नयी सिक्स मैन कमेटी की रिपोर्ट खारिज
मुजफ्फरपुर : नएच-77 परियोजना में जिला प्रशासन दोहरा झटका लगा है. एनएचएआइ के बाद अब राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने भी 36 गांवों की जमीन की किस्म नये सिरे से तय करने के उसके फैसले को खारिज कर दिया है. भू-अर्जन निदेशक वीरेंद्र कुमार मिश्र ने डीएम को भेजे पत्र में कहा है कि […]
मुजफ्फरपुर : नएच-77 परियोजना में जिला प्रशासन दोहरा झटका लगा है. एनएचएआइ के बाद अब राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने भी 36 गांवों की जमीन की किस्म नये सिरे से तय करने के उसके फैसले को खारिज कर दिया है. भू-अर्जन निदेशक वीरेंद्र कुमार मिश्र ने डीएम को भेजे पत्र में कहा है कि विभागीय प्रावधानों के तहत डीएम की अध्यक्षता में गठित छह सदस्यीय कमेटी विधिवत निर्णय ले चुकी है. ऐसे में नये सिरे से छह सदस्यीय कमेटी के गठन की आवश्यकता नहीं है.
डीएम ने मामले में विभाग से दिशा-निर्देश मांगा था.
इधर, भू-धारी नयी किस्म व नयी अर्जन नीति के तहत भुगतान पर अड़ गये हैं. दर्जनों किसानों ने डीएम को पत्र लिख कर कहा है कि आपने (डीएम) नयी किस्म व जमीन की एक जनवरी, 2014 के सर्किल रेट के आधार पर मुआवजा भुगतान का आश्वासन दिया था. इसके लिए सिक्स मैन कमेटी से जमीन की किस्म की जांच भी करायी गयी है. ऐसे में आप अपने फैसले से पलट नहीं सकते. यदि ऐसा होता है तो वे कोर्ट जायेंगे. किसानों ने एनएच-77 हाजीपुर-सोनबरसा खंड में इसी आधार पर तीन गांव, बेदौल, गोपालपुर असली व पितौझिया में किसानों को नयी नीति के तहत मुआवजा देने का जिक्र किया है.
छूट रकबा भी बन सकता है मुसीबत. प्रशासन के समक्ष सिर्फ भू-धारियों को कोर्ट जाने से रोकना ही चुनौती नहीं है. छूट रकबा भी उसके लिए एक नयी मुसीबत साबित हो सकती है. किसानों के आपत्ति के मद्देनजर प्रशासन ने नये सिरे से सभी 36 गांवों में अर्जित जमीन के रकबा की मापी का फैसला लिया है. यह प्रक्रिया शुरू भी हो चुकी है. पर, सवाल है कि यदि छूट रकबा का आंकड़ा उम्मीद से अधिक हुआ, तो क्या एनएचएआइ उसे मानेगा!
तीन बार हुई किस्म की जांच
एनएच-77 के लिए जिले के 36 गांवों में जमीन का अर्जन किया गया है, लेकिन शुरुआत से ही इसको लेकर विवाद रहा है. जमीन अर्जन के लिए 26 दिसंबर, 2000 में पहली बार सिक्स मैन कमेटी का गठन किया गया. कमेटी ने 19 नवंंबर, 2010 व 11 फरवरी, 2011 को अपनी रिपोर्ट सौंपी. हालांकि, भू-धारियों ने कमेटी की रिपोर्ट पर आपत्ति जता दी. इसके बाद 29 जुलाई, 2011 को नयी कमेटी का गठन किया गया. उसने अपनी रिपोर्ट 15 दिसंबर, 2012 को सौंपी, लेकिन विवाद नहीं सुलझा.
बीते साल एनएचएआइ ने जमीन अर्जन के एस्टिमेट को मंजूरी देने के बदले उससे जुड़ी संचिका जिला भू-अर्जन पदाधिकारी को लौटा दी. इसके बाद खुद डीएम ने एनएचएआइ के अधिकारियों से बात की. आखिर में तीसरी बार 36 गांवों की जमीन के किस्म निर्धारण का फैसला लिया गया. किसानों काे भी नयी किस्म व नयी नीति के तहत मुआवजा भुगतान का आश्वासन मिला. लेकिन संभावित एस्टिमेट 12 हजार करोड़ रुपये के पार चला गया, जो मूल एस्टिमेट (करीब 178 करोड़ रुपये) से काफी अधिक है.
बिना अवार्ड घोषित हुआ मुआवजा भुगतान
एनएच-77 मामले में प्रशासन शुरू से ही भूल करता आ रहा है. पहली गलती बिना एस्टिमेट की मंजूरी व अवार्ड घोषित हुए मुआवजा भुगतान शुरू करना था. संभावित एस्टिमेट के आधार पर एनएचएआइ ने उसे राशि मुहैया करायी व प्रशासन ने उसका भुगतान शुरू कर दिया. नियमों के तहत बिना फाइनल एस्टिमेट की मंजूरी व अवार्ड घोषित हुए बिना मुआवजा भुगतान नहीं हो सकता. अब किसान उसी को आधार बना रहे हैं. नयी नीति कहती है कि 31 दिसंबर, 2014 तक किसी परियोजना का अवार्ड घोषित नहीं हुआ है, तो उसमें नयी नीति लागू होगी. वहीं एनएचएआइ का तर्क है कि वह राशि दे चुका है. अधिकांश किसानों के 80 प्रतिशत मुआवजा का भुगतान भी कर दिया गया है, जो बिना अवार्ड घोषित हुए संभव ही नहीं है.
कमेटी गठन से पहले क्यों नहीं ली गयी राय!. प्रशासन से दूसरी गलती नयी सिक्स मैन कमेटी के गठन के समय हुई. उसे पता था कि करीब सात साल पूर्व जमीन की जो किस्म थी, उसमें अब बदलाव हो चुका है. बावजूद वर्तमान स्थिति के आधार पर किस्म के निर्धारण का फैसला लिया गया. यह पहले से ही तय था कि इसके कारण एस्टिमेट में बेतहाशा वृद्धि होगी. ऐसे में क्या प्रशासन को सिक्स मैन कमेटी के गठन के समय सरकार से राय नहीं लेनी चाहिए थी. राय लेना तो दूर, उसने किसानों को पहले ही यह आश्वासन दे दिया कि उसे नयी किस्म व नयी नीति के तहत मुआवजा दिया जायेगा. ऐसे में यदि किसान अब उसी आधार पर मुआवजा भुगतान को अड़े हैं, तो आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन है!