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चंपारण सत्याग्रह के हीरो थे राजकुमार शुक्ल

मुजफ्फरपुर : चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के मौके पर प्रभात खबर की ओर से चंपारण तब और अब पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. प्रेस क्लब सभागार में हुए आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में कमिश्नर अतुल कुमार, मुख्य वक्ता डॉ भोजनंदन प्रसाद सिंह व डॉ अरुण कुमार सिंह ने भाग लिया. लगभग सवा […]

मुजफ्फरपुर : चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के मौके पर प्रभात खबर की ओर से चंपारण तब और अब पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. प्रेस क्लब सभागार में हुए आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में कमिश्नर अतुल कुमार, मुख्य वक्ता डॉ भोजनंदन प्रसाद सिंह व डॉ अरुण कुमार सिंह ने भाग लिया. लगभग सवा दो घंटे चली व्याख्यानमाला के दौरान तीनों वक्ताओं ने विस्तार से सौ साल पहले और अब की स्थितियों पर बात की. इस दौरान मुख्य अतिथि अतुल कुमार ने कहा कि चंपारण सत्याग्रह के असली हीरो राजकुमार शुक्ल थे, जिन्होंने महत्मा गांधी को यहां लाने का काम किया और सत्याग्रह शुरू हुआ. इसके तीस साल में ही देश आजाद हो गया. आज देश के हालात बदले हैं. किसानी,

चंपारण सत्याग्रह के…
, शिक्षा समेत आधारभूत
रचनाओं में
काम हुआ है, लेकिन आर्थिक स्थिति अभी भी ज्यादा नहीं सुधरी है. इस दिशा में काम होना चाहिए. मुख्यवक्ता डॉ भोजनंदन प्रसाद सिंह ने अपने व्याख्यान के दौरान उन पांच दिनों को याद किया, जिनमें वो बापू के किरदार में थे. कहा, हमने गांधी को जीने की पूरी कोशिश की. 13 अप्रैल को जब मैं कमिश्नर से मिलने जा रहा था, तो अजब अनुभव हुआ. उस दौरान एक वृद्ध व्यक्ति मुझे देख कर तेजी से रोने लगा था. लग रहा था कि जैसे उसकी मन मांगी मुराद पूरी हो गयी है.
गांधी के प्रति ये श्रद्धा अब भी अद्भुत लगी. हां, मुझे एक बात का दुख है कि मैं उस दौरान चाह कर भी लोगों का अभिभावदन स्वीकार नहीं कर पा रहा था. डॉ भोजनंदन ने हिंद स्वराज का जिक्र किया. उसमें लिखी बातों की विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि चंपारण की मिट्टी में जरूर कोई ऐसा आकर्षण था, जो गांधी जी को यहां तक खीच लाया. यहां के लोगों को स्वावलंबी बनाने की बापू की पहल से पूरे देश में संदेश गया. बापू की सीखों का हमें पालन करना चाहिये. अगर हम खुद का आत्म निरीक्षण करते रहें, तो हमसे गलतियां नहीं होंगी.
डॉ अरुण कुमार ने कहा कि किसानों की स्थिति पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि आज खेती समाप्त होने की ओर बढ़ रही है. बीज तक किसानों का अपना नहीं रहा. ऐसे में खेती कैसे होगी? उत्तर बिहार में बढ़ रहे जल संकट की भी उन्होंने चर्चा की और कहा कि ऐसे में हम कैसे आगे बढ़ सकेंगे. उन्होंने कहा कि हमने राजकुमार शुक्ल के किरदार को जिया है. हम सेवानिवृत्ति के बाद किसानों की समस्याओं के समाधान की दिशा में काम करेंगे और अभी कोई भी हमें किसानों की समस्याओं के लिए बुलायेगा, तो हम अपने खर्च से उसमें शामिल होने के लिए जायेंगे.
मुख्य अतिथि कमिश्नर अतुल प्रसाद ने कहा कि राजकुमार शुक्ल चंपारण सत्याग्रह के हीरो थे. यह बात मुझे चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष के मौके पर किताबों के अध्ययन से पता चली. जिस समय गांधी भारत आये थे, उनकी ख्याति थी, लेकिन उस समय प्रचार-प्रसार का ऐसा माध्यम नहीं था. ऐसे समय में चंपारण का किसान जो भोजपुरी जानता हो, वह कैसे समझ गया कि गांधी ही चंपारण के किसानों को मुक्ति दिला सकते हैं. उस समय और भी बड़े नेता थे, फिर क्या कारण रहा कि राजकुमार शुक्ल गांधी के पास गये. जिस तरह भागीरथ ने गंगा को लाने के लिए तपस्या की, उसी तरह राजकुमार शुक्ल ने भी गांधी को चंपारण लाने के लिए किया.
अंगरेजों की तीन कठिया प्रथा व 40 तरह के टैक्स का विरोध राजकुमार शुक्ल ने किया. उन्होंने कर देने से इनकार कर दिया. इस कारण अंगरेज उनके पीछे पड़ गये. उन्हें झूठे मुकदमे में फंसाया गया. कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा. लेकिन, पं शुक्ल ने हिम्मत नहीं हारी. गांधीजी के भारत आने के बाद वे उनके पीछे हो लिये. जहां भी गांधी जाते, उनसे पहले शुक्ल पहुंच जाते. ये भोजपुरी बोलते थे, गांधीजी गुजराती बोलते थे. दोनों में संवाद मुश्किल था. बावजूद पं शुक्ल उनको चंपारण के किसानों की हालत के बारे में समझाने में सफल हुए. गांधी जी से आश्वासन मिलने के बाद वे माने. गांधी के कोलकाता जाने से पहले ही वे कर्ज लेकर वहां पहुंच गये. गांधी जी जब मुजफ्फरपुर आये तब राजकुमार शुक्ल कहां चले गये, इसका जिक्र इतिहास में नहीं है.
कमिश्नर ने कहा कि राजकुमार शुक्ल गांधीजी को मुजफ्फरपुर छोड़ कर वापस चंपारण गये और वहां के किसानों को संगठित किया. गांधीजी जब मोतिहारी के लिए चले तो 16 अप्रैल, 1917 को उन्हें जिलाबदर का नोटिस मिला. 17 को उनके नाम सम्मन आया कि 18 को कोर्ट में पेशी होनी है. 18 अप्रैल को कोर्ट के समीप हजारों की संख्या में किसान पहुंच गये. इसके पीछे राजकुमार शुक्ल थे. सत्य का आग्रह ही था कि गांधी की नीति सफल हो पायी. व्याख्यानमाला के आयोजन में हनुमान प्रसाद ग्रामीण सेवा विकास समिति ने सहयोग दिया. इसमें समाज के विभिन्न वर्गों व संगठनों से जुड़े लोगों ने भाग लिया.
गांधीवाद की धज्जियां उड़ा दीं
कमिश्नर अतुल प्रसाद ने वक्तव्य के दौरान एसकेएमसीएच व एमआइटी में हुई मारपीट का जिक्र भी किया. उन्होंने कहा कि हम लोगों ने शहर को गांधीमय करने का प्रयास किया था, लेकिन इसके चंद दिन बाद ही कुछ पढ़े-लिखे लोगों ने गांधीवाद की धज्जियां उड़ा दीं. उन्होंने कहा कि हिंसा से किसी चीज का समाधान नहीं हो सकता है. इस दौरान नक्सलवाद की चर्चा और कहा कि पिछले 50 साल से देश में ये है, लेकिन क्या जिस उद्देश्य को लेकर शुरू हुआ, उसमें सफल हो पाया?

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