बिहार बोर्ड परीक्षा में वर्ष 2016 में हुए टॉपर घोटाले के बाद सरकार और बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने 2017 की वार्षिक परीक्षा में सख्ती की, तो बड़ा झटका लगा. तब, मुजफ्फरपुर जिले में केवल 38.9 प्रतिशत छात्र ही सफल हो सके थे. हालांकि उसके बाद लगातार सख्ती के बीच मुजफ्फरपुर सहित अन्य जिलों के छात्र-छात्राओं ने अपनी प्रतिभा निखारी और परिणाम बेहतर होता चला गया.
2018 में 61.22 प्रतिशत परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए थे. 2019 के बाद 75 प्रतिशत से अधिक रिजल्ट था, जिसमें जिले की भागीदारी भी बेहतर रही. हालांकि कोरोना काल के कारण बोर्ड ने लगातार तीसरे साल जिलेवार सफलता का आंकड़ा जारी नहीं किया है. विभागीय लोगों का कहना है कि 75 प्रतिशत से अधिक परीक्षार्थी सफल हो गये हैं.
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने 2017 से परीक्षा और परीक्षा में काफी बदलाव किया है. दरअसल, 2016 की इंटरमीडिएट परीक्षा का रिजल्ट जारी होने के बाद बड़े पैमाने पर गड़बड़ी उजागर हुई. इससे देशभर में बिहार की किरकिरी हुई थी. यहां के मेधावों को लेकर गलत धारणा बन गयी थी. हालांकि सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए सिस्टम में बदलाव किया. तब से सीसीटीवी कैमरा सहित कई स्तरों की कड़ी निगरानी के बीच परीक्षा सहित कॉपियों का मूल्यांकन होता है. मैट्रिक व इंटरमीडिएट की परीक्षा में केंद्रों पर पूरी चौकसी रहती है. साथ ही कई स्तर पर स्क्रीनिंग के बाद रिजल्ट घोषित किया जाता है.
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बोर्ड की सख्ती का ही असर रहा कि वर्ष 2017 की वार्षिक परीक्षा में 38.79 प्रतिशत छात्र ही सफल हो सके. हालांकि अगले साल, यानी वर्ष 2018 में जिले के 61.22 प्रतिशत छात्रों ने सफलता हासिल कर शुभ संकेत दिया था. वहीं वर्ष 2019 की परीक्षा में 78.36 प्रतिशत छात्र-छात्राओं को सफलता मिली थी. वर्ष 2020 व 2021 की परीक्षा पर कोरोना का असर दिखा, लेकिन रिजल्ट पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा. वर्ष 2020 में पूरे राज्य में 80.59 प्रतिशत छात्र उत्तीर्ण हुए थे, जबकि 2021 में 78.18 प्रतिशत उत्तीर्ण हुए.
POSTED BY: Thakur Shaktilochan