Bihar News: मुजफ्फरपुर में वित्तीय गड़बड़ी के साथ अब महालेखाकार की ऑडिट टीम निगम सरकार की भी कार्यशैली परखेगी. पांच सालों यानी वित्तीय वर्ष 2019-20 से लेकर 2023-24 तक की परफॉर्मेंस ऑडिट को पहुंची चार सदस्यीय टीम पहले दिन ही बड़ा धमाका कर दिया है. वित्तीय मुद्दे का हिसाब-किताब लेने से पहले टीम ने पांच सालों के भीतर कितनी सशक्त स्थायी समिति (मेयर कैबिनेट) व निगम बोर्ड की मीटिंग हुई. इससे संबंधित लेखा-जोखा साक्ष्य के साथ तलब कर दिया है.
पांच सालों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट
हर मीटिंग की प्रोसिडिंग भी मांगी गई है. इससे निगम कर्मियों में खलबली मच गई है. हालांकि, असली खलबली तब मचेगी, जब ऑडिट टीम मीटिंग की प्रोसिडिंग में दर्ज फैसला व मीटिंग की हुई वीडियो रिकॉर्डिंग का मिलान करेगी. तब बहुत सारे प्वाइंट पर छेड़छाड़ मिलेगा. फैसला के विपरीत बातें प्रोसिडिंग में दर्ज दिखेगी. चर्चा है कि ऑडिट टीम ने प्रोसिडिंग के साथ-साथ वीडियो रिकॉर्डिंग की भी डिमांड की है.
महालेखाकार की टीम 03 सितंबर तक पांच सालों की परफॉर्मेंस रिपोर्ट देखेगी. इसमें हर प्वाइंट की गहराई से जांच-पड़ताल कर हुई गड़बड़ियां उजागर होगी. यही नहीं, इन पांच सालों में क्या-क्या फैसला लिया गया. उस पर क्या कार्रवाई हुई. बोर्ड के किसी फैसला से सरकार को वित्तीय नुकसान तो नहीं हुआ. इन सभी बिंदुओं पर ऑडिट टीम जानकारी जुटा सरकार को कार्रवाई के लिए अनुशंसा कर सकती है.
क्या कहता है नियम, क्यों मची है खलबली
नगरपालिका एक्ट के अनुसार, महीने में दो बार सशक्त स्थायी समिति व एक बार निगम बोर्ड की मीटिंग करने का प्रावधान है. आवश्यकता पड़ने पर एक महीने में दो या तीन भी निगम बोर्ड की विशेष मीटिंग हो सकती है. लेकिन, मुजफ्फरपुर नगर निगम में मनमानी कहे या राजनीतिक उठापठक.
इसके कारण मीटिंग महीनों-महीनों तक नहीं होती है. जब मन करता है निगम सरकार मीटिंग बुलाती है नहीं तो कामकाज भगवान भरोसे चलते रहता है. चर्चा है कि ऑडिट टीम नगरपालिका एक्ट के अनुसार काम नहीं होने की गड़बड़ियां मिलने के बाद सख्त कार्रवाई के लिए सरकार को अनुशंसा कर सकती है. इस कारण सबसे ज्यादा खलबली मच गई है.
वर्तमान निगम सरकार भी घिरेगी
पांच सालों का ब्योरा मांगे जाने के बाद तत्कालीन निगम सरकार के साथ वर्तमान निगम सरकार भी घिर जायेगी. अभी जो निगम सरकार है. इसमें भी समय से मीटिंग नहीं बुलायी जाती है. महीनों-महीनों तक सशक्त स्थायी समिति व बोर्ड की मीटिंग नहीं होती है. ऑडिट खुलासा के बाद सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है. मीटिंग बुलाने के लिए जो जिम्मेदार हैं, उनके ऊपर कार्रवाई संभव है.