केजरीवाल की राह चलेंगे विजेंद्र

मुजफ्फरपुर: पिछले दो चुनाव हारने के बाद राजनीतिक चक्रव्यूह में घिरने वाले नेता विजेंद्र चौधरी अब केजरीवाल की राह अपनाने की तैयारी में हैं. 15 वर्षो तक विधायक रहने व परोक्ष रूप से 2002 से ही नगर निगम की राजनीति में हावी रहने वाले विजेंद्र को मुजफ्फरपुर की राजनीति में चाणक्य माना जाता रहा है, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 8, 2014 10:40 AM

मुजफ्फरपुर: पिछले दो चुनाव हारने के बाद राजनीतिक चक्रव्यूह में घिरने वाले नेता विजेंद्र चौधरी अब केजरीवाल की राह अपनाने की तैयारी में हैं. 15 वर्षो तक विधायक रहने व परोक्ष रूप से 2002 से ही नगर निगम की राजनीति में हावी रहने वाले विजेंद्र को मुजफ्फरपुर की राजनीति में चाणक्य माना जाता रहा है, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में करारा झटका लगने के बाद वे हाशिये पर आ गये हैं.

नोट फोर वोट मामले में भी उनका नाम उछला. निगरानी थाना में प्राथमिकी भी दर्ज हुई. इधर, श्री चौधरी राजनीति के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए बिसात बिछाने में लगे हैं. हालांकि, हर जगह उन्हें निराशा ही हाथ लग रही है.

एक साल पहले वे लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए गांव-गांव का दौरा कर चुके हैं, लेकिन लोजपा-भाजपा गठबंधन से उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया. समझौते में मुजफ्फरपुर सीट भाजपा के पास जाते ही उन्होंने लोजपा महासचिव व पार्टी से इस्तीफा दे दिया. फिर राजद के तरफ मुखातिब हुए. मगर राजद ने भी गंठबंधन में यह सीट कांग्रेस को दे दी, जिससे श्री चौधरी को फिर बड़ा झटका लगा, लेकिन विजेंद्र ने अभी भी हार नहीं मानी है, वह केजरीवाल की तरह नुक्कड़ सभा करके लोगों से लोकसभा चुनाव लड़ने के बारे में राय लेंगे. इसमें वह लोगों से पूछेंगे, लोकसभा चुनाव लड़ें या नहीं. उनकी नक्कड़ सभाएं रविवार से शुरू हो सकती है.

रघुनाथ पांडेय को हरा कर आये थे सुर्खियों में
विजेंद्र चौधरी ने पहली बार विधानसभा चुनाव 1995 में लड़ा, तब इन्होंने रघुनाथ पांडेय को हराकर सुर्खियां बटोरी थीं. उस समय बिहार में नारा लगता था कि ‘राजो- रघुनाथ-प्रभुनाथ’ को हराना आसान नहीं है, लेकिन ये नारा ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. रघुनाथ पांडेय 1991 का लोकसभा चुनाव कद्दावर नेता जार्ज फर्नांडिस से हारे. इसके बाद 1996 में वैशाली चले गये, वहां रघुवंश प्रसाद सिंह से हार गये. इसके बाद औराई विधानसभा क्षेत्र से 2000 में किस्मत आजमाई, लेकिन वहां भी मायूसी हाथ लगी थी. ये वो दौर था, जब लगातार विजेंद्र चौधरी चुनाव जीत रहे थे.

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