– आर्थिक तंगी का शिकार परिवार, इलाज के लिए पैसे नहीं
– गांव के मुखिया ने कहा, परिवार को बड़ी मदद की जरूरत
– आर्थिक तंगी के चलते बेटे कर ली थी आत्महत्या
मुजफ्फरपुर (मीनापुर) : यह तस्वीर आजादी की लड़ाई के उस अमर सिपाही के पतोहू मुनिया की है, जिन्हें हम जुब्बा सहनी के नाम से याद करते हैं. मुनिया मीनापुर के कोइली पंचायत के चैनपुर गांव में रहती है. 11 मार्च को शहादत दिवस पर जुब्बा सहनी को पूरा देश याद करता है, लेकिन उनके परिजन किस हाल में हैं. ये तस्वीर बयान कर रही है. मुनिया अब अपने परिवार की सबसे बड़ी सदस्य है. बीमार है. घर में इतने पैसे नहीं कि इलाज हो सके. 15 दिन से कुछ नहीं खाया. स्थिति दिनोंदिन बिगड़ रही है. परिवार में मुनिया की बहू गीता, नाती गया और पोती रिंकू कुमारी है. तीनों सेवा में लगे हैं. कहते हैं, लगता है कि अब अम्मा नहीं बचेंगी.
अमर शहीद जुब्बा सहनी के परिवार की माली हालत हाल में खराब हुई है. ऐसा नहीं है. सालों पहले से परिजन आर्थिक तंगी का शिकार रहे हैं. पति की मौत के बाद मुनिया मजदूरी करके अपने परिवार को पालती रही. बेटा बिकाऊ सहनी व बहू गीता भी दूसरों के यहां मजदूरी करते थे. तीन साल पहले जब बेटी बड़ी हुई, तो बिकाऊ सहनी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वो उसके हाथ पीले कर सकें, सो उन्होंने लोकलाज के डर से फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.
बेटे की मौत से मुनिया टूट गयी. हालांकि बाद चंदा करके रिंकू की शादी हुई. अभी दो पोती और हैं, जिनकी शादी होनी है, लेकिन इससे पहले ही मुनिया की तबियत बिगड़ गयी है. सास की तबियत खराब होने के बाद भी बहू गीता काम पर जाती है, जिसकी एवज में उसे 60 रुपये मिलते हैं. उसी से परिवार के सदस्यों को भोजन होता है. घर में एक टाइम चूल्हा जलता है. अगर बचता है, तो दूसरी टाइम बासी खाना होता है, नहीं तो बिना खाये ही सोना पड़ता है.
यह हालत उस भारत का है, जिसमें सबको भोजन की गारंटी का कानून सरकार ने बनाया है, लेकिन शायद यह मुनिया के परिवार पर लागू नहीं होता? पोता गया कुमार अभी छोटा है, लेकिन काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के बनारस गया था. दिहाड़ी का काम मिल रहा था. इसी बीच दादी मुनिया की तबियत के बारे में सुना और वापस आ गया. अब दादी की सेवा में लगा है, लेकिन इतने रुपये नहीं है कि इलाज के लिए दादी को शहर के अस्पताल ले जा सके. दादी की हालत ऐसी हो गयी है कि वह उठ तक नहीं पा रही हैं, लेकिन देखनेवाला कोई नहीं है.
गया कुमार कहता है कि लगता है कि अब दादी नहीं बचेंगी. यह कहते हुये उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं. रिंकू कुमारी भी ससुराल से दादी की सेवा के लिए आ गयी हैं. दिनभर पास बैठी रहती हैं. दादी बेसुध चटाई पर पड़ी हुई हैं. देखने से सहज विश्वास नहीं होता कि ये उस सेनानी की बहू हैं, जिसने अपने साथियों को बचाने के लिए अंगरेज दारोगा की हत्या का इल्जाम अपने सिर पर ले लिया था.
जब्बा सहनी के नाम मुजफ्फरपुर शहर में पार्क बना है. सीतामढ़ी तक रेल चली, तो स्टेशन भी बन गया, लेकिन भूमिहीन परिवार को इतनी जमीन नहीं मिल पायी कि वह उस पर खेती करके खा सके. एक टाइम के भोजने के लिए उसे दूसरे के खेतों व घरों में ही काम करना पड़ रहा है. मुजफ्फरपुर में कोई भी बड़ा नेता आता है, तो अपने भाषण में जुब्बा सहनी का नाम जरूर लेता है, लेकिन आज तक इतना नहीं हो पाया कि जुब्बा सहनी के परिजनों के दो जून की रोटी की व्यवस्था हो सके.
चंदे से हुई थी पोती की शादी
27 नवंबर 2014 को मुनिया की पोती रिंकू की शादी हुई थी. उस समय शादी के लिए लोगों ने चंदा किया था. मीनापुर प्रखंड से लेकर शहर तक के लोगों ने सहयोग किया था. तत्कालीन सांसद कैप्टन जयनारायण निषाद ने उपहार में गैस सिलेंडर दिया था, लेकिन पैसों के अभाव में रिंकू दोबारा गैस नहीं भरवा सकी.
जुब्बा सहनी की पतोहू मुनिया ने 15 दिनों से अन्न छोड़ दिया है. उसकी हालत नाजुक बनी हुई है. सभी जुब्बा के नाम पर राजनीतिक रोटी सेकते हैं, लेकिन उनके परिवार की दुर्दशा देखने की फुर्सत किसी को नहीं है. मैं बीच-बीच में मदद करता हूं, लेकिन वो काफी नहीं है. परिवार को बड़ी मदद की जरूरत है. अजय सहनी, मुखिया,कोइली