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मुजफ्फरपुर में बागमती ने बदला सैकड़ों परिवार के घर का पता, जहां छोड़ जाते वापसी में वहां नहीं मिलता घर

बाढ़ व कटाव प्रत्येक वर्ष गांव का नक्शा बदल देता है. बागमती नदी ने सैकड़ों विस्थापित परिवारों के घर का पता बदल दिया है. नदी ने जमींदारों को लैंडलेस व किसानों को गरीब बनाकर अन्य प्रदेशों में मजदुरी करने पर विवश कर दिया है.

By Prabhat Khabar News Desk | July 10, 2022 11:27 AM

औराई प्रखंड क्षेत्र से गुजरने वाली बागमती नदी ने सैकड़ों विस्थापित परिवारों के घर का पता बदल दिया है. विस्थापित परिवार बागमती नदी के कहर के कारण जान बचाने, बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार को लेकर गांव छोड़ अन्ययंत्र बसेरा ले लिया है. कारण बागमती नदी ने एक दर्जन विस्थापित गांवों का भुगोल ही बदल दिया है. नदी ने जमींदारों को लैंडलेस व किसानों को गरीब बनाकर अन्य प्रदेशों में मजदुरी करने पर विवश कर दिया है. अन्य प्रदेशों से मेहनत मजदूरी करने वाले मजदूर जब वर्ष में घर लौटते हैं तो उन्हें अपने घर का पता पुछना पड़ता है.

प्रत्येक वर्ष गांव का नक्शा बदल जाता है 

बाढ़ व कटाव प्रत्येक वर्ष गांव का नक्शा बदल देता है. बभनगामवां पश्चिमी गांव निवासी सउदी अरब में मजदूरी की नौकरी कर लौटने वाले शहनवाज ने बताया की नदी ने घर को ऐसा तहश नहश किया अपने घर को पहचानने के लिये गांव के लोगों की मदद लेनी पड़ी. इन विस्थापित गांव की बड़ी आबादी गांव को छोड़ अपना आशियाना बना लिया है. सेवानिवृत्त राजस्व कर्मी समी महबूब ने अपना दर्द बयां करते हुए कहा कि गांव को छोड़ दूसरे गांव में मजबूरन बसना पड़ा है. मगर गांव छोड़ने का मलाल कभी खत्म नहीं होगा.

कलम के जादूगर के गांव का भी बदला पता

बाढ़ ने कलम के जादूगर स्व. रामवृक्ष बेनीपुरी के गांव के पति को भी बदल दिया है. प्रशासन ने बेनीपुर गांव को बागमती के दक्षिणी तटबंध के सटे नये बेनीपुर में पुनर्वास की जमीन देकर बसाया तो जरूर है, लेकिन बेनीपुरी जी का पुश्तैनी मकान आज भी नदी के बीचों बीच जीर्णशीर्ण अवस्था में है जिसे सहेजने के लिये कई बार प्रशासन ने खाका तैयार किया मगर इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो सकी.

पेट भरने के लिये प्रदेश ही सहारा

जाहिर है जब प्रत्येक वर्ष बाढ़ का आना जाना रहेगा तो वहां गरीबी, गुरबत ही स्थाई घर बना सकती है, बाढ़ पीड़ित व विस्थापित प्रत्येक वर्ष जहां तहां बेघर होते रहते हैं इसलिए लोगों को रोजगार के लिये अन्य प्रदेश से लेकर विदेशों तक में जाकर मजदूरी करनी पड़ती है जो लोग रोजी रोटी कमाने के लिये विदेश जाते हैं और सैलाब के बाद जब अपने घर लौटते हैं तो वह जमीन जहां से वह अपने घर को छोड़ कर गये थे वह नदी का हिस्सा बन जाता है. एक दर्जन विस्थापित गांव हर वर्ष इस कहानी को दोहराते हैं.

11 विस्थापित विद्यालय के अस्तित्व पर संकट

विस्थापित बभनगामवां पश्चिमी, मधुबन प्रताप, बाड़ा बुजुर्ग, बाड़ा खुर्द, महुआरा, चैनपुर, हरणी टोला, भरथुआ टोला, शंकरपुर, तरबन्ना टोला गांव के कुल 11 विद्यालय बाढ़ के दौरान करीब छह माह अस्थाई रूप से बांध या किसी के दरवाजे पर चलते हैं जिस कारण बच्चों की पढ़ाई बाधित रहती है.

पुनर्वास व मुआवजे की आस में पथरा गई आंखें

विस्थापितों के नेता आफताब आलम, माले नेता मनोज यादव ने बताया की बेनीपुर गांव को छोड़ बाकी गांव के विस्थापितों को मकान मय सहन का सिर्फ आधा अधूरा मुआवजा मिला है. सरकार ने पुनर्वास की अब तक कोई व्यवस्था नहीं की है. मधुबन प्रताप के मनोज सहनी अपना दर्द बताते हुए कहते हैं कि सांप बिच्छू व जंगली जानवरों के बीच रात गुजारना हमलोग का नसीब बन चुका है.

वर्ष में सिर्फ पांच माह बजती है शहनाई

बाढ़ के कारण विस्थापित गांव में सिर्फ चार महीने ही शहनाई बजती है. विस्थापित लाल बाबू सहनी ने बताया कि यहां के लड़का लड़की का विवाह भी बड़ी कठिनाई से होता है. रिश्ता जोड़ने वाले गांव की सड़क व बाढ़ की स्थिति को देख विवाह से इंकार कर देते हैं. मधुबन प्रताप के देवेंद्र सहनी के बेटी का विवाह बाढ़ होने के कारण टाल गया है. यहां दिसम्बर से लेकर अप्रैल तक ही विवाह होता है.

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जंगली जानवरों ने ले रखा है बसेरा

बाढ़ के कारण इन क्षेत्रों में सिर्फ एक फसल होती थी. मगर जंगली सुअरों, निल बैल के आतंक के कारण किसानों ने गेहूं, मक्के व दलहन की फसल को भी छोड़ दिया है. इन विस्थापित गांव के दर्जनों बड़े किसान अब मजदूर हो चुके हैं. अंचलाधिकारी रामानंद सागर बताते हैं कि विस्थापित गांव के लोगों को मुआवजे की प्रक्रिया तेज गति से जारी है. वहीं पुनर्वास के लिये विभाग को अपने स्तर पर बार बार लिख रहा हूं, ताकि विस्थापितों के समस्या का हल जल्द हो सके.

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