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लैंगिक कमेटी की तीन साल में एक भी बैठक नहीं

मुजफ्फरपुर: दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद पूरे देश में महिला सुरक्षा को लेकर कानून में व्यापक बदलाव हुए. प्राइवेट से लेकर सरकारी दफ्तरों में लैंगिक उत्पीड़न के नाम पर कमेटियों का गठन भी किया गया. लेकिन ये कमेटियां केवल कागज पर सिमट कर रह गयीं. बीआरए बिहार विवि में भी कुछ ऐसा ही […]

मुजफ्फरपुर: दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद पूरे देश में महिला सुरक्षा को लेकर कानून में व्यापक बदलाव हुए. प्राइवेट से लेकर सरकारी दफ्तरों में लैंगिक उत्पीड़न के नाम पर कमेटियों का गठन भी किया गया. लेकिन ये कमेटियां केवल कागज पर सिमट कर रह गयीं. बीआरए बिहार विवि में भी कुछ ऐसा ही हाल है. यहां पर बनी लैंगिक उत्पीड़न कमेटी अफसरशाही की भेट चढ़ गयी.

2013 में तत्कालीन प्रोवीसी डॉ नीलिमा सिन्हा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया था. लेकिन गठन के बाद से पिछले तीन सालों में लैंगिक उत्पीड़न के नाम पर आज तक कोई बैठक नहीं हुई. हालांकि इस दौरान विवि में अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक पर लैंगिग उत्पीड़न के आरोप भी लगे हैं. इसके बावजूद अधिकारियों ने इस पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा.
नौ फरवरी को होना है वर्कशॉप : लैंगिक उत्पीड़न को लेकर बंगलुरु के इंस्टीच्यूट ऑफ पब्लिक एडमिस्ट्रेशन की ओर से दो दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन 9 व 10 फरवरी को किया गया है. इसमें विवि को भी शामिल होना है. वहां से पत्र मिलने के बाद विवि को यह याद आया है कि विवि में कमेटी का गठन होना अनिवार्य है.
छात्राएं हुईं शिकार, खामोश रहे अधिकारी
विवि में लैंगिक उत्पीड़न के मामले में सबसे ज्यादा शिकार छात्राएं हुईं. इसके बावजूद विवि के अधिकारी खामोश रहे. अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक पर काम के बदले शारीरिक शोषण का आराेप लगा. इसकी शिकायत भी हुई, लेकिन उन शिकायतों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. पीजी के कई विभागों में ऐसे मामले सामने आये, जहां छात्राओं ने खुल कर इसकी शिकायत की. आये दिन कभी चंदे के नाम पर, तो कभी किसी और बहाने से छात्राओं से छेड़खानी की जा रही हैं. लेकिन विवि इस पर खामोश है.

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