आंदोलनकारी बोले, फैसले का हो रिव्यू

मुजफ्फरपुर: बागमती नदी पर तटबंध निर्माण के विरोध की आंच एक बार फिर समाहरणालय पहुंची. बागमती संघर्ष मोरचा के संयोजक जितेंद्र यादव के नेतृत्व में गायघाट के करीब एक दर्जन लोग मंगलवार को डीएम धर्मेंद्र सिंह से मिले. उनके समक्ष मांग रखी कि तटबंध निर्माण के फैसले की फिर से रिव्यू करायी जाये. इसमें सरकारी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2017 8:33 AM
मुजफ्फरपुर: बागमती नदी पर तटबंध निर्माण के विरोध की आंच एक बार फिर समाहरणालय पहुंची. बागमती संघर्ष मोरचा के संयोजक जितेंद्र यादव के नेतृत्व में गायघाट के करीब एक दर्जन लोग मंगलवार को डीएम धर्मेंद्र सिंह से मिले. उनके समक्ष मांग रखी कि तटबंध निर्माण के फैसले की फिर से रिव्यू करायी जाये.

इसमें सरकारी के साथ-साथ संघर्ष मोरचा की आेर से सुझाये गये विशेषज्ञों को भी शामिल किया जाये. हालांकि, डीएम ने इस मामले में खुद को अक्षम बताया. कहा, मामले में जल संसाधन विभाग को लिखा जायेगा. वहां से जो भी फैसला होगा, वही मान्य होगा. उन्होंने प्रतिनिधिमंडल से तत्काल तटबंध निर्माण में व्यवधान उत्पन्न नहीं करने को कहा. पर, लोग तैयार नहीं हुए. उनका कहना था कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती, आंदोलन जारी रहेगा.

साठ के दशक में बागमती नदी में नया तटबंध बनाने का फैसला हुआ था. वर्ष 1970 में भारत-नेपाल बॉर्डर से रुन्नीसैदपुर तक करीब 77 किलोमीटर तटबंध का निर्माण भी हुआ. हालांकि, बाद में इस पर ब्रेक लग गया. वर्ष 2006 में एक बार फिर इस परियोजना पर काम शुरू हुआ. रुन्नीसैदपुर से सोमरमार हाट तक तटबंध का निर्माण भी हुआ. मुजफ्फरपुर जिला की बात करें तो उसी साल कटरा में भी तटबंध का निर्माण शुरू हुआ, जो काफी हद तक पूरा हो चुका है. गायघाट में भी तटबंध बनना है, लेकिन स्थानीय लोग इसका लगातार विरोध कर रहे हैं. स्थानीय लोगों ने विरोध के लिए वर्ष 2012 में बागमती बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया, जो लगातार सक्रिय है. विरोध के कारण अभी तक गायघाट में तटबंध का निर्माण शुरू नहीं हो सका है. बीते 28 जनवरी को कटरा में अधूरे काम को पूरा करने के लिए एजेंसी ने सामान गिराया. लेकिन, संघर्ष समिति के लोग वहां पहुंच गये व एजेंसी के टेंट को उखाड़ दिया. वाहनों को भी वहां से वापस भेज दिया. मामले में समिति के संयोजक जितेंद्र यादव सहित अन्य लोगों पर प्राथमिकी भी दर्ज करायी गयी है. डीएम से मुलाकात के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने मामले को वापस लेने की मांग भी की.
‘बढ़ जायेगी बाढ़ की विभीषिका’
जितेंद्र यादव ने बताया कि पहले बागमती नदी में बाढ़ आने से उपजाऊ मिट्टी आती थी, जिससे फसल अच्छी होती थी. लेकिन, जब से तटबंध के माध्यम से इसे तीन किलोमीटर के दायरे में बांधने का प्रयास शुरू हुआ है, बाढ़ की विभीषिका बढ़ गयी है. तटबंध पूरा होने पर जिले के 70 गांव इससे प्रभावित होंगे. उन्होंने कहा कि बागमती नदी के बहाव को हायाघाट में 300 मीटर व कोल्हुआ में 150 मीटर दायरे में सीमित कर दिया गया है. इसके कारण बाढ़ के बाद भी लंबे समय तक वहां पानी जमा रहता है. यदि बहाव की लंबाई बढ़ायी जाये तो इससे राहत मिलेगी.
‘पहले हो पुनर्वास, फिर लें जमीन’ : विरोध का दूसरा कारण विस्थापित लोगों के पुनर्वास की लंबी प्रक्रिया को लेकर है. जितेंद्र यादव कहते हैं कि यदि रिव्यू कमेटी तटबंध को जरूरी बताती है, तो उसका निर्माण हो. लेकिन इसके कारण जिन 70 गांव के लोग विस्थापित होंगे, उनके पुनर्वास की व्यवस्था पहले हो. जानकारी हो कि औराई, कटरा में तटबंध निर्माण से 44 गांव के लोग विस्थापित हुए हैं. इसमें से महज तीन गांवों, जीवाजोर, बेनीपुर उत्तरी व बेनीपुर दक्षिणी के विस्थापितों को ही पुनर्वासित किया जा सका है. यही नहीं बांकी गांवों में छिटपुट लोगों को ही मुआवजा भी मिला है.

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