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बीमारियों से बचने के लिए पॉलीथिन पर बैन जरूरी

मुजफ्फरपुर : पॉलीथिन बीमारियों का घर है. इसके नहीं घुलने व जहरीले रसायन से बने होने के कारण यह पृथ्वी, हवा व पानी को प्रदूषित करता है. पॉलीथिन अपने उत्पादन व डिस्पोजल के दौरान पर्यावरण की गंभीर क्षति का कारण बनता है. इसके खतरों को कम तभी किया जा सकता है जब हम इसका उपयोग […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 5, 2017 4:27 AM

मुजफ्फरपुर : पॉलीथिन बीमारियों का घर है. इसके नहीं घुलने व जहरीले रसायन से बने होने के कारण यह पृथ्वी, हवा व पानी को प्रदूषित करता है. पॉलीथिन अपने उत्पादन व डिस्पोजल के दौरान पर्यावरण की गंभीर क्षति का कारण बनता है. इसके खतरों को कम तभी किया जा सकता है जब हम इसका उपयोग नही करें. विशेषज्ञ बताते हैं कि प्लास्टिक के कुछ घटकों में बेंजीन व विनाएल क्लोराइड को कैंसर का कारण जाना जाता है. तरल हाइड्रोकार्बन पृथ्वी व हवा को दूषित करते हैं.

प्लास्टिक के उत्पादन के दौरान कुछ हानिकारक पदार्थ (कृत्रिम रसायन) एथिलीन ऑक्साइड, बेंजीन व ज़ाइलीस उत्सर्जित होते हैं, जो पारिस्थितिकी प्रणाली को नुकसान पहुचाते हैं. इसके अलावा तंत्रिका तंत्र व प्रतिरक्षा प्रणाली को भी नुकसान पहुचाते हैं. रक्त व गुर्दा पर् प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.

साल में चार किलो पॉलीथिन का उपयोग : पॉलीथिन पर्यावरण के लिए संकट बना हुआ है. हर परिवार हर साल क़रीब चार किलो पॉलीथिन का इस्तेमाल करता है. बाद में यही कूड़े के रूप में पर्यावरण के लिए मुसीबत बनते हैं. पॉलीथिन नालियों व सीवरेज व्यवस्था को ठप कर देता है. इतना ही नहीं नदियों में भी इनकी वजह से बहाव पर असर पड़ता है व पानी के दूषित होने से मछलियों की मौत हो जाती है. रि-साइकिल किए गए या रंगीन प्लास्टिक थैलों में ऐसे रसायन होते हैं जो जमीन में पहुंच जाते हैं. इससे मिट्टी विषैला हो जाता है. रंग और रंजक एक प्रकार के औद्योगिक उत्पाद होते हैं, जिनका इस्तेमाल प्लास्टिक थैलों को चमकीला रंग देने के लिए किया जाता है. इनमें से कुछ रसायन कैंसरकारक व खाद्य पदार्थों को विषैला बनाने में सक्षम होते हैं. रंजक पदार्थों में कैडमियम जैसी जो धातुएं होती हैं, वह स्वास्थ्य के लिए बेहद नुक़सानदेह हैं. थोड़ी-थोड़ी मात्रा में कैडमियम के इस्तेमाल से उल्टियां हो सकती हैं.
पॉलीथिन के उपयोग से लोगों को परहेज करना चाहिए. इसके उपयोग में विषैले रसायन के प्रयोग के कारण यह लोगों को बीमार करता है. पर्यावरण के लिए भी यह संकट बना हुआ है. लाेगों को इसके उपयोग के प्रति जागरूक होना पड़ेगा, तभी पर्यावरण को बचा पायेंगे. डॉ सुरेश शर्मा, फिजिशियन

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