खादी की ‘कब्र’ पर खाद्य निगम का ‘मेला’

मुजफ्फरपुर: कहा जाता है कि खादी महज एक कपड़ा नहीं, बल्कि यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों की बुनियाद है. शोषण व हिंसा मुक्त न्यायपूर्ण समता आधारित सामाजिक व्यवस्था का अर्थशास्त्र भी. तभी तो राष्ट्रपिता ने खादी में कई प्रयोग किये जिसमें खादी की मदद के लिए ग्रामोद्योग प्रमुख था. लेकिन उनके वे प्रयोग बंद […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 5, 2014 10:01 AM

मुजफ्फरपुर: कहा जाता है कि खादी महज एक कपड़ा नहीं, बल्कि यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों की बुनियाद है. शोषण व हिंसा मुक्त न्यायपूर्ण समता आधारित सामाजिक व्यवस्था का अर्थशास्त्र भी. तभी तो राष्ट्रपिता ने खादी में कई प्रयोग किये जिसमें खादी की मदद के लिए ग्रामोद्योग प्रमुख था.

लेकिन उनके वे प्रयोग बंद हो चुके हैं. अब ग्रामोद्योग की ‘कब्र’ पर बिहार राज्य खाद्य निगम के बोरे का मेला सजाया जा रहा है. इस कड़वी सच्चई का उदाहरण बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ, मुजफ्फरपुर है. यहां का छपाई विभाग वर्षो से खाद्य निगम का गोदाम बना है.

जानकार बताते हैं कि इस छपाई विभाग में कभी 500 से अधिक कारीगर कपड़े की छपाई करते थे. इससे उनका रोजी-रोटी तो चलती ही थी, आकर्षक छपाई होने के कारण देश-प्रदेश में कपड़े की मांग भी खूब होती थी. लंबे-चौड़े इसके भवन में प्रतिदिन हजारों कपड़े पर छपाई होती थी. सुबह से शाम तक तैयार कपड़े के बंडलों का ढेर लग जाता था. मगर आज उसमें बिहार राज्य खाद्य निगम के हजारों बोरे का ढेर लगा रहता है. इसकी देखरेख करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि आठ साल से किराया पर बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ से लिया हुआ है.

सड़ रहीं बेशकीमती मशीनें
छपाई उद्योग विभाग के ठीक सामने रंगाई उद्योग विभाग है. इसमें आज भी बेशकीमती रंगाई मशीनें पड़ी हुई है जो सड़-गल रही है. इस विभाग में भी 500 सौ से अधिक लोगों को रोजगार मिलता था. दिन रात यह विभाग गुलजार करता था. मगर आज इसकी छत व दीवारें टूट-टूट कर गिर रही हैं. खिड़कियां, किंवाड़, ग्रिल में जंग लग रही है. इसके पश्चिमी परिसर में जंगल उपज गये हैं. इसी परिसर में एक जजर्र पानी टंकी है जो श्रीलंका वाले तांबे जी की याद दिलाता है. बताया जाता है कि यहां के पानी में गड़बड़ी होने के कारण कपड़े पर रंग नहीं चढ़ता था. यह बिहार के गांधी ध्वजा प्रसाद साहू, बिहार खादी ग्रामोद्योग संघ के तत्कालीन अध्यक्ष लक्ष्मी नारायण आदि के बुलावे पर 1958 में श्रीलंका के रंगाई विशेषज्ञ तांबे जी यहां आये और उन्होंने पांच सौ फीट गहरा बोरिंग करा कर उससे निकलने वाले पानी को रंगाई के लिए उपयुक्त साबित कर दिया.

रंगाई व छपाई विभाग से सटे दक्षिण कागज उद्योग विभाग था. बताया जाता है कि यहां से हैंड मैड पेपर का उत्पादन होता था जिसकी सर्वाधिक मांग किताब व पत्रिका के कवर पेज के अलावा फाइल आदि बनाने के लिए होता था. इसमें लगभग दो दर्जन लोग काम करते थे. यह विभाग भी रंगाई, छपाई विभाग की तरह 1980 के दशक में बंद हो गया जो फिर नहीं खुल सका. इसके भवन आज देख-रेख के अभाव में जजर्र हो रहे हैं. कोई खोज-पूछ करने वाला नहीं है.

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