पढ़ाई की जगह राजनीति का अखाड़ा बना विवि!

मुजफ्फरपुर: ये यूनिवर्सिटी का इलाका है. चर्चा में रहता है. यहां आप क्या खोज रहे हैं, परेशानी और मनमानी यहां कदम-कदम पर है. चमक-दमक से हट कर असली हालत देखना चाहते हैं, तो आपको प्रशासनिक ब्लॉक से हटकर अंदर की ओर जाना होगा. ये कहते हुए एक राहगीर आगे बढ़ जाता है. नाम पूछने पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2017 8:35 AM
मुजफ्फरपुर: ये यूनिवर्सिटी का इलाका है. चर्चा में रहता है. यहां आप क्या खोज रहे हैं, परेशानी और मनमानी यहां कदम-कदम पर है. चमक-दमक से हट कर असली हालत देखना चाहते हैं, तो आपको प्रशासनिक ब्लॉक से हटकर अंदर की ओर जाना होगा. ये कहते हुए एक राहगीर आगे बढ़ जाता है. नाम पूछने पर कहने लगता है कि हम हाइलाइट नहीं होना चाहते हैं. हम जानते हैं कि आप पत्रकार हैं. आप यहां न्यूज के लिए आये हैं, लेकिन आपके लिखने से क्या होगा? ठीक है, अपना काम करते रहिए? जिन्हें सुनना-देखना है, उन्होंने अपने आवास की दीवारों के साथ खुद के मनोबल को इतना बढ़ा लिया है कि कुछ दिखायी और सुनायी नहीं दे. बदलाव हो रहा है, आप देख ही रहे होंगे.
दिन के दो बजे हम इस बतकही के साथ आगे बढ़ते हैं. कुलपति आवास के सामने विश्वविद्यालय थाना है. वीसी आवास की बाउंड्री से लेकर गेट तक सब ऊंचे हो गये हैं, जहां बाउंड्री छोटी लगी, वहीं पर टीन की चादर लगा दी गयी है. ऐसे ही विवि थाने व उसके बगल की प्रशासनिक भवन के साथ किया गया है. इसी भवन में वीसी समेत यूनिवर्सिटी के अन्य प्रशासनिक अधिकारी बैठते हैं. यहां गेट पर गेट, यानी डबल गेट लगाये गये हैं. सख्ती होती है, तो यहीं पर आइकार्ड की जांच होती है और जब प्रदर्शन होता है, तो सारी व्यवस्थाएं धरी रह जाती हैं. कर्मचारी बांस उठा लेते हैं, तो छात्र उन्हें बंधक बनाने से गुरेज नहीं करते. ये यूनिवर्सिटी में रुटीन काम हो चला है. बात बढ़ती है, तो मामला थाने तक पहुंचता है, लेकिन छात्रहित का हवाला देकर रफा-दफा हो जाता है.
कई बार यूनिवर्सिटी के अधिकारी कहते हैं कि उपद्रव करनेवाले हमारे यहां के नहीं थे. वो बाहर से आयी थे, तो ऐसे में सवाल उठता है कि आपकी व्यवस्था क्या है? जिसके नाम पर करोड़ों खर्च कर दिये, लेकिन वही संभल नहीं पा रहा है. प्रशासनिक भवन के साथ यूनिवर्सिटी के कई विभागों की रंगाई पुताई हुई है, लेकिन और चीजों का नंबर नहीं आया है. खिड़कियों के कांच टूटे हैं. प्रशासनिक भवन के पीछे छप्पर डाल कर मवेशियों के रहने की जगह बनायी गयी है. सामने ही नांद रखी है. सामने दर्शन शास्त्र समेत तीन विभाग हैं. इनकी बाउंड्री टूटी हुई है. कमलबाग चौक व खबड़ा की ओर से आनेवाले लोग इसे शार्ट रास्ते के रूप में प्रयोग करते हैं. बाइक से लेकर पैदल आवाजाही लगी रहती है. विभाग के पीछे यूनिवर्सिटी का तालाब है, जिसमें जलकुंभी दिखती है. इसी के किनारे कम्युनिटी हॉल है, जो शायद सालों से नहीं खुला है. गेट से लेकर अन्य जगहों पर धोबी धुले कपड़े फैलाने का काम करते हैं. बगल में दामूचक इलाका है, जिसमें ज्यादातर यूनिवर्सिटी से जुड़े लोग ही रहते हैं. सुबह की सैर के समय पूर्व व वर्तमान अधिकारी आपस में चटकारे लेकर बातें करते हैं. पूर्व अधिकारी अपने समय को याद करते हैं, जबकि वर्तमान यूनिवर्सिटी की गुटबाजी को लेकर अपनी बात रखते हैं.

कैसे और किसके यहां फैसले होते हैं. फैसलों का निहितार्थ क्या है? कैसे मामलों को जांच के नाम पर उलझा कर चेहतों को कार्रवाई से बचा लिया जाता है और कैसे कुछ मामलों में ताबड़तोड़ कार्रवाई होती है. यह चर्चा सुबह की सैर में होती है. दामूचक से कलमबाग चौक व मझौलिया रोड से जोड़नेवाली सड़क के दोनों ओर यूनिवर्सिटी के क्वार्टर व छात्रवास हैं. सड़क की हालत ठीक नहीं है. इसी रोड पर विवि का ऑडिटोरियम है, जो शमीम की हत्या के बाद से बंद हैं, लेकिन इसके सामने बने क्वार्टरों की ऊंची-नीची बाउंड्री पूरी कहानी कहती है. कैसे अधिकारी कद से साथ घर की चाहरदीवारी को भी ऊंची करवा लेते हैं. इसकी चर्चा विवि में पढ़नेवाले छात्र करते हैं. कुलपति का कार्यकाल पूरा हो गया है. प्रभारी वीसी का ऐलान भी हो गया है, जिसके बाद से गहमा-गहमी है. डॉ पलांडे के कार्यकाल का मूल्यांकन भी हो रहा है. आये थे, तो कह रहे थे कि हम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई का माहौल बना देंगे, लेकिन अब उससे संबंधित सवालों से बचना चाहते हैं. यूनिवर्सिटी की कार्यशैली पर जितने मुंह, उतनी तरह की बाते हैं.

कलमबाग चौक की ओर आगे बढ़ने पर विवि अधिकारियों के क्वार्टर हैं. यहां निगम का पंप है. इसके पास की सड़क हाल में ही सांसद निधि से बनी है, लेकिन दो माह से कम समय में यह सड़क टूट गयी है. इसे देखनेवाला कोई नहीं है. यह सड़क वैसे यूनिवर्सिटी कैंपस में बनी है, लेकिन एक विशेष मकान के सामने तक जाकर पूरी हो जाती है, जबकि उसके आसपास के मकान कच्ची सड़क से ही जुड़े हैं. इससे संबंधित बोर्ड लगा है, लेकिन इस पर ये नहीं लिखा है कि कितनी लागत से सड़क बनी है.

इस सड़क से आगे बढ़ने पर एक ओर एलएस कॉलेज और दूसरी ओर यूनिवर्सिटी के विभाग हैं. सड़क कच्ची है, लेकिन इसके आसपास मनरेगा के तहत पेड़ लगाये गये हैं. कुछ यूनिवर्सिटी के कर्मचारी भी रहते हैं, जिन्होंने सुविधा के मुताबिक कब्जा किया है. कोई कहीं सब्जी लगाये हुये हैं, तो कहीं मवेशी पाले हुये हैं. इस रास्ते से होकर आम लोग भी आते-जाते हैं. यहां से गुजरने पर किसी गांव में होने का एहसास होता है. यूनिवर्सिटी व ऐतिहासिक कॉलेज बोध बोध नहीं होता है.

गाय से लेकर गोबर तक दिखता है. इसी के बीच से लोगों का आना-जाना जारी रहता है. यूनिवर्सिटी के विभागों में ज्यादा क्लॉस चलते, तो नहीं दिखते हैं, लेकिन जिस क्लॉसों में शिक्षक व छात्र दिखते हैं. उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है.

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