बिहार के किसान क्लस्टर बना करेंगे मोटे अनाज की खेती, तैयारी में जुटा कृषि विभाग
उत्तर बिहार में एक बार फिर किसानों को मोटे अनाज की खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा. कृषि विभाग इसकी तैयारी कर रहा है. इस विषय पर पढ़िए मुजफ्फरपुर से सुनील कुमार सिंह की खास रिपोर्ट...
Agriculture News : लोगों की थाली में अब मोटे अनाज से बने व्यंजन भरे होंगे. कृषि विभाग (Agriculture Department) ने इसकी कवायद शुरू कर दी है. मुजफ्फरपुर सहित उत्तर बिहार में फिर एक बार मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहन मिलेगा. सरकार भी मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा दे रही है. मोटे अनाज की खेती कम हो गई है. मोटा अनाज की फसल को उपजाने के लिए अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है. इसलिए मोटा अनाज की खेती टिकाऊ खेती के लिए उपयुक्त है. किसानों को आर्थिक रूप से फायदा होता है.
25-25 हेक्टेयर का कलस्टर बना करायी जायेगी खेती
सरकार इस साल को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मना रही है. सरकार ने बजट में मोटे अनाज पर जोर दिया. भारत मोटे अनाज का सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. उत्तर बिहार में भी मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, मधुबनी, पूर्वी और पश्चिम चंपारण, शिवहर, दरभंगा आदि जिले में अच्छी खेती होती है. मोटे अनाज से होने वाले तमाम फायदों को देखते हुए बिहार सरकार ने चौथे कृषि रोडमैप के ड्राफ्ट में मोटे अनाज को प्रोत्साहित करने का प्लान बनाया है. कृषि विभाग के अनुसार, कृषि रोडमैप अप्रैल से राज्य में लागू होगा.
बिहार में मोटे अनाज की खेती कम बारिश वाले क्षेत्रों में होगी केंद्र और बिहार सरकार के बजट में मोटे अनाज की खेती के लिए राशि स्वीकृत की गई है. प्रखंडों में 25-25 हेक्टेयर का कलस्टर बनाकर मोटे अनाज की खेती कराई जाएगी. इसको लेकर कृषि विभाग के निर्देश पर सभी जिले से खेती का प्लान तैयार किया गया है. मुजफ्फरपुर में जिला कृषि कार्यालय ने प्रस्ताव तैयार कृषि विभाग को भेज दिया गया है. वहां से स्वीकृति मिलने पर खरीफ से मोटे अनाज की खेती शुरू की जायेगी.
थाली से गायब हो चुका है मोटे अनाज से बना भोजन
एक समय था जब भारत की हर थाली में केवल ज्वार, बाजरा, मडुआ, रागी, चीना, कोदो, सांवा आदि से बने हुए व्यंजन से थाली भरी रहती थी. यह अनाज स्वास्थ्य के लिये काफी लाभदायक है. एक ओर इससे कुपोषण की समस्या से निपटने का नया और सरल मार्ग मिलेगा. वहीं दूसरी ओर इससे किसानों की आय दोगुनी होने का मार्ग भी खुलेगा. लेकिन फिर समय बदलता गया और आज स्थिति यह हो गयी है कि लोग इन अनाजों का महत्व तो दूर नाम भी भूल चुके है.
सरकार की पहल धरातल पर उतरी तो नई पीढ़ी के लोग भी इन अनाजों का वैज्ञानिक आधार पर महत्व समझेंगे. ज्वार, बाजरा के आटे से डोसा, लड्डू, पापड़ भी बन रहे हैं. जिसका स्वाद लोगों को पसंद आ रहा है.
उर्वरक, मजदूरी में 20% लागत खर्च कम
धान, गेहूं की तुलना में मोटे अनाज के फसलों में सिंचाई, उर्वरक व मजदूरी में करीब 20% लागत खर्च कम होता है. कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, मोटे अनाज का उत्पादन धान-गेहूं की तुलना में महज एक चौथाई है. मुजफ्फरपुर में कृषि विभाग की ओर से मडुआ का मिनी कीट भी उपलब्ध कराया गया है. इसको ट्रायल के रूप में किसानों के बीच बीज वितरित भी किया जायेगा.
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