस रहता है जलमग्न

रजिस्ट्री ऑफिस का कैंपस बिना बारिश ही जलमग्न रहता है. अगर हल्की बारिश हो जाती है, तब कैंपस की स्थिति देखने लायक होती है. स्टांप वेंडर व कातिबों का बने गुमटी के नीचे तक पानी भर जाता है. पुराने रजिस्ट्री ऑफिस व रिकॉर्ड रूम के अंदर तक में पानी भरा रहता है, लेकिन बार-बार शिकायत के बाद भी नगर निगम कैंपस की दशा व दुर्दशा को सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है. जबकि, वर्तमान अवर निबंधक निलेश कुमार अपने करीब तीन साल के कार्यकाल में एक-दो बार नहीं दर्जनों बार पत्र लिखने के साथ मौखिक तौर पर निगम अधिकारियों को कैंपस में लगने वाले जलजमाव की समस्या से निजात दिलाने का गुहार लगा चुके हैं.

1.25 से 1.50 करोड़ तक जाता है पैसा

जिला अवर निबंधक निलेश कुमार बताते हैं कि उनके ऑफिस से शहरी क्षेत्र का जमीन की होने वाली रजिस्ट्री में जो स्टॉप लगता है. उसका करीब 1.25 से 1.50 करोड़ रुपये हर तीन माह पर जाता है. निगम को जब राशि लेना होता है, तब लगातार वहां के अधिकारी व कर्मचारी संपर्क में रहते है. उस दौरान सड़क बनवाने से लेकर नाले की उड़ाही तक का आश्वासन देते है, लेकिन राशि मिलने के बाद फिर वे लोग चुप बैठ जाते हैं. यह सिलसिला पिछले तीन सालों से चलता आ रहा है.

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