– पुलिस ने रिपोर्ट में नहीं किया जिक्र
– फाइनल रिपोर्ट में भी गोली का तथ्य छुपाया
– अभियोजन पदाधिकारी ने डीएम को लिखा पत्र
– पत्र में संबंधित व्यक्ति पर कार्रवाई के लिए लिखा
– मामले में शातिर अनिल ओझा है आरोपित
– अनिल पर छात्र नेता शमीम की हत्या का आरोप
– बरामद राइफल की गोली पर लिखा था पीओएफ
मुजफ्फरपुर : चार साल पहले बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के कम्युनिटी हॉल से पाकिस्तान में बनी गोलियां बरामद हुई थीं. उस समय एफएसएल की जांच रिपोर्ट में भी इसकी पुष्टि हुई थी. मामले को लेकर जो प्राथमिकी दर्ज की गयी थी, उस पर भी गोली के ऊपर पीओएफ लिखे होने का जिक्र किया गया था, लेकिन पुलिस ने कोर्ट में दाखिल अपनी रिपोर्ट में इसका जिक्र तक नहीं किया है. इससे पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गयी है. अब अभियोजन पदाधिकारी ने इसको लेकर डीएम को पत्र लिखा है, जिसमें कार्रवाई की बात कही है.
एक अगस्त 2013 को छात्र नेता मो. शमीम की विवि परिसर में गोली मार कर हत्या कर दी गयी थी. मामले में खबड़ा के शातिर अनिल ओझा सहित सात के खिलाफ विवि थाना में हत्या व आर्म्स एक्ट की प्राथमिकी (22/13) दर्ज हुई थी. जांच के क्रम में विवि के कम्युनिटी हॉल के कमरे में अनिल ओझा का कार्यालय होने की जानकारी पुलिस को मिली थी. घटना के बाद अनिल ओझा, उसका निजी अंगरक्षक शंभू सिंह, राजकुमार व शिवेंदु कमरे में हथियार रख कर फरार होने की बात भी सामने आयी थी. कम्युनिटी हॉल अनिल ओझा की पत्नी संगीता के नाम से आवंटित था.
आठ अगस्त को मुशहरी के तत्कालीन अंचल निरीक्षक सह दंडाधिकारी रामू ठाकुर की देखरेख में वहां छापेमारी हुई थी. वहां से दो गोली (जिस पर पीओएफ-67.30 अंकित था), लोहे के दो धारदार दाब, हंसिया, संगीता ओझा का पैनकार्ड, अनिल ओझा का पहचान पत्र, शंभू सिंह की दोनाली बंदूक का लाइसेंस, बीयर की सात खाली बोतलें व दो बाइक व अन्य सामान बरामद हुए थे. इसकी जब्ती सूची बना कर पुलिस ने आर्म्स एक्ट के तहत अनिल ओझा, संगीता ओझा, शंभू सिंह, गणोशी साह व शिवेंदु को आरोपित बनाया था.
बरामद गोली को पुलिस ने एफएसएल जांच के लिए पटना भेजा था, जिसकी रिपोर्ट 28 नवंबर 2013 को आयी थी. रिपोर्ट में बरामद गोली के पाकिस्तान ऑर्डिनेंस फैक्टरी में बने होने की पुष्टि की गयी थी. मामले में विवि पुलिस ने धारा 25(1-बी) ए/26, 35 आर्म्स एक्ट के तहत प्राथमिकी (23/13) दर्ज की गयी थी, लेकिन कानूनविदों का मानना है कि एफएसएल रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस को इस गंभीर मामले में सुसंगत धाराओं को शामिल करने के लिए कोर्ट में शुद्धि पत्र देना चाहिए था.
अनिल ओझा को 28 नवंबर 2016 को पकड़ा गया था. जेल जाने के बाद पुलिस ने उसे इस मामले में न्यायिक रिमांड मांगा. साथ ही 17 जनवरी 2017 को कांड के वर्तमान अनुसंधानक जवाहर सिंह ने डीएम के यहां मामले के अभियुक्तों के विरुद्ध आर्म्स एक्ट के तहत अभियोजन चलाने के लिए स्वीकृति देने के लिए अभियोजन प्रारूप पत्र भेजा, लेकिन उक्त प्रारूप में एफएसएल की रिपोर्ट में बरामद गोली के पाकिस्तान ऑर्डिनेंस फैक्टरी में निर्मित होने की बात नहीं लिखी. इसी रिपोर्ट के आधार पर डीएम की ओर से मामले में अभियोजन की स्वीकृति मिल गयी. स्वीकृति मिलने के बाद अनुसंधानक जवाहर प्रसाद सिंह ने 18 फरवरी 2017 को इस मामले का अंतिम प्रतिवेदन कोर्ट में समिर्पत कर दिया. कोर्ट में दाखिल अंतिम प्रतिवेदन में भी जांच अधिकारी ने गोली का जिक्र तो किया, लेकिन वह कहां की बनी है. यह बात नहीं लिखी.
केंद्रीय एजेंसियों को देनी थी जानकारी?
कानून के जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान में निर्मित गोली के मामले में पुलिस की ओर से लापरवाही बरती गयी है. जिस समय जांच रिपोर्ट आयी थी. एनआइए या किसी ओर केंद्रीय जांच एजेंसी को इसकी जानकारी दी जानी चाहिये थी, ताकि इस बात की जांच होनी चाहिये थी कि गोली किस माध्यम से विवि के कम्युनिटी हॉल तक पहुंचे. अधिवक्ता प्रियरंजन अन्नू राय का कहना है कि मामले में पुलिस ने आरोपितों को बचाने का काम किया.
क्यों छुपायी गयी गोली के पाक में बने होने की बात?
रिपोर्ट सामने आने के बाद भी पाकिस्तान में बनी गोली की बात क्यों छुपायी गयी. ये सवाल खड़ा हो गया है, क्योंकि ये बहुत अहम तथ्य है. मामले में एक जगह पर नहीं बल्कि कई स्थानों पर इसका जिक्र नहीं किया गया. प्राथमिकी व जांच रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया, लेकिन जांच अधिकारी की डायरी, अभियोजन स्वीकृति को लेकर डीएम को दिये आवेदन व अंतिम प्रतिवेदन रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं किया गया है.
पूरे मामले की जांच की जिम्मेवारी एएसपी राजीव रंजन को दी गयी है. जांच रिपोर्ट मिलने के बाद आवश्यक कार्रवाई की जायेगी.
एसएसपी, विवेक कुमार