100 साल बाद गांधी को खड़ा करना आसान नहीं

मुजफ्फरपुर : एक सौ वर्ष बाद गांधी का शहर में अवतरित होना शहरवासियों के अलावा कलाकारों के लिए गर्व का विषय था. गांधी सहित कृपलानी, विल्सन जैसे पात्रों को जीने वाले लोगाें की प्रतिभा तो दर्शक देख रहे थे. लेकिन नेपथ्य में कई ऐसे कलाकार थे, जिनकी कई महीनों की मेहनत ने साकार रूप लिया. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 12, 2017 5:04 AM

मुजफ्फरपुर : एक सौ वर्ष बाद गांधी का शहर में अवतरित होना शहरवासियों के अलावा कलाकारों के लिए गर्व का विषय था. गांधी सहित कृपलानी, विल्सन जैसे पात्रों को जीने वाले लोगाें की प्रतिभा तो दर्शक देख रहे थे. लेकिन नेपथ्य में कई ऐसे कलाकार थे, जिनकी कई महीनों की मेहनत ने साकार रूप लिया. नाटक के निर्देशक संजीत किशोर इसे अपने लिए दुर्लभ क्षण बताते हैं.

वे कहते हैं कि नाटक की पस्तुति तो उन्होंने अनगिनत की है, लेकिन गांधी के रूप को अब तक जैसा किताबों में पढ़ा था उसी रूप में लोगों के बीच रखना मुश्किल कार्य था. गांधी के चलने, उठने-बैठने व संवाद अदायगी आसान नहीं था. गांधी के साथ उनसे जुड़े सभी पात्रों की जीवनी का अध्ययन करने के बाद उन्हें वास्तविक रूप के समक्ष रखने की कोशिश की गयी है.
यह कार्य मेरे लिए भी चुनौतीपूर्ण था. सह निर्देशक सुमन वृक्ष कहते हैं कि हेरिटेज वाक को उसी रूप में रख पाना आसान नहीं था. उसके लिए हमलोगों ने काफी मेहनत की थी. लोगों ने जब गांधी का स्वागत किया. उनके भाषणों पर तालियां बजायीं, तो लगा कि हमलोगों का प्रयास सफल हो गया.

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