बैंड-बाजा तैयार, आज निकलेगी बरात
मुजफ्फरपुर : भगवान शंकर आज विवाह करने के लिए निकलेंगे. उनकी भव्य बरात दोपहर एक बजे रामभजन संकीर्तन आश्रम से निकलेगी. बरात सबसे पहले गरीबनाथ मंदिर जायेगी, जहां पर पूजा-अर्चना के बाद बरात शहर के विभिन्न जगहों का भ्रमण करते हुए वापस रामभजन संकीर्तन आश्रम पहुंचेगी. बरात में हाथी, घोड़े, ऊंट सहित दर्जनों बैंड भजनों […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
February 24, 2017 9:03 AM
मुजफ्फरपुर : भगवान शंकर आज विवाह करने के लिए निकलेंगे. उनकी भव्य बरात दोपहर एक बजे रामभजन संकीर्तन आश्रम से निकलेगी. बरात सबसे पहले गरीबनाथ मंदिर जायेगी, जहां पर पूजा-अर्चना के बाद बरात शहर के विभिन्न जगहों का भ्रमण करते हुए वापस रामभजन संकीर्तन आश्रम पहुंचेगी. बरात में हाथी, घोड़े, ऊंट सहित दर्जनों बैंड भजनों की धुन बजाते हुए चलेंगे. साथ ही सभी देव व देवियों के अलावा भूत-पिशाचों का भी कारवां होगा. इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है. गुरुवार को संयोजक पूर्व विधायक केदारनाथ प्रसाद के अलावा दर्जनों कलाकार बरात की झांकी काे अंतिम रूप देने में जुटे रहे.
शिव बनने के लिए व्यक्ति का चुनाव लॉटरी सिस्टम से किया जायेगा. हर वर्ष शिव बनने के लिए भक्तों उमड़ती भीड़ को देखते हुए संयोजक केदारनाथ प्रसाद ने यह व्यवस्था लागू की है. उन्होंने कहा कि एक शिव बनाने की परंपरा है, जबकि काफी लोग शिव बनने के लिए तैयार हो जाते हैं. इसे देखते हुए वे शिव बनने वाले व्यक्ति का चुनाव लॉटरी से करते हैं. सभी के बीच कूपन रख दिया जाता है. जिसमें किसी एक में शिव बनने की बात होती है. यह कूपन जिस व्यक्ति को मिलता है, उसे शिव बनाया जाता है. ऐसे व्यक्ति को दोपहर से लेकर देर रात तक शिव का वेश धारण कर बरात में चलना पड़ता है. गरीबनाथ मंदिर के पंडित कमल पाठक कहते हैं कि 1958 से मुझे महाशिवरात्रि का स्मरण है. उस वक्त मंदिर में भीड़ लगती थी. दो तीन मारवाड़ी परिवार व दो तीन बिहारी परिवार रात की आरती के बाद चुमावन करते थे, सुबह चार बजे कोहबर के लिये मंदिर बंद होता था फिर छह बजे सुबह खुलता था.
उस वक्त शहर के लोगों की खास रूचि आयोजन में नहीं होती थी. 1971 में मैंने पिताजी (बड़े महंत जी) से बारात के आयोजन का प्रास्ताव रखा. पिताजी ने स्वयं जाकर आशा रथ और राज गेट वाले (चौधरी जी नाम था शायद) से बात की. उसके बाद बिसु बाबू (बिसु जालान), राजेंद्र जी (केदार जी के बड़े भाई), वंशी बाबू, केदार जी, टावर के पश्चिम कार्ड दुकान वाले गुलशन जी जैसे लोगों की देख-रेख में केवल मच्छन बैंड, अबरार बैंड के साथ बरात निकली. सबसे आगे गुलशन जी अपने विचित्र हेडलाइट वाले स्कूटर से व राजेंद्र जी अपने लैम्ब्रेटा से चलते थे. उसके पीछे मैं अपने एमआइटी के कुछ मित्रों के साथ बैंड की धुन पर उछलते कूदते चलता था. कोई हाथी घोड़ा नहीं. बाजार में भी कोई खास प्रतिक्रिया नहीं. उस वक्त शहर में सिख समुदाय के जुलूस के अलावा यह पहला धार्मिक जुलूस था. बाद में समाजसेवी केदार जी ने आयोजन की पूरी जिम्मेवारी स्वयं पर ले ली, उसके बाद यह भव्य होता गया.